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Wednesday 14 December 2016

१२८.मिठास

छू गयी दिल को मेरे तेरी यही दिल लुभाने की अदाएं ,
कितना नेह है भरा दिल में तेरे ,
क्या सच में मैं इतनी ही मीठी हूँ ,
या फिर ये सिर्फ एक बहम है मीठा सा ।
गर ये सच है तो क्यों दुखाते हो दिल मेरा ।
क्या मेरे दुःख से तुम्हें तनिक भी पीर नहीं होती । हाँ छूना चाहती थी मैं भी आस्मां जैसे दिल को तेरे ,
भागना चाहती थी मैं भी कभी तेरी हंसी के साथ
शायद कुछ तो कमी थी मेरी आराधना में ,
जो अधूरी ही रही मेरी पूजा ।
पत्थर थे तुम ,
पाषाण ही तो थे जो कभी समझ ही न पाए मेरी व्यथाको|
कोई गम नहीं ,ये तो प्रकृति है तुम्हारी ,
कभी तो नम हो ही जाएंगी आँखें तुम्हारी ,
जब अंधेरों में कोई दीप झिलमिलायेगा ।
झलक मेरी पाकर एक बूंद पानी की आँखों से निकल कर जब पूछेगी ,
बताओ न क्या गलती थी मेरी ,
जो फेंक दिया तुमने मुझे बारिश की एक बूंद समझकर|
मैं मात्र एक बूंद ही तो नहीं थी,
'वर्षा 'हूँ आज भी सिर्फ तुम्हारी ।।

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