१३९,लेख
कैसे समझ पायेगा कोई दर्द को ,
लकीरों से कब जख्म भर पाते हैं ।
अश्क़ देने वालों में शामिल है नाम उनका भी ,
दे जाते हैं जिल्लत जो माँ बाप का फर्ज भूलकर ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
versha varshney {यही है जिंदगी } जय श्री कृष्णा मित्रो, यही है जिंदगी में मैंने मेरे और आपके कुछ मनोभावों का चित्रण करने की छोटी सी कोशिश की है ! हमारी जिंदगी में दिन प्रतिदिन कुछ ऐसा घटित होता है जिससे हम विचलित हो जाते हैं और उस अद्रश्य शक्ति को पुकारने लगते हैं ! हमारे और आपके दिल की आवाज ही परमात्मा की आवाज है ,जो हमें सबसे प्रेम करना सिखाती है ! Bec Love iS life and Life is God .
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जब तक इंसान बाहरी मोह में फंसा हुआ है ,आंतरिक खुशी को महसूस ही नहीं कर सकता । विषय वासना इंसान को उम्र भर स्वयं से अपरिचित ही रहने देती हैं ।स्वयं को पहचानने के लिए भोगों से मुक्त होना जरूरी है । इंसानी स्वभाव है कि वो जो कुछ भी करता है ,उसके बदले की आशा जरूर रखता है । दुनियादारी और मोह उसे खुद से दूर करते चले जाते हैं और यहीं से एक नई बीमारी जन्म लेती है अवसाद की । अवसाद यानि डिप्रेशन -hypertenstion ,high Bp । जब अपनी सारी तमन्नाओं को दबाकर हम दूसरों की इच्छाओं की तृप्ति में लग जाते हैं वहीं हमारे अंदर नकारात्मक विचार पैदा होने लगते हैं । इस संसार का एक नियम है जब तक आपकी जरूरत है सामने वाला हर व्यक्ति आपकी इज्जत करता है लेकिन जब वही जरूरत खत्म हो जाती है उस व्यक्ति को आपके अंदर कमियां ही कमियां नजर आने लगती हैं ।आप ईमानदारी के साथ अपने कर्तव्य पालन में लगे रहते हैं लेकिन स्वयं को भुलाकर खुद को असहनीय कष्ट भी देते हैं ।जरा सोचिए क्या आपके किये हुए अच्छे कार्य किसी को समझ आते हैं ? क्या हम खुद को भूलकर दूसरों को खुशी दे सकते हैं ।देखने मे तो ये बातें स्वार्थपूर्ण लगती हैं लेकिन यह भी उतना ही सत्य है जितना जिंदगी और मौत । तो क्यों न हम खुद की खुशियों को भी नजरअंदाज न करें ।कुछ समय खुद के लिए भी निकालें ।प्रतिदिन योग को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं जिससे हम स्वयं को भी पहचान पाएं ।जब हम खुश होंगे तभी औरों को भी खुश रख सकते हैं वरना ताउम्र बीमारी और दवाओं का बोझ लेकर घूमते रहना ही हमारी मजबूरी बन जाएगी।
एक स्वस्थ व्यक्ति ही देश और समाज की उन्नति में सहायक बन सकता है ।
एक अंतिम और कड़वा सत्य तो यही है ,जो स्वयं खुश है वही दूसरों को भी खुशियां दे सकता है ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
15 अगस्त भारत के 71वे स्वतंत्रता दिवस की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं ।
जय भारत जय हिंद
हिंदी ,हिन्दू ,हिन्दुतान ,
भारत की सही पहचान ।
सर्वधर्म समानता ,
विश्व में इसकी शान ।
जय श्री कृष्णा ,आप सभी को मेरे कान्हा के जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई । दिल से लिखी एक कविता मेरे प्यार मेरे कृष्णा को समर्पित करती हूं ।आभार सौरभ दर्शन साप्ताहिक पत्र भीलवाड़ा (राजस्थान) 12/8/17 .
प्यार हो तुम
दिल का अहसास हो तुम
संजोया था कभी ख्वाब में
उसी ख्वाब का राज हो तुम
भूल जाती हूँ जिंदगी को भी
उस जिंदगी का साज हो तुम
बाबरी हो गयी बनकर मीरा
ओ मेरे प्राण मेरे कृष्णा हो तुम।
बांसुरी की धुन पर दौड़ आयी थी कभी
वही राधा के कृष्णा हो तुम।
चाहती हूं बन जाऊं तेरे होठों की बंशी
ओ गोपाला मेरे कान्हा हो तुम।
लगन मेरी बुझा देना ओ सांवरे,
मेरे दिल के छैला हो तुम।
जला दी प्रेम की बाती
मेरे सूने से आंगन में ।
राधा के श्याम
रुक्मणी के भरतार हो तुम।
प्यार में तेरे बनकर बाबरी
सुध बुध अपनी भुला बैठी।
ओ कृष्णा मुझे कभी न भुला देना।
मेरी नैया मेरे जीवन की पतवार हो तुम।
सब कुछ कह दिया ओ गिरधारी ,
मेरी सूनी जिंदगी के रिश्तेदार हो तुम।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़