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Sunday, 24 January 2021

 165,#

उन्मुक्त हँसी परिचायक है

धीरता की ,गंभीरता की
छलावा नहीं ये दिल का
आतिश है ये चिंगारी की ....

प्रेम वो नहीं; आये, खाना खाया और सो गए ।प्रेम तो वो है जो अपनी कहे और दूसरे की सुने ।प्रेम वो है जो दूसरे इंसान की आँखों में आँसू ही न आने दे ।प्रेम आजकल की आधुनिक वस्तुएँ नहीं माँगता ,बल्कि सामने वाले से वो वक़्त माँगता है जिसमें एक दूसरे की भावनाओं को समझने का वक़्त मिल सके । विवाह एक पवित्र बंधन है और विवाह करने वाले अलग परिवेश में पले बड़े दो ऐसे इंसान जिन्हें प्रेम के अलावा दुनिया की कोई भी चीज नहीं बाँध ही नहीं सकती।विवाह किसी समझौते का नाम कैसे हो सकता है । हर लड़की लड़के के मन में अपने जीवन साथी को लेकर बहुत सारे सपने होते हैं लेकिन विवाह होते ही वो सपने टूटने लगते हैं आखिर ऐसा क्यों, कोई तो कारण रहता होगा ? हाँ वो प्रेम की कमी ही तो है जो उन दोनों की आपसी दूरी को तय ही नहीं कर पाता और .........

Saturday, 23 January 2021

 164,#दुःखद

आदिकाल से औरत को दबाना ही सीखा है ,फिर वो चाहे कोई भी रूप हो ।उसी का नतीजा आज बेटियों की त्रासदी के रूप में जब तब निकलता रहता है और हम सभी अपनी जिम्मेदारियों से मुँह मोड़कर सारा इल्जाम समाज पर थोप देते हैं ।आखिर समाज बना भी किससे है हमसे और आप सभी से मिलकर फिर इल्जाम दूसरों पर क्यों ?
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

 163.नई दिल्ली से प्रकाशित, #वुमेन एक्सप्रेस में .......28/9/20


 162,जय श्री कृष्ण मित्रो ,आपका दिन शुभ हो ।मेरा लेख ग्वालियर से प्रकाशित #श्री राम एक्सप्रेस में ,हार्दिक आभार आदरणीय

Harish Upadhyay

ji .

Gan

 161,जय श्री कृष्ण मित्रो ,अजमेर से प्रकाशित "दैनिक आधुनिक राजस्थान"26/9/20 में मेरी रचना......


 160.जय श्री कृष्ण दुनिया के लिए आप सिर्फ एक भीड़ हैं और अपनों के लिए दुनिया । कोशिश करें कि अपनों का साथ ताउम्र बना रहे 


जिंदगी के तराजू पर कभी
खुद को रखकर तोलना
जो नियम बनाये थे गैरों के लिए
क्या खुद पर सटीक बैठते हैं
वक़्त ने करवट क्या बदली
मेरे अपने ही बदलने लगें
हिजाब पहनने का तो बहाना था
मिजाज उनके बदलने लगे
फुरसत से कभी पढ़ेंगे हम
हाथ की टेड़ी मेढ़ी लकीरों को
बाँचा था जिसने नसीब
उसी के चश्मे बदलने लगे
रसूख क्या करेंगे मोह्हबत का
पैमाइश में जब खोट हो
पुरानी चादरों के बदले
जब तकिए बदलने लगे ।
पर्दा तो मुमकिन है दरारों में ,
दिलों में दरार भरना मुश्किल है
टूट जाता है दिल अक्सर
जब घाव भी रंगत बदलने लगे ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

 159,#यादगार #अंक

#4 का अंक मेरे जीवन का अभिन्न अंग है ।इस #4 के अंक ने मुझे #खुशियाँ भी दीं और किसी से न #बाँट पाने वाले #बेशुमार गम भी । मेरे #जीवन में अब तक जो भी हुआ उसमें स्वतः ही #4 के अंक ने भी प्रवेश कर लिया ,लगता है जीवन का #अंतिम अंक भी #4 ही होगा ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़