
versha varshney {यही है जिंदगी } जय श्री कृष्णा मित्रो, यही है जिंदगी में मैंने मेरे और आपके कुछ मनोभावों का चित्रण करने की छोटी सी कोशिश की है ! हमारी जिंदगी में दिन प्रतिदिन कुछ ऐसा घटित होता है जिससे हम विचलित हो जाते हैं और उस अद्रश्य शक्ति को पुकारने लगते हैं ! हमारे और आपके दिल की आवाज ही परमात्मा की आवाज है ,जो हमें सबसे प्रेम करना सिखाती है ! Bec Love iS life and Life is God .
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Thursday, 4 May 2017
५९ ,आँखें
जय श्री कृष्णा ,आज /13 /4/17 के राष्ट्रीय समाचार पत्र दैनिक हमारा मेट्रो में मेरी रचना ,
आंखें राज खोलती हैं जीवन की व्यथा का ,
उस अंतहीन सफर का जिसे कोई भी न जान सका ।
डूबती रही जिंदगी तूफानों के उतार चढ़ाव में ,
क्या इंसान दिल की सच्चाई पहचान सका ।
प्यार पाने को इस जीवन में ठोकरें खाता रहा ,
नामंजूर हुई इबादत फिर भी सिर झुकता ही रहा ।
गगरी हो मिट्टी की या हो फिर आंखों की कोर ,
छलक ही जाती है जब प्रीत की दिल मे हो घटा घनघोर
साये भी दूर होने लगें "वर्षा "जब अपने साये से छिटक कर,
भर आती है ना जाने क्यों आंखों की मधुशाला ओ कृष्णा चितचोर ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ
५५,दुनिया और हम
http://sahityapedia.com/%E0%A4%A6%E0%A5%81%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%B9%E0%A4%AE-79186/
हैरान हो जाती हूँ दुनिया को देखकर ,
समझ में कुछ नहीं आता ।
भरते हैं जो हर पल दावा वफ़ा का ,
भुलाने में क्यों एक पल भी नहीं जाता ।
झरते हैं आँखों से अश्क कुछ इस तरह ,
जैसे बिन बादल की बरसात हो ।
रोते हैं छिप कर दीवारों से भी ,
जिन्हें महफ़िल में रोना नहीं आता ।
जख्म हैं या इलाही किसी चोट के
या कर्मों का जनाजा निकाला है ।
गैरों के साथ रहते हैं फक्र से ,
अपनों का दर्द सहा नहीं जाता ।
दरिया दिल होकर भी हाथ मलते रहे ,
जाने क्यों मरहम भी फ्री नहीं आता ।
जश्ने इश्क़ में भुला दिया खुद को ,
कुछ इस तरह जैसे दर्द से नहीं है ,
अपना जन्मों से कोई नाता ।।
समझ में कुछ नहीं आता ।
भरते हैं जो हर पल दावा वफ़ा का ,
भुलाने में क्यों एक पल भी नहीं जाता ।
झरते हैं आँखों से अश्क कुछ इस तरह ,
जैसे बिन बादल की बरसात हो ।
रोते हैं छिप कर दीवारों से भी ,
जिन्हें महफ़िल में रोना नहीं आता ।
जख्म हैं या इलाही किसी चोट के
या कर्मों का जनाजा निकाला है ।
गैरों के साथ रहते हैं फक्र से ,
अपनों का दर्द सहा नहीं जाता ।
दरिया दिल होकर भी हाथ मलते रहे ,
जाने क्यों मरहम भी फ्री नहीं आता ।
जश्ने इश्क़ में भुला दिया खुद को ,
कुछ इस तरह जैसे दर्द से नहीं है ,
अपना जन्मों से कोई नाता ।।
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