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Thursday 30 June 2016

                                     २८.प्रेम 


प्रेम ही है आत्मा ,

प्रेम ही परमात्मा !

प्रेम ही है वो धुरी ,

जो करा दे  ,

दुश्मन से भी मित्रता !!                                                





                                                            २७,अदा 



अदा है  जिंदगी  ,तो अदाकार हो तुम !

महबूब है जिंदगी  ,तो महबूबा हो तुम !

न सताओ  दिल को ए मेरे  खुदा,,
,,,,
हया है जिंदगी ,तो आफताब हो तुम !!


                                       



















                                                                  २६.कोयल



कोयल की मीठी तान ,
खींच लेती बरबस मन को।
मीठी आवाज ही जिंदगी की शान,
देती संदेसा हम सबको ।।

Wednesday 29 June 2016


25.life is war  

Life is a war .If you handle some problems very carefully ,then it may be a happy journey ,but it is not sure that all problems you can handle very easily .your strong belive n your circumstances should also with you,bec life is a conclusion of fate n hard work .






२४ ,अश्क़ को समझते हैं लोग सिर्फ कमजोरी ,
 व्यर्थ है रोना ,लोग इसे सिर्फ मायूसी समझेंगे !
आंसूं नहीं होती कमजोरी ,ये तो भावनाओं का वेग है , 
मुश्किल है हर लफ्ज को समझाना ,कुछ लोग इसे सिर्फ बुजदिली समझेंगे ।।
                                  



                                                     

                                  २३. प्यार



अदाएं कहें या आपकी सदा ,प्यार के वायरस ने हैंग कर दिया ,
भुलाने चले थे आपको ,याद ने हमें ही बैचैन कर दिया !

Tuesday 28 June 2016

२२.सपना
सपनों की डोली में मुझको बैठाकर ,
ले जा पिया अपने दिल में बसाकर !
बहक जाऊं जो कभी साथ में तेरे ,
समझा देना तुम देकर इशारे !
न हूँ मैं गंगा ,न हूँ मैं यमुना ,
रहना है बनकर साथ वो धारें !
मिल जाती है जो बनकर
शीतल संगम की फुहारें !
महका देती है तन और मन को ,
जैसे हो कोई सुंगंध की बयारें !
खो न जाऊं ख्वाब में तुम्हारे ,
आ जाओ पिया लेकर प्रेम रस की फुहारें !!
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
मेरी रचनाएँ सौरभ दर्शन में, 
२१.पति और बेटा
पिस रहा आज मानव दो जिंदगियों के बीच में ,
भूल गया अस्तित्व अपना ,फर्ज के गहरे फेर में !
एक तरफ है धर्म का नाता ,दूसरी ओर जन्मों का मेल !!
गर सुनता माँ बाप की ,तो पत्नी देती आँख तरेर ,
गर याद करता अपने फर्ज को ,
आँखों से बहता आंसुओं का ढेर !
समझौता कराने की जुगाड़ में ,दिन रात चल रहा मतभेद !
\क्यूँ नहीं समझता कोई ,बेचारी चक्की का दुख् भेद !!
दो पीढ़ियों की सोच में पति बन गया मदारी ,
न समझते दुःख माँ बाप उसका ,न समझने को आतुर उसकी नारी !!
गर सुनता पत्नी की ,दुनिया कहती जोरू का गुलाम ,
गर निभाता जन्मदाता का फर्ज ,दुनिया कहती डूब जा निर्लज्ज !!
समझना जरूरी है आज इंसान को इंसान का ही दर्द ,
नजर आयेगा नहीं तो दुनिया में जल्द ही ज़िंदा लाशों का संघर्ष !!
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

Sunday 26 June 2016

                                                    २०.मजाक 

मजाक में कही हुई बात भी कितना दुःख दे जाती है ,
बिना हड्डी की जीभ जब नाजुक दिलों को तोड़ जातीहै!!
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कैसे कह देते हैं लोग दूसरों के लिए वही बातें ,
जो स्वयं की बर्दाश्त के भी बाहर होती हैं!!
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बसेरा है ये दुनिया सिर्फ चार दिन का,
क्यूँ गुरूर में ये हकीक़त भूल जाते हैं !!
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प्यार ही है दुनिया की सबसे बड़ी ताक़त,
क्यूँ खुदा की अनमोल नियामत को भूल जाते हैं !!
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वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

                                                     19.नफरत

ख़ुशी जो मिलती किसी बाजार में ,तो ले आती मैं। 
नफरतों का बाजार हर चौराहे पर लगा देखा है ।
                                   १८ .नारी का सम्मान
मेरी रचना " समस्त भारत राष्ट्रीय पत्रिका (मासिक)" दिल्ली में,..
नारी का सम्मान ,हमारे देश की पहचान !
फिर क्यूँ है हमारे देश में ही नारी का अपमान ?
हिम्मत रखती हैं बेटियां, दूर तक साथ निभाने की !
करती हैं नाम रोशन जहाँ में अपने पालन हार का !!
पहुँच गयी आज चाँद और पहाड़ों पर बेटी ,
शर्म नहीं ,”बेटियां गर्व हैं आज” !
रखती हैं हिम्मत कुछ बेहतर कर दिखाने की !!
छू लिया आसमान जिसने अपने बल पर ,
रखती है ताक़त अपने कन्धों पर जिम्मेदारी उठाने की !
फिर हो चाहे वो रणभूमि या बच्चों की परवरिश निभानी !!
फिर भी क्यूँ आंकी जाती है कम कीमत उनकी ,
क्यूँ बना दी जाती है आज भी, वो एक अबला बेचारी !
क्यूँ नहीं उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाई किसी ने !
चाहे वो घर हो या ऑफिस की चहारदीवारी !!
मिल जाए अगर आज भी एक लड़की अकेली सड़क पर ,
घूरती हैं हजारों आँखें ऐसे ,जैसे कोई अजूबा हो भारी !!
क्यूँ है आज भी एक बेटी आजाद देश में गुलामों जैसी ?
अपनी बहन बेटी सबको लगती है प्यारी ,
पर औरों की क्यूँ होती है हमेशा एक बेचारी !!
हर पल झेलना सबकी तीखी नजरों की खुमारी ,
क्यूँ बन गयी आज बेटियों की इज्जत एक दुश्वारी !
रखते हर पल “गिद्ध की नजर कुछ खूंखार भेडिये”,
जैसे हों वो कोई मंजे हुए शिकारी ?
न मौत का डर,न भगवान् की शर्म किसी को ,
बस चाहिए खाने को जिस्म की सौगात “सिर्फ एक नारी”
आ गया गर कहीं से बचाने कोई शराफत का पुजारी ,
उसकी भी खैर नहीं ,लगा दिया उसको भी ठिकाने ,
मार कर एक पल में दुनाली !!
कैसे बच पाएगी इस तरह संसार में बेटी की इज्जत ?
जब तक न समझोगे हर औरत को अपनी माँ ,बहन
बेटी की तरह प्यारी !!
महकने दो इन कलियों को अपनी बगिया में ,
बनने दो कली से खिलकर “फूलों की खुमारी” !
बिखेरने दो अपनी खुशबू से “दुनिया की फुलवारी” !!
रहो खुश और खुशियों से जीने दो ,गर चाहिए ,
दुनिया में “शान्ति और स्नेह” की प्रेम भरी वाणी !!
नहीं होंगी बहन और बेटियां तो किससे राखी बंधबाओगे,
घूमोगे लेकर सूनी कलाई ,क्या फिर खुश रह पाओगे ?
बेटी के बिना कैसे खुशियाँ तुम बांटोगे ?
नारी ही है प्रेम की सम्पूर्ण शक्ति,
क्या नारी को रौंदकर अपना अस्तित्व बचा पाओगे :
मत भूलो प्राचीन सभ्यता को ,जहाँ नारी पूजी जाती थी !
आकर बहकावे में पाश्चात्य सभ्यता के कब तक खैर मनाओगे !
याद करो झाँसी की रानी और इंदिरा गाँधी को ,
मरते दम तक लड़ती रहीं जो देश के लिए ,
वो भी तो किसी की बेटी थीं !!
जहाँ न इज्जत बेटी की ,वो जगह नहीं बैठने की तुम्हारी ,
(जागो मेरे देश वासियों ,बचा लो अपने देश की तौहीन
भारत माता पुकार रही ,आँखों में भरकर नीर )..................!!!
                              १७.मौसम 

मौसम की तरह न बदलना आया हमें,
समझते रहे रिश्तों को सावन की तरह।

yahi hai jindgi

                                      यही है जिंदगी का विमोचन समारोह 


२.शुभ मध्याहन मित्रो ,जय माता दी !
देवी माँ और परमपिता परमेश्वर की असीम कृपा से मेरी पुस्तक " यही है जिंदगी " का विमोचन डॉ विश्वमित्र आर्य के कर कमलों से संपन्न हुआ जो कि अलीगढ़ के शुभम हॉस्पिटल के डायरेक्टर हैं ।

Saturday 25 June 2016

  १६. दुःख और अंधकार

दुःख को दुःख से चीरता देखो वो अन्धकार चला ,
न किसी से जलन न , न ही किसी से गिला !
आस ही आस में सदियों का सा फासला ,
न ही मिलने का गम ,न जुदाई का सिला !
चलता ही जा रहा है ,देखो वो खुद को ही छलता हुआ ,
कोई जाना हुआ ,लेकिन अजनबी सा सिलसिला !!
                                       १५.जीवन 
१४.मेहनत




थक कर इस जीवन से जो बैठ गया ,
उसको फिर कहाँ आराम है !
मेहनत ही सफलता को दोहराती है ,
वही तो कर्म की परिचायक है !!
                                          १३.geet
कौन याद रखता है किसी के गीतों को ,
सबको सिर्फ अपना दर्द याद रहता है !
आया ऐसा मुफलिसी का ज़माना ,
हर दिल को सिर्फ चेहरा याद रहता है !!
                                                    १२.दुल्हन सी जिंदगी 

दुल्हन सी जैसी जिंदगी ,देखो आज फिर मायके चली ,
भेजी थी दुनिया में जिस बाबुल ने ,उसी को थी कल भूल गयी !
रही थी नौ महीने गर्भ में ,दुःख दर्द सहती रही ,
कहती थी भगवान् से लगा दो पार मेरी नैया ,दुनिया से मैं ऊब चली !
सहकर सारे दुःख दर्द ,जब रौरक नरक को झेल चुकी ,
आते ही फिर गर्भ से बाहर,दुनिया में दर्द अपने भूल गयी !
कुछ याद था पिछले जन्म का ,कुछ दिन संताप में रही ,
आकर उस माँ की गोद में ,धीरे धीरे सब भूलने लगी !
जब फूटा पहला शब्द तो वो ,सिर्फ माँ का ही एक नाम था ,
प्यार में बहकर इस दुनिया को ही स्वर्ग वो समझने लगी !
बचपन बीता आई जवानी ,सखियों के संग झूमने लगी ,
देखकर जीवन के रंग ,झूठे स्वप्न में ही खोने लगी !
न याद रही मंजिल अपनी ,दुनिया उसको ठगने लगी ,
न समझ पाई दुनिया की चाल ,दुनिया में यूँ रमने लगी !
वक्त यूँ ढलने लगा, जवानी भी साथ छोड़ने लगी ,
आया जब बुढ़ापा तो, लाठी की याद सताने लगी !
तन ने भी छोड़ दिया साथ ,मन भी दुखी रहने लगा ,
जब दूर हो गए सारे अपने ,तो बाबुल की याद आने लगी !
सोचा दो पल और मिल जाएँ ,जीवन अपना सुधार लूँ ,
भूल गई थी जिस बाबुल को, उससे अब माफ़ी मांग लूँ !
जीवन दिया ,जिंदगी मिली ,सोचने की समझ भी दी आपने ,
मुझसे घोर पाप हुआ ,जो आपको ही बिसराने लगी !
मिला था मुझको मानुष तन ,सँवारने को दुखियों का जीवन ,
ये कैसी मुझसे भूल हुई ,संवारना तो दूर रहा खुद का भी मैं बिगाड़ चली !
हाथ जोड़कर अंत में, विदा अब लेने लगी ,
दुल्हन सी जैसी जिंदगी ,देखो आज फिर मायके चली ,
लुटा कर अपना सब कुछ दुनिया में, आज बाबुल की सीख छोड़ चली !!

                             ११.समाज 
 समाज को नफरतों की नहीं प्यार की जरूरत है! 
यदि आप किसी को सुख नहीं दे सकते तो दुःख भी मत दो!!
samaj ko nafraton Ki nahi pyar Ki jaroorat h .
yadi aap kisi ko sukh nahi de sakte to dukh bhi na den.
                 १०.जिंदगी
जिंदगी नहीं है कोई मधुशाला,
ध्यान से देखो तो लगता कोई जहर भरा प्याला !
कब तक खुद को बहलाओगे ,उठो ,जागो
कहीं उजड़ न जाये जीवन की गठरी ,
और राग भरी जीवन धारा !!
jindagi nahi hai koi madhushala ,
dhyan se dekho to lagtaa jahar bhara koi pyala
.kab tak khud ko bahlaoge ,utho, jaao
kahin uajad na jaaye jeevan ki gadhri
aur raag bhari jeevan dhaara .
                                                                                 ९.गजल
तुम हो मेरी सोच गजल में 

जीवन की जैसे हर धड्कन में 
तुम बिन सूनी दिल की गलियां 
तुम बिन प्यासी दिन और रतियाँ
कहो तो तुम में खो जाऊँ मैं
कहो तो खुद को भी भूल जाऊ मैं
कैसे होगी तुम बिन खुशियाँ

तुम से ही तो आबाद मेरी दुनिया

८.मेरी रचना सौरभ दर्शन में ,नारी का सम्मान ,

Friday 24 June 2016

                                          ७.कबूतर  
सुबह होते ही देखती हूँ कबूतर ने ,
फिर से नया घरौंदा बसाया है ।
तिनका तिनका लाकर फिर से 
उसे सजाया है ।
देख रही हूँ पिछले नौ सालों से ,
दो कबूतरों का प्यार अपने बच्चों के लिए
कितना निस्वार्थ सेवा -भाव से
बच्चों को प्यार से खिलाया है ।
मूक हैं ,बोल तो नहीं सकते ,
पर स्नेह इंसान से कम भी नहीं करते
अपने भाव से यही तो समझाया है ।
फिर क्यों हम इंसानों ने बच्चों के
प्यार में भी स्वार्थ दिखलाया है ।
नेह से बड़ा करके छोड़ देते हैं
खुले आस्मां में अपनी जिंदगी जीने के लिए ,
न कभी अहसान दिखलाया है ।
फिर क्यों इंसानों ने बच्चों से अपनी
प्रीत का कर्ज बापस माँगा है ।

                          ६.कतरा कतरा जिंदगी 
कतरा कतरा जिंदगी ,खुद को न जीने दे
मायूस सी बेखुदी गम को न पीने दे।
उलझकर टूट न जाएँ कहीं ये तारे ,
चाँद की नजाकत वक़्त को समझने न दे।
महफूज थी चांदनी कभी अपनी उदासियों में,

बिखर रही है आज चाँद के आगोश में ,
मंजिलों की लगी ऐसी तलब जिंदगी को,
सहकर सौ जख्म भी खुद को खोने न दे।।

                           ५.अनुत्तरीत प्रश्न

एक अनुत्तरीत सा प्रश्न दिल में जब भी आता है,
भर जाता है जीवन में कड़वाहट,आँखों में आँसूं छोड़ जाताहै !
क्यूँ माँ बाप की कटुता का असर बच्चों को घायल कर जाता है !
बिखर जाती है जिंदगी भी ,जब किसी एक का प्यार घट जाता है !!
सम्पूर्ण कहाँ हो पाती है जीवन की पाठशाला ,
जब सिखाने वाला एक शिक्षक बीच में ही छोड़कर चला जाता है,
भर जाती है दुनिया के लिए एक वितृष्णा,
जब माँ बाप का व्यक्तित्व बच्चों कोअपूर्ण कर जाता है !
छोटा बच्चा होता है एक कच्ची मिटटी जैसा,जैसा ढालो ढल जाता है,
गर मिलती है जीवन में सिर्फ नफरत, दुनिया को नफरत ही दे पाता है!
क्यूँ अपने सुख की खातिर बच्चों को तनहा कर जाते हैं,
है आज भी यही यक्ष प्रश्न ............................................
क्यूँ जन्म देते हैं बच्चों को जब अपना सुख सर्वोपरि हो जाताहै ?
प्यार ही जीवन की पूंजी,प्यार ही सबसे बड़ा नाता है,
माता पिता का सम्पूर्ण प्यार ही बच्चों को एकअच्छा जीवन दे सकता है!!