versha varshney {यही है जिंदगी } जय श्री कृष्णा मित्रो, यही है जिंदगी में मैंने मेरे और आपके कुछ मनोभावों का चित्रण करने की छोटी सी कोशिश की है ! हमारी जिंदगी में दिन प्रतिदिन कुछ ऐसा घटित होता है जिससे हम विचलित हो जाते हैं और उस अद्रश्य शक्ति को पुकारने लगते हैं ! हमारे और आपके दिल की आवाज ही परमात्मा की आवाज है ,जो हमें सबसे प्रेम करना सिखाती है ! Bec Love iS life and Life is God .
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Wednesday 28 December 2016
१३२.शब्द
जय श्री कृष्णा मित्रो,
मेरी एक और रचना "सौरभ दर्शन "पाक्षिक पेपर में , ।
शब्द जब प्रत्याशा बन जाते हैं,
टूटे हुए दिलों पर मरहम रखकर ,
जीने की राह दिखा जाते हैं ।
अभिलाषाओं से भरे जीवन में
जब भी पतझड़ आता है ,
राह दिखाने सूनी राहों में ,
प्यार का मधुर अहसास जगा जाते हैं ।
अछूता कौन है जिंदगी की सच्चाई से ,
हर पल जलते हुए शोलों में ,
जैसे ठंढी हवा चला जाते हैं ।
आओ समेट कर सारी इच्छाओं को फिर से कहीं
इनके आँचल तले सो जाते हैं ।।
।।2।।
अल्फाजों को स्वर्ण समझो ,
तारीफ़ को आभूषण ।।
साहित्य है विधा उसकी ,
लेखन जिसका धन ।।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
मेरी एक और रचना "सौरभ दर्शन "पाक्षिक पेपर में , ।
शब्द जब प्रत्याशा बन जाते हैं,
टूटे हुए दिलों पर मरहम रखकर ,
जीने की राह दिखा जाते हैं ।
अभिलाषाओं से भरे जीवन में
जब भी पतझड़ आता है ,
राह दिखाने सूनी राहों में ,
प्यार का मधुर अहसास जगा जाते हैं ।
अछूता कौन है जिंदगी की सच्चाई से ,
हर पल जलते हुए शोलों में ,
जैसे ठंढी हवा चला जाते हैं ।
आओ समेट कर सारी इच्छाओं को फिर से कहीं
इनके आँचल तले सो जाते हैं ।।
।।2।।
अल्फाजों को स्वर्ण समझो ,
तारीफ़ को आभूषण ।।
साहित्य है विधा उसकी ,
लेखन जिसका धन ।।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
१३१,कशमकश
कशमकश से भरी जिंदगी कब सुकून देती है ।
चलते तो हैं लोग सभी मंजिलो की तरफ ,
होते हैं कितने खुशनसीब ,मंजिल पनाह देती है ।
गुजर गए वो बीते पल भी खुशियों की चाहत में ,
आज का पल भी गुजर ही जाएगा जिंदगी में ।
चलते रहना ही जिंदगी है ...............दोस्तों ,
जाने क्यों जिंदगी हर कदम इम्तहान लेती है ।।
चलते तो हैं लोग सभी मंजिलो की तरफ ,
होते हैं कितने खुशनसीब ,मंजिल पनाह देती है ।
गुजर गए वो बीते पल भी खुशियों की चाहत में ,
आज का पल भी गुजर ही जाएगा जिंदगी में ।
चलते रहना ही जिंदगी है ...............दोस्तों ,
जाने क्यों जिंदगी हर कदम इम्तहान लेती है ।।
(17/12/16)mera golden chance miss ho gaya .I am very upset .shayad jo hota hai usmen kuch acchai hi hoti hai .
१२९.नसीब
जय श्री कृष्णा मित्रो ,
जन्म मृत्यु यश अपयश सब बिधि के हाथ ही तो है ।जो बातें हम अपने लिए सोचते हैं ,वो शायद ही कभी पूरी हो पाती हैं ।इसका मतलब ये तो नहीं कि हम कर्म करना छोड़ दें ।जीवन कब खुद के अनुरूप चलता है ।कभी कभी हालात हमसे वो करा देते हैं ,जिनका ताउम्र अफ़सोस रहता है ।कुछ लोग ऐसे भी होते है जो योग्य होते हुए भी सफलता प्राप्त नहीं कर पाते ।जीवन की विषम परिस्तिथि उनको आगे बढ़ने से रोक देती हैं और इंसान खुद को सिर्फ यही कहकर समझा लेता है कि जो हुआ अच्छा ही हुआ ।इंसान के हाथों में कुछ भी तो नहीं ,सिवाय कर्म करने के ।लेकिन जो विपरीत परिस्थितियों में भी समायोजन करके निरंतर प्रयासरत रहते हैं ,वही जीवन में आगे बढ़ पाते हैं ।
"ख्वाइशों की भट्टी में जो उबलता है रात दिन ,
इंसान वही पा लेता है अपनी सुनहरी मंजिल एक दिन ।।"
जन्म मृत्यु यश अपयश सब बिधि के हाथ ही तो है ।जो बातें हम अपने लिए सोचते हैं ,वो शायद ही कभी पूरी हो पाती हैं ।इसका मतलब ये तो नहीं कि हम कर्म करना छोड़ दें ।जीवन कब खुद के अनुरूप चलता है ।कभी कभी हालात हमसे वो करा देते हैं ,जिनका ताउम्र अफ़सोस रहता है ।कुछ लोग ऐसे भी होते है जो योग्य होते हुए भी सफलता प्राप्त नहीं कर पाते ।जीवन की विषम परिस्तिथि उनको आगे बढ़ने से रोक देती हैं और इंसान खुद को सिर्फ यही कहकर समझा लेता है कि जो हुआ अच्छा ही हुआ ।इंसान के हाथों में कुछ भी तो नहीं ,सिवाय कर्म करने के ।लेकिन जो विपरीत परिस्थितियों में भी समायोजन करके निरंतर प्रयासरत रहते हैं ,वही जीवन में आगे बढ़ पाते हैं ।
"ख्वाइशों की भट्टी में जो उबलता है रात दिन ,
इंसान वही पा लेता है अपनी सुनहरी मंजिल एक दिन ।।"
Wednesday 14 December 2016
versha varshney {यही है जिंदगी }: १२८.मिठास
versha varshney {यही है जिंदगी }: १२८.मिठास: छू गयी दिल को मेरे तेरी यही दिल लुभाने की अदाएं , कितना नेह है भरा दिल में तेरे , क्या सच में मैं इतनी ही मीठी हूँ , या फिर ये सिर्फ...
१२८.मिठास
छू गयी दिल को मेरे तेरी यही दिल लुभाने की अदाएं ,
कितना नेह है भरा दिल में तेरे ,
क्या सच में मैं इतनी ही मीठी हूँ ,
या फिर ये सिर्फ एक बहम है मीठा सा ।
गर ये सच है तो क्यों दुखाते हो दिल मेरा ।
क्या मेरे दुःख से तुम्हें तनिक भी पीर नहीं होती । हाँ छूना चाहती थी मैं भी आस्मां जैसे दिल को तेरे ,
भागना चाहती थी मैं भी कभी तेरी हंसी के साथ
शायद कुछ तो कमी थी मेरी आराधना में ,
जो अधूरी ही रही मेरी पूजा ।
पत्थर थे तुम ,
पाषाण ही तो थे जो कभी समझ ही न पाए मेरी व्यथाको|
कोई गम नहीं ,ये तो प्रकृति है तुम्हारी ,
कभी तो नम हो ही जाएंगी आँखें तुम्हारी ,
जब अंधेरों में कोई दीप झिलमिलायेगा ।
झलक मेरी पाकर एक बूंद पानी की आँखों से निकल कर जब पूछेगी ,
बताओ न क्या गलती थी मेरी ,
जो फेंक दिया तुमने मुझे बारिश की एक बूंद समझकर|
मैं मात्र एक बूंद ही तो नहीं थी,
'वर्षा 'हूँ आज भी सिर्फ तुम्हारी ।।
कितना नेह है भरा दिल में तेरे ,
क्या सच में मैं इतनी ही मीठी हूँ ,
या फिर ये सिर्फ एक बहम है मीठा सा ।
गर ये सच है तो क्यों दुखाते हो दिल मेरा ।
क्या मेरे दुःख से तुम्हें तनिक भी पीर नहीं होती । हाँ छूना चाहती थी मैं भी आस्मां जैसे दिल को तेरे ,
भागना चाहती थी मैं भी कभी तेरी हंसी के साथ
शायद कुछ तो कमी थी मेरी आराधना में ,
जो अधूरी ही रही मेरी पूजा ।
पत्थर थे तुम ,
पाषाण ही तो थे जो कभी समझ ही न पाए मेरी व्यथाको|
कोई गम नहीं ,ये तो प्रकृति है तुम्हारी ,
कभी तो नम हो ही जाएंगी आँखें तुम्हारी ,
जब अंधेरों में कोई दीप झिलमिलायेगा ।
झलक मेरी पाकर एक बूंद पानी की आँखों से निकल कर जब पूछेगी ,
बताओ न क्या गलती थी मेरी ,
जो फेंक दिया तुमने मुझे बारिश की एक बूंद समझकर|
मैं मात्र एक बूंद ही तो नहीं थी,
'वर्षा 'हूँ आज भी सिर्फ तुम्हारी ।।
१२६.मेरी कुछ अनुभूतियां साहित्यपिडिया पर ,
http://sahityapedia.com/%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE-68419/
हाँ तुमने सच कहा मैं खो गयी हूँ ,
झील की नीरवता में ,जो देखी थी कभी तुम्हारी आँखों में ।
तुम्हारी गुनगुनाहट में ,जो सुनी थी कभी उदासियों में ।
तुम्हें याद हो या न हो मुझे आज भी वो स्वप्न याद है ।
हाँ शायद वो स्वप्न ही तो था ,जो मैंने सच साँझ लिया था ।
खुद को ढूंढने की व्यर्थ एक नाकाम सी कोशिश कर रही हूँ आज भी ।
शायद वो पथरीले रास्ते आज भी मुझे लुभाते हैं ,जिन पर तुम्हारे साथ चलने लगी थी कभी ।
जिंदगी कितनी बेबस हो जाती है कभी कभी ।
हम जानते हैं प्यार मात्र एक छलावा ही तो है ,
फंस जाते हैं फिर भी पार होने की आशा में ।
हाँ सच है खुद को ढो रही हूँ मैं आज भी तुम्हारी ख्वाइशों को तलाशने में ।
क्या कभी तुम मुझे किनारा दे पाओगे ,
क्या कभी जिंदगी को राह मिल पाएगी ?
सुलग रही है एक आशा न जाने क्यों ,
एक कटु सत्य के साथ आज भी ।
हाँ शायद खुद को बहला रही हूँ मैं ,
किसी मीठे भ्रम के साथ ,झूठी आशाओं की गठरी लिए अपने नाजुक कन्धों पर ।
सही कहा तुमने आज भी खुद को सिर्फ छल रही हूँ मैं ,आज भी खुद को छल रही हूँ मैं
किसी स्वप्न के साकार होने की अद्भुत ,अनहोनी पराकाष्ठा की सुखद अनुभूति में ।।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
१२४.नफरत
नफरतों में ही जीना चाहता है हर इंसान
क्यूकी प्यार से है वो परेशान
जीना सिखा है जिसने बस नफरतों में ही
क्या सिखाएगा किसी को वो हैवान
जलता है घर किसी का क्यूँ खुश होता है
आज वो हर इंसान ,
जिसने न सीखा मदद करना कभी किसी की
वो क्या देगा अपने बच्चों को पैगाम
कर रहे हो आज जो वही तो सीखेगा
कल जो आने वाला है मेहमान
फिर मत देना दोष कल को
क्यूकि वही तो है तुम्हारा फरमान ||
क्यूकी प्यार से है वो परेशान
जीना सिखा है जिसने बस नफरतों में ही
क्या सिखाएगा किसी को वो हैवान
जलता है घर किसी का क्यूँ खुश होता है
आज वो हर इंसान ,
जिसने न सीखा मदद करना कभी किसी की
वो क्या देगा अपने बच्चों को पैगाम
कर रहे हो आज जो वही तो सीखेगा
कल जो आने वाला है मेहमान
फिर मत देना दोष कल को
क्यूकि वही तो है तुम्हारा फरमान ||
१२३.आशिकी
क्यों मजबूर होते हैं हम दिल के आगे
क्यों नहीं समझते अपनी सीमाओं को
क्यों चाहता है दिल उड़ना आसमान में पछियों की तरह
क्यों भागता है मन संसार से
होते हैं मन में सवाल कई
फिर भी बस चलते ही रहते हैं
जिंदगी भर कुछ पाने की तलाश में
जानते हुए भी रहते हैं अनजान इस
तरह जैसे न जानते हों अपनी हक़ीक़त को
यही तो सच है फिर भी चाहता है
दिल शायद कुछ मिल जाए आशिकी में
क्यों नहीं समझते अपनी सीमाओं को
क्यों चाहता है दिल उड़ना आसमान में पछियों की तरह
क्यों भागता है मन संसार से
होते हैं मन में सवाल कई
फिर भी बस चलते ही रहते हैं
जिंदगी भर कुछ पाने की तलाश में
जानते हुए भी रहते हैं अनजान इस
तरह जैसे न जानते हों अपनी हक़ीक़त को
यही तो सच है फिर भी चाहता है
दिल शायद कुछ मिल जाए आशिकी में
११७.बेटी
विदा हुई जब बेटी अपनी आँखों में आंसूं आ गए ,लाये थे बनाकर जिसे बहू आँखों में आंसूं भर दिए ।
क्यों बदल गयी वो रीत पुरानी बेटी की शादी पर ,
बहू के अरमानों के जिसने टुकड़े टुकड़े कर दिए ।
बेटी के माँ बाप होना ही गुनाह अनौखा हो गया ,
टुकड़ा दिल का ही चंद मिनटों में पराया हो गया ।
किसने बनायी ये रीत पुरानी ,जहाँ बेटी परायी होती है ,
देखकर समाज के खोखले रिवाज दिल अपना टूट गया ।
कब बदलेगा समाज हमारा कब ???????????????
Saturday 19 November 2016
Friday 18 November 2016
११३.प्यार
आज का कटु सत्य :
न रहा वो दौर स्नेह का ,न वो अटूट ..बंधन रहा ।
भाई भी आंकने लगा अब प्यार को सामान से,
बहन भी प्यार का हिसाब उपहार से लगाने लगी।
खो गयी वो प्यार मनुहार की रसीली बातें ,
प्यार ,प्यार न होकर सिर्फ एक सौदा बन रहा ।
-----–----------------//////////// -----–-----------/
फितरत इंसान की जाने क्या क्या करा देती है ,
बहन को व्यापारी खुद को दुकानदार बना देती है ।
न रहा वो दौर स्नेह का ,न वो अटूट ..बंधन रहा ।
भाई भी आंकने लगा अब प्यार को सामान से,
बहन भी प्यार का हिसाब उपहार से लगाने लगी।
खो गयी वो प्यार मनुहार की रसीली बातें ,
प्यार ,प्यार न होकर सिर्फ एक सौदा बन रहा ।
-----–----------------////////////
फितरत इंसान की जाने क्या क्या करा देती है ,
बहन को व्यापारी खुद को दुकानदार बना देती है ।
१११.दिवाली और पटाखे
मेरी कविता साहित्यपिडीया पर ,
http://sahityapedia.com/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%AA%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%96%E0%A5%87-66114/
दिये की रौशनी में अंधेरों को भागते देखा ,
अपनी खुशियों के लिए बचपन को रुलाते देखा।
दीवाली की खुशियां होती हैं सभी के लिए,
वही कुछ बच्चों को भूख से सिसकते देखा ।
दिए तो जलाये पर आस पास देखना भूल गए ,
चंद सिक्कों के लिए बचपन को भटकते देखा।
क्या होली ,क्या दिवाली माँ बाप के प्यार से महरूम कुछ मासूम को अकेले मे बिलखते
देखा ।
जल रहा था दिल मेरा देखकर जलते हुए पटाखों को ,
लगायी थी कल ही दुत्कार सिर्फ एक रोटी के लिए ,
आज उसी धनवान को नोटों को जलाते देखा ।
मनाकर तो देखो दिवाली को एक नए अंदाज में ,
पाकर कुछ नए उपहार मासूमों को मुस्कराते देखा ।
"दिये तो जलाओ पर इतना याद रहे ,
अँधेरा नहीं जाता सिर्फ दीये जलाने से ।
क्यों न इस दिवाली पर कुछ नया कर जाएँ ,
उठाकर एक अनौखी शपथ ,
न रहे धरा पर कोई भी भूखा हमारे आस पास ,
चलो मिलकर त्यौहार का सही मतलब बता जाएँ ।।"
देखो देखो आयी न चेहरे पर कुछ मुस्कराहट ,
आज सदियों बाद त्यौहार को समझते देखा ।।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
अपनी खुशियों के लिए बचपन को रुलाते देखा।
दीवाली की खुशियां होती हैं सभी के लिए,
वही कुछ बच्चों को भूख से सिसकते देखा ।
दिए तो जलाये पर आस पास देखना भूल गए ,
चंद सिक्कों के लिए बचपन को भटकते देखा।
क्या होली ,क्या दिवाली माँ बाप के प्यार से महरूम कुछ मासूम को अकेले मे बिलखते
देखा ।
जल रहा था दिल मेरा देखकर जलते हुए पटाखों को ,
लगायी थी कल ही दुत्कार सिर्फ एक रोटी के लिए ,
आज उसी धनवान को नोटों को जलाते देखा ।
मनाकर तो देखो दिवाली को एक नए अंदाज में ,
पाकर कुछ नए उपहार मासूमों को मुस्कराते देखा ।
"दिये तो जलाओ पर इतना याद रहे ,
अँधेरा नहीं जाता सिर्फ दीये जलाने से ।
क्यों न इस दिवाली पर कुछ नया कर जाएँ ,
उठाकर एक अनौखी शपथ ,
न रहे धरा पर कोई भी भूखा हमारे आस पास ,
चलो मिलकर त्यौहार का सही मतलब बता जाएँ ।।"
देखो देखो आयी न चेहरे पर कुछ मुस्कराहट ,
आज सदियों बाद त्यौहार को समझते देखा ।।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
Sunday 30 October 2016
Happy Diwali
जय गणेश ,जय माँ लक्ष्मी ।
शुभ दीपावली ,आप सभी को दिवाली की अनगिनत शुभकामनाएं ।माँ लक्ष्मी आप सभी को अपार खुशियां दें ।
Thursday 20 October 2016
१०९ .करवा चौथ
आप सभी को करवा चौथ की ढेर सारी शुभकामनाएँ ।कृपया करवा चौथ पर पत्नी का मजाक न बनाएं।
आप सभी के लिए मेरी ओर से कुछ पंक्तियां :
सौंप दिया तुमको जीवन ,
भुलाकर जिसने अपना बजूद ।
गुजार दिया जिसने जीवन ,
खोकर अपनी अभिलाषा ।
कैसे हो सकती है वो नारी
सिर्फ प्रताड़ना की अधिकारी ।
निभाती हर कदम पर साथ तुम्हारा ,
चाहे सुख हो या फिर हो ग़मों की छांव ।
क्या देते उस नारी को तुम बदले में ,
सिर्फ और सिर्फ झूठा और फूहड़ मजाक ।।
नारी ही वो शक्ति है सहकर दुनिया के सारे दुःख,
दुनिया से लड़ जाती है सिर्फ तुम्हारे बजूद के लिए ।
गर पत्नी दुःख का जरिया है ,
तो क्यों वो लड्डू खाते हो ,
रहकर तो देखो तनहा सारी उम्र
क्यों खुद का ही मजाक बनाते हो ।
पति पत्नी हैं गाडी के दो पहिये ,
बिन एक दूसरे के दोनों अधूरे हैं ।
यही है वो अटूट रिश्ता ,
जिसने सृष्टि को जोड़ा है ।
भुलाकर जिसने अपना बजूद ।
गुजार दिया जिसने जीवन ,
खोकर अपनी अभिलाषा ।
कैसे हो सकती है वो नारी
सिर्फ प्रताड़ना की अधिकारी ।
निभाती हर कदम पर साथ तुम्हारा ,
चाहे सुख हो या फिर हो ग़मों की छांव ।
क्या देते उस नारी को तुम बदले में ,
सिर्फ और सिर्फ झूठा और फूहड़ मजाक ।।
नारी ही वो शक्ति है सहकर दुनिया के सारे दुःख,
दुनिया से लड़ जाती है सिर्फ तुम्हारे बजूद के लिए ।
गर पत्नी दुःख का जरिया है ,
तो क्यों वो लड्डू खाते हो ,
रहकर तो देखो तनहा सारी उम्र
क्यों खुद का ही मजाक बनाते हो ।
पति पत्नी हैं गाडी के दो पहिये ,
बिन एक दूसरे के दोनों अधूरे हैं ।
यही है वो अटूट रिश्ता ,
जिसने सृष्टि को जोड़ा है ।
१०८,एक पत्नी का पत्र फौजी पति के नाम
एक पत्नि का अपने फौजी पति के नाम पत्र- ;
छलक जाती हैं मेरी आँखें तुम्हें जाते हुए देखकर ,अब कब आओगे सहम जाती हूँ सिर्फ यही सोचकर |
अगले ही पल खुद को संभाल लेती हूँ मैं ,क्या हुआ गर तुम पास नहीं हो मेरे ,तुम्हारा प्यार तो मेरे पास है|
जरूरी नहीं मेरे पास रहना तुम्हारा ,”भारत माँ”_ को तुम्हारी मुझसे ज्यादा जरूरत है |
क्या हुआ गर बेटा पूछता है मुझसे , माँ पापा कब आयेंगे ?क्या हुआ गर बेटी को तुम्हारी याद सताती है |
सुला देती हूँ अक्सर दोनों को प्यार से लोरी सुनाकर|
माँ भी तुम्हें बहुत याद करती हैं, बाबूजी भी उदास है तुम्हें पास न पाकर |
आ रही है फिर से करवा चौथ और दिवाली ,सहम जाती हूँ फिर से यही सोचकर ,
कैसे सजाऊँगी बिन तुम्हारे जिंदगी के वो पल ,फीके हैं बिन तुम्हारे मेरे श्रृंगार ,
समझा लेती हूँ दिल को फिर यही सोचकर ,क्या हुआ गर तुम इस बार नहीं आओगे ?
कितनी ही माँओं की आस तुम बचाओगे |सिन्दूर बचाओगे कितनी ही बहनों का दुश्मनों से टक्कर लेकर |
“मैं कितनी खुशनसीब हूँ जो पाया तुम्हें जीवन साथी के रूप में |मत होना कभी उदास “ऐ प्यार मेरे “सलाम करती हूँ आज मैं फिर से तुम्हारे जज्बों को ,खुश हूँ मैं बहुत तुम्हें अपनी जिंदगी में पाकर |”
यूँ तो आसान नहीं होता बिन तुम्हारे अकेले रहना ,अगले ही पल तन जाता है गर्व से सर मेरा ,
जब देखती हूँ तुम्हें “भारत माँ_” के लिए अपनी खुशियों की कुर्बानी और सर्वस्व न्यौछावर करते हुए |
हाँ मुझे पूर्ण विश्वास है तुम आओगे जरूर एक दिन हम सबके लिए ढेर सारी खुशियाँ लेकर बहुत सारा प्यार लेकर |
तुम्हारी अर्धांगिनी
जय हिन्द जय भारत
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
संगम बिहार कॉलोनी गली न.३ नगला तिकोना रोड सुरेंद्रनगर अलीगढ़
१०७ बेटियां
मेरी रचना"सौरभ दर्शन "राजस्थान में आपके समक्ष समीक्षा के लिए ।
नाजों से पाली बेटियां क्यों हो जाती हैं परायी ,
कहने को लक्ष्मी ,पर लक्ष्मी के लिए हर पल सताई जाती हैं क्यों बेटियां ।
वो गौरी है गर बचपन में ,कब पत्थर बन कर घरों में सज गयी ।
यूँ तो घर की मालकिन ,फिर हर पल क्यों रुलाई जाती हैं बेटियां ।
बाबुल के घर में महकती थी जो गुलाबों की तरह हर पल ,
ससुराल में हर दूसरे पल क्यों जलाई जाती हैं बेटियां ।
रखकर कलेजे पर अपने पत्थर ,बाबुल ने विदा कर दिया ,
न सोचा एक पल भी किसी ने माँ बाप के ह्रदय की विशालता ,
जख्मों को बनाकर एक नासूर ,क्यों हर पल रुलाई जाती हैं बेटियां ।
१०६ सम्मान समारोह
जय श्री कृष्णा मित्रो शुभ संध्या ,अक्रूर धाम गोपीनाथ फाउंडेशन मथुरा वृंदावन के तत्वाधान में बहुप्रतिक्षित श्रीअक्रुरग्रन्थ का विमोचन १६ अक्टूबर को आगरा रोड स्थित कैलाश फार्म अलीगढ़ में आयोजित किया गया |ग्रन्थ का विमोचन अखिल भारतीय श्री वैश्य बारह्सैनी महासभा के संरक्षक श्यामाचरण वार्ष्णेय की पत्नी ,डीजीपी आसाम प्रदीप कुमार ,राष्ट्रीय अध्यक्ष इंद्रकुमार गुप्ता आदि सम्मानित सदस्यों द्वारा किया गया | इस अवसर पर पूर्व महापौरआशुतोष वार्ष्णेय ,पूर्व महापौर सावित्री वार्ष्णेय आदि समाज के काफी वरिष्ठ सम्मानित सदस्य भी उपस्थित थे | इस कार्यक्रम में मेरा भी काव्य पाठ, अक्रूर धाम फाउंडेशन और अखिल भारतीय श्री वैश्य बारह्सैनी महासभा की महामंत्री सुनीता वार्ष्णेय द्वारा सम्मान किया गया | ये मेरे लिए बहुत हीअद्भुत अनुभूति रही | अक्रूर धाम गोपीनाथ फाउंडेशन और सुनीता वार्ष्णेय दीदी का मैं तहेदिल से आभार व्यक्त करती हूँ | धन्यवाद ;
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
Wednesday 12 October 2016
Pls vote my dhevti
Gd evng jai shree krishna
Hi, Everyone Vote for "gungun varshney" as cutest baby - Just open below link and click like button to Vote http://www.parentingnation.in/baby-photo-contest-india/Babyname_gungun_varshney_293934
Sunday 2 October 2016
१०१. यादें
यादें
http://sahityapedia.com/%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%82-3-8183/
जैसे कोई बुझता हुआ दीपक ,
तेज रोशनी से अँधेरे को रोशन कर जाए ।
यादों से आज भी कुछ गुलशन महके हुए लगते है ।
तेज रोशनी से अँधेरे को रोशन कर जाए ।
यादों से आज भी कुछ गुलशन महके हुए लगते है ।
मस्ती कहाँ थी जाम को पीने की ,
वो तो मजबूरी थी यादों को भुलाने की
पीने दे ऐ साकी फिर से तेरी नजरों से
आज भी कशिश है बाकी उनकी यादों की ।।
वो तो मजबूरी थी यादों को भुलाने की
पीने दे ऐ साकी फिर से तेरी नजरों से
आज भी कशिश है बाकी उनकी यादों की ।।
कभी सोचा था वीराने भी किसी सजा से कम नहीं ,
आज जाने क्यों वो खंडहर भी अपने जैसे लगते हैं ।
१००,कवितायें
लखनऊ, दिल्ली और नागपुर से प्रकाशित पत्र रीडर टाइम्स में अलीगढ़ की विदुषी कवित्री वर्षा वार्षणये की दो रचनाएं।
।बहुत बहुत धन्यबाद रीडर टाइम्स और भाई जी (मेहंदी अब्बास रिजवी जी जो स्वयं एक बहुत प्रसिद्ध हस्ती हैं ),आपकी कलम ने जो इज्जत मुझे बख्शी है उसके लिए मैं आपकी तहेदिल से शुक्रगुजार हूँ ।आपके शब्दों को मैं फिर से लिख रही हूँ :
"वर्षा वार्ष्णेय हिंदी साहित्य में पहचान को मुहताज नहीं |अंग्रेजी साहित्य मनोविज्ञान औरअर्थशास्त्र में स्नातक , शिक्षण कार्य से भी जुडी रहीं |लेखन एवं कविता लिखना एक लम्बे समय से दिनचर्या रही है |"यही है जिंदगी"_ कविता संग्रह जिसका प्रमाण है | "नारी गौरव" से सम्मानित वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़ में वास करती हैं |
"शुक्रिया भाई जी "
1.सागर मंथन से निकलता है जब अमृत ,
पीने को उतावले सब हो जाते हैं ।।
पर जहर का भरा हुआ कलश ,
त्याग कर भोग को उतावले हो जाते हैं ।।
जिंदगी का सुख अगर तुमने लिया ,
तो दुःख भी तुम्हारा है ।।
क्यों भूलकर इस सत्य को ,
कुछ इंसान सन्यासी बन जाते हैं ।।
2.सत्ता के गलियारे चौखट और चमकते नज़ारे ,
हर मानव मन की उत्कंठा के वो अजीब से नारे
धोखा ,नजाकत ,रणनीति से भरे कैसे ये अंधियारे,
चाहत और मद लोलुपता ने बंद कर दिए आँखों के तारे ।।
न दिखाई देते जब राजनीति के कटु पर सत्य नज़ारे ,
फिर कैसे दिखाई देंगे दीनदुखियों के तड़फते हुए दुःख सारे ।।
छलकर झूठ से जो दिखाते हम सब को अनगिनत नज़ारे ,
डूब जाते उसी राजनीती में वो लोलुपता के मारे ।।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
— feeling blessed."वर्षा वार्ष्णेय हिंदी साहित्य में पहचान को मुहताज नहीं |अंग्रेजी साहित्य मनोविज्ञान औरअर्थशास्त्र में स्नातक , शिक्षण कार्य से भी जुडी रहीं |लेखन एवं कविता लिखना एक लम्बे समय से दिनचर्या रही है |"यही है जिंदगी"_ कविता संग्रह जिसका प्रमाण है | "नारी गौरव" से सम्मानित वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़ में वास करती हैं |
"शुक्रिया भाई जी "
1.सागर मंथन से निकलता है जब अमृत ,
पीने को उतावले सब हो जाते हैं ।।
पर जहर का भरा हुआ कलश ,
त्याग कर भोग को उतावले हो जाते हैं ।।
जिंदगी का सुख अगर तुमने लिया ,
तो दुःख भी तुम्हारा है ।।
क्यों भूलकर इस सत्य को ,
कुछ इंसान सन्यासी बन जाते हैं ।।
2.सत्ता के गलियारे चौखट और चमकते नज़ारे ,
हर मानव मन की उत्कंठा के वो अजीब से नारे
धोखा ,नजाकत ,रणनीति से भरे कैसे ये अंधियारे,
चाहत और मद लोलुपता ने बंद कर दिए आँखों के तारे ।।
न दिखाई देते जब राजनीति के कटु पर सत्य नज़ारे ,
फिर कैसे दिखाई देंगे दीनदुखियों के तड़फते हुए दुःख सारे ।।
छलकर झूठ से जो दिखाते हम सब को अनगिनत नज़ारे ,
डूब जाते उसी राजनीती में वो लोलुपता के मारे ।।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
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