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Saturday 29 July 2017

                                 १२६,,गेरुआ 

लिबास पहनकर गेरुआ बैठ संतों के संग !
मान लिया ढोंगियों ने खुद को प्रभु का अंग ।!


न जाने किसकी तलाश है ,
हर दिन जिंदगी लगती ख़ास है !!

आजाद देश के परिंदे रहते आज उदास हैं ,
महफ़िल में आज भी कहकहों के तख्तो ताज हैं !!


                                        १२५,अहसास

 जय श्री कृष्णा ,मेरी कविता अहसास saahitypedia पर ,

http://sahityapedia.com/13%E0%A4%85%E0%A4%B9%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B8-84827/


जर्रा जर्रा वक़्त का जैसे रो रहा था ,
आंसुओं से कोई चेहरा भिगो रहा था ।
मासूम थी मोह्हबत कहीं सिर झुकाए ,
हर घड़ी कोई दिल में यादों के जख्म चुभो रहा था।
प्यार की भाषा कब दे पाती है कोई परिभाषा ,
दिल क्यों दिल को यकीन दिला रहा था
दर्द था कोई मीठा सा अनजान की यादों का ,
सुनने को बेताब दिल आवाज किसी की,
दिल को खामोशी से सहला रहा था ।
कब समझती है मोह्हबत कायदे और कानून ,

एक भीगा सा अहसास जैसे कोई गुनगुना रहा था ।

                                १२४, हरियाली तीजें 

जय श्री कृष्णा मित्रो ,हरियाली तीजों की आप सभी को बहुत बहुत बधाई ।
आज के दिन माँ गौरा विरहाग्नि में तपकर शिवजी से मिली थी ।

न रहे वो सावन के झूले ,
न गीतों की बौछार है ।
रह गया एक रिवाज बनकर ,
                               प्रीत भरा त्यौहार है ।

                                          १२३,इश्क 

न इश्क़ गुनाह न खुदा गुनहगार ,
दिल का है सारा कसूर ।।
बनाकर सपनों को प्यार ,
आंखों को देता आँसू हजार ।।


जिंदगी को जीना है तेरी नजरों से !
ऐ जिंदगी एक बार तो सजा दे मुझे !!

                                   १२२,समय 




समय व्यस्त है ,
जिंदगी व्यस्त है !
एक दिल ही आजाद है ,
वर्ना मौत भी व्यस्त है !!

                             १२१,दैनिक करंट क्राइम 

जय श्री कृष्णा मित्रो ,मेरी दो कविता 17/7/17 को नई दिल्ली से प्रकाशित दैनिक करंट क्राइम में ।

                            १२०,गीत अकेले हो गए 

ॐ नमः शिवाय जय भोले की मित्रो ,मेरी कविता सौरभ दर्शन पाक्षिक भीलवाड़ा (राजस्थान) में ,

Sunday 16 July 2017

                              ११९,कशमकश

जय श्री कृष्णा मित्रो शुभ संध्या ,मेरी कविता अग्रज्ञान (भोपाल )साप्ताहिक पेपर में ,



                         ११८,मासूम बचपन 

जय श्री कृष्णा ,मेरी कविता भिवाड़ी (अलवर ) से प्रकाशित साप्ताहिक पेपर जननिष्ठा में ,


Thursday 13 July 2017

                                ११७,कविता 

जय श्री कृष्णा ,मेरी कविता मुंबई की मासिक पत्रिका जयविजय के जुलाई अंक में ,आभार संपादक मंडल ।

                               ११६,बेटी और बहू

जय श्री कृष्णा मित्रो ,मेरी रचना आज 10/7/17,को नई दिल्ली से प्रकाशित दैनिक करंट क्राइम में ।

Sunday 9 July 2017

                                    ११५ कविता              


जय श्री कृष्णा ,मेरी दो कविताएं नई दिल्ली से प्रकाशित आज 9/7/17के दैनिक करंट क्राइम में ,आभार संपादक मंडल

1भुला क्यों नहीं देते वो हर्फे गजल ,
मुखड़ा हूँ मैं जिसका कुछ तन्हा सा ।
चांदनी में गुजारी थी कई रातें तेरी यादों में ,
अश्क़ हूँ वही कोई प्यासा सा ।
अंदाज भी जुदा था तेरे रुखसार का ,
परिंदा तो नहीं था एक मेरा दिल ।

जानशी था वो महकता गजरा तेरे खयालों सा ।
तू चाहे तो एक अश्क़ भी मोती बन सकता था ,
दिल मे भरा था मेरे प्यार जिंदगी भर का
गजल कहूँ या कविता ऐ हमनसी तुझको
तू है मेरी मैकदा , मैं हूँ तेरा प्याला एक अदना सा ।


2दिल जार जार है ना जाने किसका इंतजार है ,
आंखों में हैं आंसूं पर लबों पे इनकार है ।
बेखुदी है प्यार की या रुसबाइयों का जहर है ,
इरादों में हमारे आज भी जंग का इजहार है ।
सलवटें हैं इरादों में या फिक्र है जमाने की ,
दिलों में जाने क्यों छिड़ी रार ही रार है ।
गम हैं बेइंतहा जिधर भी नजर उठाइये ,
कब्र है दिलों की और बेईमान बहार है ।
रवायतों पर आज भी फना है इश्क़ ,
कैद में है बुलबुल,रकीब पर जा निसार है।




मयखाने में बंद है शराब की बोतलें कुछ इस कदर ,
सड़क पर है इंसानियत ,रोशन हुए बाजार हैं ।
शौक ऐ दिल्लगी का न इस कदर फरमाइए ,,
कि लगता आज इश्क़ भी सिर्फ बाजारू इसरार है ।।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

                                         ११४.डिप्रेशन 

जय श्री कृष्णा
मेरा लेख बदायूं एक्सप्रेस पर ,
http://www.badaunexpress.com/good-morning/a-3227/
महिलाओं में डिप्रेशन क्यों होता है? क्या कभी किसी ने इस बात पर गौर करने की कोशिश की है ?क्या डिप्रेशन सिर्फ कामकाजी महिलाओं में ही होता है? घरेलू महिलाएं क्या इससे अछूती है ?कौन कब किस स्थिति से गुजर रहा है /गुजर रही है ,क्या इसका सामने वाला जरा भी अनुमान लगा सकता है ? जीवन की विभिन्न परिष्तिथियाँ ,हार्मोन परिवर्तन ,सामाजिक दायरे कुछ ऐसी घटनाएं उत्पन्न कर देते हैं जहां खुद को सामान्य रखना कभी कभी डिप्रेशन में पहुंचा देता है । यदि एक औरत अपनी बातों को किसी से साझा करती भी है तो सामने वाला व्यक्ति उसको नकारात्मक का उलाहना देकर चुप कर देता है ।यहां ये भी सोचने वाली बात है कि हर व्यक्ति की सामाजिक स्थिति में बहुत अंतर होता है ।किसी से भी अपनी बात को समझने की उम्मीद करना यानि खुद को दुखी करना ही है ।एक स्त्री के जीवन में बचपन से लेकर बृद्धावस्था तक बहुत सारे शारीरिक परिवर्तन होते हैं ,जिनकी वजह से भी वो कभी कभी स्वयं को हताश समझने लगती है । यहां एक बात गौर करने योग्य है कि ऐसी स्थिति में घर परिवार वालों का सकारात्मक सहयोग ही उसको उस स्थिति से निकाल सकता है ।
“कमजोर नहीं हम बलशाली हैं ,
धरती की तरह हिम्मत वाली हैं ।
गुजर जाएंगे ये भी कठिन दिन ,
स्वयं को यही याद दिलानी है ।”
एक औरत स्वयं को भुलाकर अपनोँ के लिए जीती है तो क्या आप सभी का फ़र्ज नहीँ कि उसको भी कुछ खुशियां दें।आइये आज से हम स्वयं को कमजोर न समझकर आगे बढ़ें ।ये जिंदगी हमें भी खुश रहने के लिए मिली है ,फिर सारी दुनिया से सिर्फ हमसे ही उम्मीद क्यों ?
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

Thursday 6 July 2017

                            ११३,सोच भी संकुचित हो जाती है 

जय श्री कृष्णा मित्रो ,मेरी रचना जोधपुर के सुप्रसिद्ध "दैनिक नवज्योति " में ,


Wednesday 5 July 2017

                                    ११२,पुनर्जन्म 

जय श्री कृष्णा मित्रो ,

क्या वास्तव में पुनर्जन्म होता है ? इस तथ्य को लेकर सदियों से एक अवधारणा चली आ रही है  ! एक ही परिवार में जन्म लेने वालों का जरूर आपस में पिछला नाता होता है ,तभी तो सभी परेशान आत्मा और सुखी आत्मा एक ही जगह जन्म लेती हैं ! अक्सर देखने में आता है कि यदि एक परिवार में माँ का भाग्य ख़राब है तो बेटी को वही सब कुछ मिलता है ! आप लाख कोशिश करके भी  उसका भाग्य नहीं बदल पाते ! हम जो सोचते हैं वो कब होता  है .वही होता है जो हमारे नसीब में लिखा होता है ! प्रत्येक माँ बाप सोचते हैं  कि हम अपने बच्चों को खुद से ज्यादा शिक्षित करेंगे  ,हमने जो जीवन गुजारा है ऐसा अपने बच्चों के साथ नहीं होने देंगे ,लेकिन क्या ऐसा संभव होता है ? नहीं  ,लेकिन क्यूँ ? क्यूकी हमारा उनसे पिछला नाता है और हम सभी ने मिलकर कुछ ऐसा किया जिससे सभी परेशां हैं  !अक्सर जिंदगी हमें कुछ अनजान लोगों से मिलाती है ,लगता है ये हमारी समस्या को हल करने आये हैं !न कोई रिश्तेदारी ,न कोई खून का रिश्ता ,फिर ऐसा कैसे होता है ? यही तो पिछला नाता है ,जो हमें किसी न किसी मोड़ पर मिल ही जाता है ! लोगों को कहते सुना है जरूर हमारा पिछले जन्म में कोई रिश्ता था ,जो आज हम मिल गए !क्यूँ किसी की ओर अनायास हमारा ध्यान बढ़ता ही जाता है /?क्यूँ कोई अनजान हमें खुद से भी ज्यादा अजीज लगने लगता है ? काश इस पुनर्जन्म को समझने के लिए कोई जादू होता और हम अपने प्रश्न का उत्तर पा जाते ? 

Tuesday 4 July 2017

                                               १११,आंसू 

आंसुओं से दोस्ती करने वालों को आराम कहाँ ,
भीड़ भरी दुनिया में मिलते हैं सिर्फ़ गमों के निशान यहां।

                                  ११० .शेर 

अदाओं की बस्ती में खंजर पे खून भी बेमानी है ,
माचिस की जरूरत कहाँ लफ्जों में बसी ,
जुल्म और आग की नापाक ...........कहानी है ।

                                     १०९ ,दिल 

जय श्री कृष्णा मित्रो ,मेरी रचना सौरभ दर्शन पाक्षिक (भीलवाड़ा )राजस्थान में 

                                           १०८ .शेर 

तुझे भी हुआ तो होगा मुझे खोने का दर्द,
जब भी कभी तन्हाई ने रुलाया होगा ।
जरूरी तो नही कत्ल इरादों का होना ,
वो बात और है वर्षा ,
मुस्करा कर जमाने को दिखाया होगा ।

                                   १०७.आगमन 

Thank u so much aagman parivaar n Pawan jain sir .
Pawan Jain added 4 new photos — with
Versha Varshney and 3 others.
आगमन समूह की पश्चिमाञ्चल उत्तरप्रदेश इकाई में निम्न पदाधिकारियों को मनोनीत करते हुए हम गौरवान्वित हैं ..अन्य पदाधिकारियों एवं कार्यकारणी सदस्यों की घोषणा शीघ्र की जाएगी
श्री चैतन्य चेतन ( बरेली ) ...अध्यक्ष
श्रीमती अलका गुप्ता ( मेरठ ) ...उपाध्यक्ष
श्री विनोद कुमार वर्मा (गाजियाबाद ) ....महासचिव
श्रीमती वर्षा वार्ष्णेय ( अलीगढ ) ......सचिव
आगमन परिवार की ओर से चैतन्य जी , अलका जी , विनोद जी , वर्षा जी को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाए

                            १०६.वीर जवान 

जय श्री कृष्णा ,धन्यवाद"अग्रज्ञान "साप्ताहिक( भोपाल )

                                         १०५,रिश्ते 

रिश्तों को निभाना ही शायद जुर्म था मेरा ,
देती रही दुनिया हर बार वही जख्म पुराना ।
ऐ काश मैं पहले की तरह पत्थर की होती ।काश गुरुजी आपने मुझे मोम न बनाया होता । जी रही थी अपनी बेरुखी के साथ ,काश मुझे यूँ समझाया न होता । एक स्त्री के लिए स्त्री होना इतना मुश्किल क्यों है ?क्यों उसे दूसरों के बंधन में जीना होता है उम्र भर ?आपने कहा था ,स्त्री एक स्वतंत्र व्यक्तित्व है लेकिन कहाँ ?किस जगह ? यदि ऐसा है तो हमारे समाज मे सिर्फ स्त्रियों के लिए ही एक दायरा क्यों है पुरुषों के लिए क्यों नहीं ?हमारा समाज आज भी ऊपर से दिखावा करता है नारी की आजादी का लेकिन क्या वास्तविकता यही है ?इस पुरूष प्रधान समाज मे कितनी महिलाएं अपनी अभिव्यक्ति को व्यक्त करने की हिम्मत रखती हैं । एक डर उन्हें हमेशा कुछ भी कहने से रोकता है । क्या जो मान्यताएं पुरूष के लिए हैं वो एक स्त्री के ऊपर लागू हो सकती हैं । क्यों सदियों से सारे नियम औरतों के लिए ही बनाये जाते हैं । बचपन से लेकर बृद्धावस्था तक क्यों औरत के लिए सामाजिक बंधन तय किये जाते हैं । आज भी जब तक एक औरत सबकी इच्छानुसार जीती है वो महान , जिसने भी अपने लिए कुछ अलग सोच बनाई वो चरित्र हीन ।लेकिन ऐसा क्यों ??????,क्या कोई आदर्शवादी पुरुष इन बातों को समझा पाया है ।जब वेदों की रचियता एक नारी हो सकती है तो नारी को ही वेदों को पढ़ने पर पाबंदी क्यों ?????????
यही दोगलापन एक औरत को बेबसी की जिंदगी जीने को मजबूर करता है और वो यूँ ही घुट घुट कर ताउम्र जीती हुई भी मुर्दा ही रहती है ।।

                                     १०४.सौगात 

फिर से आएगा कोई नया दौर जिंदगी में
दे जाएगा फिर से कोई पुरानी यादें ।
छलक जाएगा फिर से गम का प्याला ,
भुलाने की कोशिश में यादों की बारातें ।
न शिकवा रहेगा न कोई गिला होगा ,
जीत जाएंगे जब हम तुझसे तेरी यादें ।
खुश रहने की अदा भी सुकून दिलाएगी ,
न होगी शायद जब जिंदगी तेरी सौगातें ।

                                १०३,सच्चाई 

जय श्री कृष्णा मित्रो ,
मेरी रचना सौरभ दर्शन भीलवाड़ा (राजस्थान )में ,थैंक्स संपादक मंडल ।


आपने कुछ जीवन में खोया ,
आपने कुछ जीवन में पाया ।
इन दोनों के बीच में थी ,
जर जोरू और जमीन।
सबकी समीक्षा करने बैठी 
जब मैं ,अगले ही पल
दिमाग मे एक ख़्याल आया ।
मुश्किल है सुख दुख को समझना ,
जाना पड़ेगा विद्वानों की नगरी
जश्न धन का जिन्होंने मनाया ।
कैसे रच पाती रामायण हमारी ,
जो न होती मृग मारीच की माया ।
कैसे होती महाभारत सम्पूर्ण ,
जो न होता नारी का शोषण वहां ।
कैसे लिखी जाती राजनीति की कहानी ,
साकार होती हैं जहां नित्य पट कथाएं
बनाकर मोहरा ,सियासत रंजिश
और जमीन की अनकही भावनाएं ।
खोने और पाने के बीच में ,
गहरी है कहीं खाई ,
अजूबा ही रही जिंदगी को
समझने की छोटी सी चतुराई ।
रिश्ते ,नाते ,यारी सब झूठ है भाई ,
कैसे निभा पाएंगे आज के दौर में
बिन पैसों के रिश्तों की सच्ची गहराई ।
कौन भाई ,कौन है बहना यहां ,
भूल गए माँ बाप को भी ।
आज सिर्फ याद है तो बस ,
जर ,जोरू और जमीन की
झूठी लेकिन यथार्थ सोने सी सच्चाई ।

                                      १०२ पिता 

पिता एक अबूझ कहानी ,
न आंखों में आंसूं ,
न होठों पर बातें पुरानी ।
लगे रहते चुपचाप कर्म में ,
लगाकर दिल में नेह और प्यार 
की फसल की जिम्मेदारी ।
माँ है धरती तो पिता है आकाश ,
कैसे पूर्ण हो पाती ,
बिन आकाश के धरती की
प्यास भरी जिंदगानी ।

                                    १०१,गजल 

कतरा कतरा जिंदगी ,खुद को न जीने दे 
मायूस सी बेखुदी गम को न पीने दे।

उलझकर टूट न जाएँ कहीं ये तारे ,
चाँद की नजाकत वक़्त को समझने न दे।

महफूज थी चांदनी कभी अपनी उदासियों में,
बिखर रही है आज चाँद के आगोश में ,

मंजिलों की लगी ऐसी तलब जिंदगी को,
सहकर सौ जख्म भी खुद को खोने न दे।।

                                      १०० ,लेख 

Badayun Express par mera lekh,
http://www.badaunexpress.com/badaun-supar/a-2644/
कभी कभी बहुत ज्यादा चिड़चिड़ाहट होने लगती है । दिल किसी भी काम में नहीं लगता । एक अजीब सी बैचैनी दिल में घर बनाने लगती है ।क्यों होता है ऐसा ,क्या ये एक रोग है या कुछ और ?आइये कुछ बातों पर रोशनी डालने की कोशिश करते हैं । आज की दुनिया सिर्फ स्वार्थ से भरी हुई है ।जिधर देखो उधर सभी सिर्फ अपने मतलब में लगे हुए हैं । कुछ लोग अचानक मिलते हैं ।भावुक लोगों को अपनी बातों में उलझाकर अचानक ही दूर होने लगते हैं । आज तक यही समझ नहीं आता ,आखिर ऐसा क्यों हो जाता है ? शायद जिंदगी हर मोड़ पर हमें सबक देती है । ज्ञानी की तरह रास्ता दिखाने की कोशिश करती है ,लेकिन इन बातों में बेचारे दिल का क्या कसूर ? कब ,कैसे ,कोई आपका सगा बन जाता है और कब पराया समझ ही नहीं आता । जो कभी आपसे बोलने के लिए हर पल तैयार रहते हैं ,अचानक मुंह फेरने लगते हैं । क्या यही संसार है ?क्या यही दोस्ती है ?क्या यही प्यार है ? नहीं दुनिया सिर्फ स्वार्थ का दूसरा नाम है मेरी नजरों में ।आप सभी का क्या विचार है ?
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

                                          ९९.शेर 

काश,
किसी की हँसी के पीछे छिपे दर्द को कोई पढ़ पाता ।
न होती जिंदगी अकेली जो हमदर्द कोई मिल जाता।।

                                      ९८.गरीबी 

जय श्री कृष्णा मित्रो ,मेरी कविता "गरीबी "द ग्रामोदय विज़न झांसी और मऊरानीपुर से प्रकाशित 

                                          ९७.शेर 

१.इरादा छोड़ दिया था दिल लगाने का ,
न जाने क्यों तेरा अक्स नजर आ गया !

२.ये इश्क़ भी अजब चीज है , 
साल दो साल चलता है । 
महंगाई ही इतनी है यारो , 
बीबी से बात करना भी , 
कुछ ही दिनों बाद "वर्षा "
दाल रोटी के जैसा लगता है ।।

                                        ९६.कविता 

जय श्री कृष्णा ,मेरी कविता मुम्बई की मासिक पत्रिका जय विजय के जून अंक में ,