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Saturday 31 December 2016

                              १४०. अलविदा २०१६ 


अलविदा 2016 ,
जा रहा हूँ फिर कभी न आने के लिए ,
आपका 2016 हूँ भुला मत देना मुझे ।
रहेंगी मेरी यादें दिलों में बाकी हमेशा ,
दिया है बहुत कुछ मैंने ज़माने के लिए ।।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

                                        १३९.दिल 

दिल तोड़ने की वजह तो देते हैं दुनिया में बहुत लोग ,
काश शीशे को जोड़ने का हुनर भी सीखा होता किसी
ने !!

Thursday 29 December 2016

एक अजन्मी बच्ची का दर्द

                                     १३८.नदिया 


बाँध बनाकर प्रेम का ,नदिया सबको....... पिलाय !
प्रेम भरा है दिल में कितना ,वर्षा कैसे वो बतलाय !!










Wednesday 28 December 2016

                                      137 कौन है दोषी 


जय श्री कृष्णा मित्रो ,मेरी कविता," दैनिक ज्योति नव एक्सप्रेस ",जोधपुर में !


                                             १३६ निर्भया ,


आज हमारे समाज में लड़कियों की कितनी दुर्दशा हो रही है इसके लिए जिम्मेदार कहीं कहीं न कहीं बरसों पुरानी सोच है जो लड़कियों को ऐसा नारकीय जीवन जीने को मजबूर करती है । यू पी में ऐसी ही एक घटना ने हम सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया है ।मेरी इसी व्यथा को लेकर एक रचना आज के वागढ दूत में 

                                    १३५.इन्तजार 


मेरी कविता sahitypedia पर ,

                                     १३४.बड़ा दिन 

खुशियों से इतना परहेज क्यों ,
त्यौहार को मिलकर मनाएं ।
भारत है सांस्कृतिक सौहाद्र का प्रतीक ,
हर बात पर इतना विरोध क्यों ???

                                           १३३.मय्यत 

जय श्री कृष्णा ,
मय्यत को भी रुस्बा करने वाले,
कैसे किसी का घर बसायेंगे ।
फूंककर जनाजा अपनों का ही ,
जब खुद तालियां बजायेंगे ।।

                                       १३२.शब्द 


जय श्री कृष्णा मित्रो,
मेरी एक और रचना "सौरभ दर्शन "पाक्षिक पेपर में , ।
शब्द जब प्रत्याशा बन जाते हैं,
टूटे हुए दिलों पर मरहम रखकर ,
जीने की राह दिखा जाते हैं ।
अभिलाषाओं से भरे जीवन में
जब भी पतझड़ आता है ,
राह दिखाने सूनी राहों में ,
प्यार का मधुर अहसास जगा जाते हैं ।
अछूता कौन है जिंदगी की सच्चाई से ,
हर पल जलते हुए शोलों में ,
जैसे ठंढी हवा चला जाते हैं ।
आओ समेट कर सारी इच्छाओं को फिर से कहीं
इनके आँचल तले सो जाते हैं ।।
।।2।।
अल्फाजों को स्वर्ण समझो ,
तारीफ़ को आभूषण ।।
साहित्य है विधा उसकी ,
लेखन जिसका धन ।।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

                                  १३१,कशमकश

कशमकश से भरी जिंदगी कब सुकून देती है ।
चलते तो हैं लोग सभी मंजिलो की तरफ ,
होते हैं कितने खुशनसीब ,मंजिल पनाह देती है ।
गुजर गए वो बीते पल भी खुशियों की चाहत में ,
आज का पल भी गुजर ही जाएगा जिंदगी में ।
चलते रहना ही जिंदगी है ...............दोस्तों ,
जाने क्यों जिंदगी हर कदम इम्तहान लेती है ।।
(17/12/16)mera golden chance miss ho gaya .I am very upset .shayad jo hota hai usmen kuch acchai hi hoti hai .

                                        १३०.रचना 

 मेरी रचना "सौरभ दर्शन "में,


                                                 १२९.नसीब 


जय श्री कृष्णा मित्रो ,
जन्म मृत्यु यश अपयश सब बिधि के हाथ ही तो है ।जो बातें हम अपने लिए सोचते हैं ,वो शायद ही कभी पूरी हो पाती हैं ।इसका मतलब ये तो नहीं कि हम कर्म करना छोड़ दें ।जीवन कब खुद के अनुरूप चलता है ।कभी कभी हालात हमसे वो करा देते हैं ,जिनका ताउम्र अफ़सोस रहता है ।कुछ लोग ऐसे भी होते है जो योग्य होते हुए भी सफलता प्राप्त नहीं कर पाते ।जीवन की विषम परिस्तिथि उनको आगे बढ़ने से रोक देती हैं 
और इंसान खुद को सिर्फ यही कहकर समझा लेता है कि जो हुआ अच्छा ही हुआ ।इंसान के हाथों में कुछ भी तो नहीं ,सिवाय कर्म करने के ।लेकिन जो विपरीत परिस्थितियों में भी समायोजन करके निरंतर प्रयासरत रहते हैं ,वही जीवन में आगे बढ़ पाते हैं ।
"ख्वाइशों की भट्टी में जो उबलता है रात दिन ,
इंसान वही पा लेता है अपनी सुनहरी मंजिल एक दिन ।।"

Wednesday 14 December 2016

versha varshney {यही है जिंदगी }: १२८.मिठास

versha varshney {यही है जिंदगी }: १२८.मिठास: छू गयी दिल को मेरे तेरी यही दिल लुभाने की अदाएं , कितना नेह है भरा दिल में तेरे , क्या सच में मैं इतनी ही मीठी हूँ , या फिर ये सिर्फ...

१२८.मिठास

छू गयी दिल को मेरे तेरी यही दिल लुभाने की अदाएं ,
कितना नेह है भरा दिल में तेरे ,
क्या सच में मैं इतनी ही मीठी हूँ ,
या फिर ये सिर्फ एक बहम है मीठा सा ।
गर ये सच है तो क्यों दुखाते हो दिल मेरा ।
क्या मेरे दुःख से तुम्हें तनिक भी पीर नहीं होती । हाँ छूना चाहती थी मैं भी आस्मां जैसे दिल को तेरे ,
भागना चाहती थी मैं भी कभी तेरी हंसी के साथ
शायद कुछ तो कमी थी मेरी आराधना में ,
जो अधूरी ही रही मेरी पूजा ।
पत्थर थे तुम ,
पाषाण ही तो थे जो कभी समझ ही न पाए मेरी व्यथाको|
कोई गम नहीं ,ये तो प्रकृति है तुम्हारी ,
कभी तो नम हो ही जाएंगी आँखें तुम्हारी ,
जब अंधेरों में कोई दीप झिलमिलायेगा ।
झलक मेरी पाकर एक बूंद पानी की आँखों से निकल कर जब पूछेगी ,
बताओ न क्या गलती थी मेरी ,
जो फेंक दिया तुमने मुझे बारिश की एक बूंद समझकर|
मैं मात्र एक बूंद ही तो नहीं थी,
'वर्षा 'हूँ आज भी सिर्फ तुम्हारी ।।

                                              १२७.प्रेम

प्रेम सिर्फ.............. प्रेम करना जानता है ,
गलत सही का भेद करना उसे कब आता है ।

१२६.मेरी कुछ अनुभूतियां साहित्यपिडिया पर ,


http://sahityapedia.com/%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE-68419/

हाँ तुमने सच कहा मैं खो गयी हूँ ,
झील की नीरवता में ,जो देखी थी कभी तुम्हारी आँखों में ।
तुम्हारी गुनगुनाहट में ,जो सुनी थी कभी उदासियों में ।
तुम्हें याद हो या न हो मुझे आज भी वो स्वप्न याद है ।
हाँ शायद वो स्वप्न ही तो था ,जो मैंने सच साँझ लिया था ।
खुद को ढूंढने की व्यर्थ एक नाकाम सी कोशिश कर रही हूँ आज भी ।
शायद वो पथरीले रास्ते आज भी मुझे लुभाते हैं ,जिन पर तुम्हारे साथ चलने लगी थी कभी ।
जिंदगी कितनी बेबस हो जाती है कभी कभी ।
हम जानते हैं प्यार मात्र एक छलावा ही तो है ,
फंस जाते हैं फिर भी पार होने की आशा में ।
हाँ सच है खुद को ढो रही हूँ मैं आज भी तुम्हारी ख्वाइशों को तलाशने में ।
क्या कभी तुम मुझे किनारा दे पाओगे ,
क्या कभी जिंदगी को राह मिल पाएगी ?
सुलग रही है एक आशा न जाने क्यों ,
एक कटु सत्य के साथ आज भी ।
हाँ शायद खुद को बहला रही हूँ मैं ,
किसी मीठे भ्रम के साथ ,झूठी आशाओं की गठरी लिए अपने नाजुक कन्धों पर ।
सही कहा तुमने आज भी खुद को सिर्फ छल रही हूँ मैं ,आज भी खुद को छल रही हूँ मैं
किसी स्वप्न के साकार होने की अद्भुत ,अनहोनी पराकाष्ठा की सुखद अनुभूति में ।।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

                                १२५.नींद 

नींद भी हो गई है बिलकुल तुम्हारे जैसी ,
आँखों में रहकर भी दूर रहती है ।।

                                       १२४.नफरत 

नफरतों में ही जीना चाहता है हर इंसान 
क्यूकी प्यार से है वो परेशान 
जीना सिखा है जिसने बस नफरतों में ही 
क्या सिखाएगा किसी को वो हैवान 
जलता है घर किसी का क्यूँ खुश होता है 
आज वो हर इंसान ,
जिसने न सीखा मदद करना कभी किसी की 
वो क्या देगा अपने बच्चों को पैगाम
कर रहे हो आज जो वही तो सीखेगा
कल जो आने वाला  है मेहमान
फिर मत देना दोष कल को
क्यूकि वही तो है तुम्हारा फरमान ||

                                  १२३.आशिकी

क्यों मजबूर होते हैं हम दिल के आगे
क्यों नहीं समझते अपनी सीमाओं को
क्यों चाहता है दिल उड़ना आसमान में पछियों की तरह 
क्यों भागता है मन संसार से 
होते हैं मन में सवाल कई 
फिर भी बस चलते ही रहते हैं 
जिंदगी भर कुछ पाने की तलाश में
जानते हुए भी रहते हैं अनजान इस
तरह जैसे न जानते हों अपनी हक़ीक़त को
यही तो सच है फिर भी चाहता है
दिल शायद कुछ मिल जाए आशिकी में 

                                                 १२१.कला 

जीवन जीने की कला किताबों से नहीं ,सिर्फ अनुभव से ही प्राप्त की जा सकती है ।।


                          १२२.बरगद 
बरगद के पेड़ों तले खुशबू ढूंढने वाले,
अकेले ही रह जाते हैं ।
सफर में जब तक साथ ही न हो रंगीला ,
महक कैसे आएगी सूखे पत्तों से ।

                      १२०.जय श्री कृष्णा ,मेरी रचना सौरभ दर्शन (राजस्थान)में


११८.
साधारण व्यक्ति को समझने के लिए ,
दिमाग की नहीं दिल की जरूरत होती हैं ।
कब समझ पाते हैं लोग ईमानदारी को ,
जिनकी फितरत ही सिर्फ नफरत होती है ।।












११९.
ऐ जिंदगी,
जब भी जीने के लिए वजह ढूँढ़नी चाही ,
तेरा नया फरमान आ गया ।
हम डूबते रहे लहरों के खेल में ,
जब भी किनारा पकड़ना चाहा ।।

                                   ११७.बेटी

विदा हुई जब बेटी अपनी आँखों में आंसूं आ गए ,
लाये थे बनाकर जिसे बहू आँखों में आंसूं भर दिए ।
क्यों बदल गयी वो रीत पुरानी बेटी की शादी पर ,
बहू के अरमानों के जिसने टुकड़े टुकड़े कर दिए ।
बेटी के माँ बाप होना ही गुनाह अनौखा हो गया ,
टुकड़ा दिल का ही चंद मिनटों में पराया हो गया ।
किसने बनायी ये रीत पुरानी ,जहाँ बेटी परायी होती है ,
देखकर समाज के खोखले रिवाज दिल अपना टूट गया ।
कब बदलेगा समाज हमारा कब ???????????????


                                 ११६.उम्मीद 


उम्मीद की चाहत छोड़ दी मैंने ,
जबसे खून का रंग सफेद हो गया ।