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Monday 14 September 2020

गहन उदासी ,

न जाने मन क्यों विचलित होता जाता है 
उम्मीदों की डोर पे बैठा ढेर हुआ जाता है
टूटती और जुड़ती साँसों के बीच लगता है 
कभी कभी क्यों भाग रहे हैं हम व्यर्थ यूँ ही
प्रेम का अस्तित्व होता भी है या सिर्फ झूठ
जिसके सहारे मिटा देते हैं हम अपनावजूद
चंचल मन की अनगिनत इच्छाएँ हर पल 
तोड़ देती हैं जैसे कोई तोड़ता है फूल को
रोने को दिल करता है जोर जोर से और 
लगता है कोई आएगा कन्धे से लगाकर 
कहेगा ..बोल न क्यों बैचैन है तू क्या हुआ 
नहीं ....ये तो सिर्फ एक हसीन ख्वाब है
जो पूरा न होने की कगार पर दम तोड़ 
रहा है ,प्रेम सिर्फ एक शब्द है खुद को 
भ्रम में रखने का आजीवन एक कैद ही 
तो है ,सुंदर सपना आएगा कोई राजकुमार
सपनों की डोली में बैठाकर ले जाएगा
कितना सुंदर झूठा स्वप्न है ना ,अच्छा है 
आँसूओं के पनघट पर कोई रोकना वाला
न हुआ न होगा ,उम्मीदों का झूठा ताज 
टूट क्यों नहीं जाता ,बिखर क्यों नहीं जाते
वो बेरहम से अनगिनत ख्वाब ,जो बैचैन 
हैं आज भी प्रेम की पराकाष्ठा को छूने के लिए ,प्रेम का मनमोहक बाग सजाने के लिए ।