versha varshney {यही है जिंदगी } जय श्री कृष्णा मित्रो, यही है जिंदगी में मैंने मेरे और आपके कुछ मनोभावों का चित्रण करने की छोटी सी कोशिश की है ! हमारी जिंदगी में दिन प्रतिदिन कुछ ऐसा घटित होता है जिससे हम विचलित हो जाते हैं और उस अद्रश्य शक्ति को पुकारने लगते हैं ! हमारे और आपके दिल की आवाज ही परमात्मा की आवाज है ,जो हमें सबसे प्रेम करना सिखाती है ! Bec Love iS life and Life is God .
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Saturday 19 November 2016
Friday 18 November 2016
११३.प्यार
आज का कटु सत्य :
न रहा वो दौर स्नेह का ,न वो अटूट ..बंधन रहा ।
भाई भी आंकने लगा अब प्यार को सामान से,
बहन भी प्यार का हिसाब उपहार से लगाने लगी।
खो गयी वो प्यार मनुहार की रसीली बातें ,
प्यार ,प्यार न होकर सिर्फ एक सौदा बन रहा ।
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फितरत इंसान की जाने क्या क्या करा देती है ,
बहन को व्यापारी खुद को दुकानदार बना देती है ।
न रहा वो दौर स्नेह का ,न वो अटूट ..बंधन रहा ।
भाई भी आंकने लगा अब प्यार को सामान से,
बहन भी प्यार का हिसाब उपहार से लगाने लगी।
खो गयी वो प्यार मनुहार की रसीली बातें ,
प्यार ,प्यार न होकर सिर्फ एक सौदा बन रहा ।
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फितरत इंसान की जाने क्या क्या करा देती है ,
बहन को व्यापारी खुद को दुकानदार बना देती है ।
१११.दिवाली और पटाखे
मेरी कविता साहित्यपिडीया पर ,
http://sahityapedia.com/%E0%A4%A6%E0%A4%BF%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%AA%E0%A4%9F%E0%A4%BE%E0%A4%96%E0%A5%87-66114/
दिये की रौशनी में अंधेरों को भागते देखा ,
अपनी खुशियों के लिए बचपन को रुलाते देखा।
दीवाली की खुशियां होती हैं सभी के लिए,
वही कुछ बच्चों को भूख से सिसकते देखा ।
दिए तो जलाये पर आस पास देखना भूल गए ,
चंद सिक्कों के लिए बचपन को भटकते देखा।
क्या होली ,क्या दिवाली माँ बाप के प्यार से महरूम कुछ मासूम को अकेले मे बिलखते
देखा ।
जल रहा था दिल मेरा देखकर जलते हुए पटाखों को ,
लगायी थी कल ही दुत्कार सिर्फ एक रोटी के लिए ,
आज उसी धनवान को नोटों को जलाते देखा ।
मनाकर तो देखो दिवाली को एक नए अंदाज में ,
पाकर कुछ नए उपहार मासूमों को मुस्कराते देखा ।
"दिये तो जलाओ पर इतना याद रहे ,
अँधेरा नहीं जाता सिर्फ दीये जलाने से ।
क्यों न इस दिवाली पर कुछ नया कर जाएँ ,
उठाकर एक अनौखी शपथ ,
न रहे धरा पर कोई भी भूखा हमारे आस पास ,
चलो मिलकर त्यौहार का सही मतलब बता जाएँ ।।"
देखो देखो आयी न चेहरे पर कुछ मुस्कराहट ,
आज सदियों बाद त्यौहार को समझते देखा ।।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
अपनी खुशियों के लिए बचपन को रुलाते देखा।
दीवाली की खुशियां होती हैं सभी के लिए,
वही कुछ बच्चों को भूख से सिसकते देखा ।
दिए तो जलाये पर आस पास देखना भूल गए ,
चंद सिक्कों के लिए बचपन को भटकते देखा।
क्या होली ,क्या दिवाली माँ बाप के प्यार से महरूम कुछ मासूम को अकेले मे बिलखते
देखा ।
जल रहा था दिल मेरा देखकर जलते हुए पटाखों को ,
लगायी थी कल ही दुत्कार सिर्फ एक रोटी के लिए ,
आज उसी धनवान को नोटों को जलाते देखा ।
मनाकर तो देखो दिवाली को एक नए अंदाज में ,
पाकर कुछ नए उपहार मासूमों को मुस्कराते देखा ।
"दिये तो जलाओ पर इतना याद रहे ,
अँधेरा नहीं जाता सिर्फ दीये जलाने से ।
क्यों न इस दिवाली पर कुछ नया कर जाएँ ,
उठाकर एक अनौखी शपथ ,
न रहे धरा पर कोई भी भूखा हमारे आस पास ,
चलो मिलकर त्यौहार का सही मतलब बता जाएँ ।।"
देखो देखो आयी न चेहरे पर कुछ मुस्कराहट ,
आज सदियों बाद त्यौहार को समझते देखा ।।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
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