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Saturday 19 November 2016

वजूद

११५.
\

भुलाकर खुद का वजूद ,जब भी तुझे भुलाना चाहा ,

तकदीर का फ़साना कहूँ या...... इश्क की ताबीर ,
अश्कों............... में भी तेरा ही अक्स नजर आया !!


Friday 18 November 2016

                                        ११४.गीत 


मेरे सपनों का सुंदर गीत :
मुझे डर है मेरे प्यार को
खोयी ...मंजिल मिल गयी ।
अरे ऐसी मंजिल मिल गयी
जो मेरे दिल को भिगो गयी ।।
मुझे डर है मेरे प्यार को ...........

                                         ११३.प्यार 


आज का कटु सत्य :
न रहा वो दौर स्नेह का ,न वो अटूट ..बंधन रहा ।
भाई भी आंकने लगा अब प्यार को सामान से,
बहन भी प्यार का हिसाब उपहार से लगाने लगी।
खो गयी वो प्यार मनुहार की रसीली बातें ,
प्यार ,प्यार न होकर सिर्फ एक सौदा बन रहा ।
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फितरत इंसान की जाने क्या क्या करा देती है ,
बहन को व्यापारी खुद को दुकानदार बना देती है ।

                                          ११२.कविता 


खुले आसमान के नीचे देखकर 
वो चिड़ियों को उड़ते हुए
आते हैं दिन याद बचपन के 
जहाँ थी आजादी उड़ने की 
कुछ बंदिशे थी ज़माने की 
पर खुशियाँ थी चहचहाने  की 

                               १११.दिवाली और पटाखे 

मेरी कविता साहित्यपिडीया पर ,


http://sahityapedia.com/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%AA%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%96%E0%A5%87-66114/

दिये की रौशनी में अंधेरों को भागते देखा ,
अपनी खुशियों के लिए बचपन को रुलाते देखा।
दीवाली की खुशियां होती हैं सभी के लिए,
वही कुछ बच्चों को भूख से सिसकते देखा ।
दिए तो जलाये पर आस पास देखना भूल गए ,
चंद सिक्कों के लिए बचपन को भटकते देखा।
क्या होली ,क्या दिवाली माँ बाप के प्यार से महरूम कुछ मासूम को अकेले मे बिलखते
देखा ।
जल रहा था दिल मेरा देखकर जलते हुए पटाखों को ,
लगायी थी कल ही दुत्कार सिर्फ एक रोटी के लिए ,
आज उसी धनवान को नोटों को जलाते देखा ।
मनाकर तो देखो दिवाली को एक नए अंदाज में ,
पाकर कुछ नए उपहार मासूमों को मुस्कराते देखा ।
"दिये तो जलाओ पर इतना याद रहे ,
अँधेरा नहीं जाता सिर्फ दीये जलाने से ।
क्यों न इस दिवाली पर कुछ नया कर जाएँ ,
उठाकर एक अनौखी शपथ ,
न रहे धरा पर कोई भी भूखा हमारे आस पास ,
चलो मिलकर त्यौहार का सही मतलब बता जाएँ ।।"
देखो देखो आयी न चेहरे पर कुछ मुस्कराहट ,
आज सदियों बाद त्यौहार को समझते देखा ।।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़