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Monday 18 March 2019

130, 11 / 9 / 18 
जय श्री कृष्णा मित्रो आपका दिन शुभ हो !मेरी रचना अगस्त अंक के 'प्रयास 'अंतरराष्ट्रीय पत्रिका कनाडा में ।💐💐
129, 4/ 9 18 
सारे रिश्ते नाते सिर्फ जरूरत तक ही सीमित होते हैं ।जब इंसान ईश्वर को भुला सकता है तो हम तो सिर्फ इंसान हैं ।

मंजिलों पर पहुंचकर भी जज्बात अधूरे ही रहे ,
तन्हा तन्हा जाने क्यों मेरे अरमान रहे।
बस्तियां ईमान की खाकसार हुई ,
मंदिरों में फिर भी घंटा मेहरबान हुए ।

तलब लगी थी बहुत आँसुओं को 
बहकने की गुमनाम अंधेरों में ।
इबादत में डूबे हम कुछ इस तरह ,
दिल पर लगे जख्म भी परेशान हुए ।

चिराग वफाओं के ख़्वाब बनकर रहे
तूफान भी पतवार की तरह चले ।
गुलशन में ताउम्र बिदुओं की तरह ,
पल पल अक्सर खयालों के ताबूत जले ।
128, 31 / 8 18 



127, 30 / 8 18 

"Gd evng friends jai shree krishna ,
एम्स के वो आठ दिन (मेरे एक रिलेटिव का हार्ट का ऑपरेशन )जैसे एक दूसरी दुनिया से रूबरू होना । वहाँ से लौटने के बाद भी आज भी ऐसा लगता है जैसे आज भी वहीं हूँ । हर दूसरे मिनट एक नया दौर ,एक नया ऑपेरशन। न  जाने कितने मासूम बच्चों की हार्ट सर्जरी 😢।ये कैसा दौर है जहाँ बच्चे कुछ समझ भी नहीं पाते और ऑपेरशन थिएटर में पहुंच जाते हैं । शायद आज के माँ बाप अपने बच्चों को लेकर ज्यादा चिंतित हैं या कुछ और ? हर छोटी प्रोब्लम को बड़ा रूप दे देना और डॉ के पास जाना ,नतीजा सारे टेस्ट और ऑपेरशन ।पता नहीं कितने दिन में मेरे मन से  हॉस्पिटल निकल पायेगा ।आखिर इतनी बीमारियों का कोई तो कारण होगा ??कहीं प्रेगनेंसी टाइम में माँ का मोबाइल का ज्यादा प्रयोग करना इन बीमारीयों की जड़ तो नहीं ?
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़"
Gd evng friends jai shree krishna ,
एम्स के वो आठ दिन (मेरे एक रिलेटिव का हार्ट का ऑपरेशन )जैसे एक दूसरी दुनिया से रूबरू होना । वहाँ से लौटने के बाद भी आज भी ऐसा लगता है जैसे आज भी वहीं हूँ । हर दूसरे मिनट एक नया दौर ,एक नया ऑपेरशन। न जाने कितने मासूम बच्चों की हार्ट सर्जरी 😢।ये कैसा दौर है जहाँ बच्चे कुछ समझ भी नहीं पाते और ऑपेरशन थिएटर में पहुंच जाते हैं । शायद आज के माँ बाप अपने बच्चों को लेकर ज्यादा चिंतित हैं या कुछ और ? हर छोटी प्रोब्लम को बड़ा रूप दे देना और डॉ के पास जाना ,नतीजा सारे टेस्ट और ऑपेरशन ।पता नहीं कितने दिन में मेरे मन से हॉस्पिटल निकल पायेगा ।आखिर इतनी बीमारियों का कोई तो कारण होगा ??कहीं प्रेगनेंसी टाइम में माँ का मोबाइल का ज्यादा प्रयोग करना इन बीमारीयों की जड़ तो नहीं ?
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
126. 23/ 8 / 18 
जब सारे रास्ते बंद हो जाते हैं तब सिर्फ एक दोस्ती के रिश्ते में ही अपनत्व नजर आता है ।

125, 15 / 8 / 18 

एक अनजान सा डर 
एक अनजानी सी सदा 
बेहतर को मापने की कोशिश में 
अद्वितीय को मिलती है सजा ।

रूह के फना होने का इंतजार है सभी को ,
आजादी का दर्द भी झूठी मोह्हबत जैसा है ।


124,13/ 8 / 18 

ॐ नमः शिवाय ,माँ पार्वती और शिवजी के मिलन का पवित्र उत्सव आप सभी को अपार खुशियां दे ।कहते हैं इस दिन गौरा विरहाग्नि में तपकर शिव से मिली थीं ।
123 ,10 / 8 / `18 

जय श्री कृष्णा मित्रो ,लखनऊ से प्रकाशित जय विजय पत्रिका के अगस्त अंक में ।

122, 8 / 8 18

"#बलात्कार या मानसिक विक्षिप्तता#
एक चार महीने की बच्ची के साथ बलात्कार की खबर पढ़कर ऐसा लगता है जैसे हम घोर राक्षसी युग में जी रहे हैं ।एक 80 साल की वृद्धा को उसी के घर में शोषण करके मार देना ।आखिर इसका मुख्य कारण क्या है ,क्या कभी इस पर किसी का ध्यान गया है ?कुछ तो वजह होती होंगी इन घिनौनी घटनाओं के पीछे ।
 घरों का माहौल ,हमारे दिए हुए संस्कार इनकी मुख्य वजह होती हैं ।जिन घरों में बच्चों को उचित माहौल नहीं मिलता ,उन घरों के बच्चे अक्सर बिगड़ जाते हैं और ऐसी घटनाओं को अंजाम देते हैं ।जिस तरह बेटियों पर पाबंदी लगाई जाती हैं बेटों पर क्यों नहीं ? अपने बेटों की बातों को सुनकर जब एक पिता हँस जाता है तो बेटे को कुछ भी करने की सहर्ष अनुमति लगती है । आजकल का पहनावा भी बच्चों को गलत राह पर ले जाने के लिए काफ़ी है ।कुछ लोगों का कहना है कि पहनावा गलत नहीं होता मानसिकता गलत होती है । जब बेटियां कुछ भी पहन कर निकलती हैं तो क्या माँ बाप का फर्ज नहीं होता कि वो इन बातों पर ध्यान दें कि उनकी पोशाक कहीं भद्दी तो नहीं लग रही ।क्या फटी हुई जींस हमारी सभ्यता का सबूत है या अंग्रजों की नकल ?जब कोई लड़का सिर्फ बनियान और अंडरबियर पहनकर असभ्य माना जा सकता है तो क्या लड़कियाँ शार्ट टॉप और फैशन के नाम पर कुछ भी पहनकर सभ्यता के दायरे में मानी जा सकती हैं ?आजकल माँ बाप भी इस झूठी फ़ैशन को हंसकर स्वीकार कर लेते हैं और समाज में गलत बात को बढ़ावा मिलता है ।अब जब लड़कियाँ और औरतें होशियार हो रही हैं तब इस समाज के बच्चे भी दूसरे रास्ते अपना रहे हैं और मासूम बच्चियों को अपना आसान सा लगने वाला शिकार बना लेते हैं बिना अंजाम की परवाह किये और नतीजा आज समाज के सामने है ।हमारी so called freeness आज हमारे ही बच्चों को अपना शिकार बना रही है ।दूसरों पर इल्जाम लगाने से पहले सोचिए क्या हम भी तो इन सब बातों के जिम्मेदार नहीं ?
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़"
#बलात्कार या मानसिक विक्षिप्तता#
एक चार महीने की बच्ची के साथ बलात्कार की खबर पढ़कर ऐसा लगता है जैसे हम घोर राक्षसी युग में जी रहे हैं ।एक 80 साल की वृद्धा को उसी के घर में शोषण करके मार देना ।आखिर इसका मुख्य कारण क्या है ,क्या कभी इस पर किसी का ध्यान गया है ?कुछ तो वजह होती होंगी इन घिनौनी घटनाओं के पीछे ।
घरों का माहौल ,हमारे दिए हुए संस्कार इनकी मुख्य वजह होती हैं ।जिन घरों में बच्चों को उचित माहौल नहीं मिलता ,उन घरों के बच्चे अक्सर बिगड़ जाते हैं और ऐसी घटनाओं को अंजाम देते हैं ।जिस तरह बेटियों पर पाबंदी लगाई जाती हैं बेटों पर क्यों नहीं ? अपने बेटों की बातों को सुनकर जब एक पिता हँस जाता है तो बेटे को कुछ भी करने की सहर्ष अनुमति लगती है । आजकल का पहनावा भी बच्चों को गलत राह पर ले जाने के लिए काफ़ी है ।कुछ लोगों का कहना है कि पहनावा गलत नहीं होता मानसिकता गलत होती है । जब बेटियां कुछ भी पहन कर निकलती हैं तो क्या माँ बाप का फर्ज नहीं होता कि वो इन बातों पर ध्यान दें कि उनकी पोशाक कहीं भद्दी तो नहीं लग रही ।क्या फटी हुई जींस हमारी सभ्यता का सबूत है या अंग्रजों की नकल ?जब कोई लड़का सिर्फ बनियान और अंडरबियर पहनकर असभ्य माना जा सकता है तो क्या लड़कियाँ शार्ट टॉप और फैशन के नाम पर कुछ भी पहनकर सभ्यता के दायरे में मानी जा सकती हैं ?आजकल माँ बाप भी इस झूठी फ़ैशन को हंसकर स्वीकार कर लेते हैं और समाज में गलत बात को बढ़ावा मिलता है ।अब जब लड़कियाँ और औरतें होशियार हो रही हैं तब इस समाज के बच्चे भी दूसरे रास्ते अपना रहे हैं और मासूम बच्चियों को अपना आसान सा लगने वाला शिकार बना लेते हैं बिना अंजाम की परवाह किये और नतीजा आज समाज के सामने है ।हमारी so called freeness आज हमारे ही बच्चों को अपना शिकार बना रही है ।दूसरों पर इल्जाम लगाने से पहले सोचिए क्या हम भी तो इन सब बातों के जिम्मेदार नहीं ?
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
121,6/8/18

जय श्री कृष्णा मित्रो आपका दिन शुभ हो।मेरी लघु कथा साहित्यसुधा में, आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार है ।

"श्रद्धा ,
हेलो ,दीपाजी वो अगले हफ्ते जो कार्यक्रम होना था किसी वजह से केंसिल हो गया है ।आप चिंता न करें अगले महीने जब भी कार्यक्रम होगा हम आपको जरूर बुलाएंगे ".........फ़ोन की घंटी बजते ही दीपा को एक झटका लगा । कुछ देर रुककर उसने कहा 'कोई बात नहीं ,लेकिन ये क्या अभी फोन कटा नहीं था ।दीपा ध्यान से उनकी बातें सुनने लगी । "वो लड़की जवान है ,शुक्र है 8 से 10 हजार में मान गयी ।"
ये सुनकर जैसे दीपा आसमान से धरातल पर आ गयी ।गहन मुद्रा में बैठकर सोचने लगी क्या कवि सम्मेलन भी आज सिर्फ एक व्यापार बन चुका है । शुक्र है ईश्वर का उसने उसे समय रहते इस दलदल से बच लिया । उसकी आंखों में खुशी के आँसूं और दिल में एक बार फिर से ईश्वर के लिए अपार श्रद्धा उमड़ने लगी । ईश्वर का शुक्रिया अदा करना था या अपने आंसुओं को रोकना ,उसके कदम बरबस मंदिर की ओर मुड़ गए ।"
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

120,5/8 /18 

रूह से अपनी रूह को मिला दे ,
बिन कहे दिल की बातें समझ ले ।
बन जाये जो जिंदगी आपकी ,
दोस्त वही जो दोस्ती निभा दे ।।
119,,2 /8
/18 
न जाने क्यों कुछ लोग सपने से लगते हैं ,
बिछुड़े हुए जन्मों के ,फिर भी अपने लगते हैं ।
118,जय श्री कृष्णा मित्रो ,
वृंदावन *(31/7/18) बांकेबिहारी ,निधिवन ,यमुना जी के कुछ यादगार पल ! जो होता है उसमें कुछ न कुछ रहस्य छिपा होता है ,बस का पंक्चर होना ,वृंदावन देर से पहुंचना और फिर वर्षों पुरानी निधिवन के दर्शन पूरी होने की इच्छा कुछ ऐसा ही संकेत करती है और मेरी आस्था को और भी मजबूती दे जाती है ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़


117,28 july 
कुछ लोगों को हम ऑक्सीजन की तरह जरूरी समझते हैं और कुछ लोगों के लिए हम सिर्फ कार्बन डाइऑक्साइड बनकर रह जाते हैं ।वर्षा22@
116 ,27 july 2018 
धन्यवाद वर्तमान अंकुर नोएडा ।

115 ,25 july 2018 
लगा है हर तरफ मेला वीरों की शौहरत का ,
किसी को फ़िक्र कहाँ वीर जवानों की 
खायीं थी जब सीने पर गोलियां वतन के लिए ,
जुबान पर शब्द थे उनके जय भारत माँ की।।
वंदेमातरम ,जय हो ।

Sunday 17 March 2019

                                         114,25 july 2018 

दुनिया का सबसे सरल काम किसी का हो जाना और कठिन काम किसी को अपना बना पाना है ।
वर्षा 22@

प्यार की पहली और आखिरी शर्त 
खुद को भुला देना,
फिर वो प्यार अपनों से हो या गैर से 
वर्षा 22@

                                      113 ,24 july 2018 



"राष्ट्रीय कवि संगम" एवं "आगमन " साहित्यिक-सांस्कृतिक समूह के तत्वावधान में दि0 23-07-2018 को हिन्दू इण्टर कॉलेज , अलीगढ़ के सभागार में मासिक काव्य गोष्ठी के रूप में , महाकवि पद्म भूषण गोपालदास "नीरज" को समर्पित "काव्यांजलि" संगोष्ठी का आयोजन हुआ जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ कवि श्री यादराम शर्मा ने की तथा सञ्चालन आदरणीय नरेन्द्र शर्मा "नरेन्द्र" ने किया । सरस्वती-वंदना श्री मुकेश उपाध्याय ने प्रस्तुत की । विशिष्ट अतिथि डॉ. राजेश कुमार (एसो0 प्रोफेसर , बागला डिग्री कॉलेज , हाथरस ) रहे । सभी कवि/कवयित्रियों ने माँ सरस्वती , वीर सेनानी चन्द्र शेखर "आज़ाद" एवं गीत ऋषि "नीरज" जी को पुष्पार्चन एवं दीप-प्रज्ज्वलन कर भावपूर्ण काव्यांजलि प्रस्तुत की । इस आयोजन में सर्वश्री यादराम शर्मा, नरेन्द्र शर्मा "नरेन्द्र" , डॉ. राजेश कुमार , कुँवरपाल उपाध्याय "भँवर", श्री ओ३म वार्ष्णेय , एड. तेजवीर सिंह त्यागी , सुभाषसिंह तोमर , डॉ. दौलतराम शर्मा , मुकेश उपाध्याय , मनोज नागर , भुवनेश चौहान "चिंतन"(खैर) , पाड़ी अलीगढ़ी , आपकी मित्र वर्षा वार्ष्णेय , श्रीमती पूनम शर्मा "पूर्णिमा", सुधांशु गोस्वामी , जितेन्द्र मित्तल एवं राजकुमार "राज" आदि कवि/कवयित्रियों ने अपनी मार्मिक एवं सरस रचनाओं से गीत-ऋषि को काव्यांजलि दी ।नीरज जी के घर भी जाना हुआ जहां पुरानी यादें ताजा हो उठी ।

                                   112 .

जय श्री कृष्णा मित्रो ,सौरभ दर्शन राजस्थान में प्रकाशित ,आभार ।23 july 2018 


                                                  111.

21 july 2018 .मेरी कविता लोकप्रिय अखबार नव ज्योति ...........नव एक्सप्रेस (जोधपुर )में प्रकाशित ,आभार ।


     110 
20 july 2018   
                                  


 महाकवि नीरज जी को दिल से नमन
💐💐💐💐💐💐💐💐💐
वो दौर भी अजीब था ,
खिले खिले थे फूल से ।

ये दौर भी अजब सा है ,

मीत वो दूर से मिले ।
कारवां थम सा गया 
वो मस्तियों के दौर से ।

बिखर रही थी खुशबुएं
मचल रहे अरमान थे ।
जिंदगी के मोड़ में कुछ
ख़्वाब अजीब से पले ।
गमगीन है दिल मेरा ,
जाने क्यों इस दौर से ।
दिल का गुबार मचल रहा ,
कहने को कुछ गौर से ।

आंधियों की क्या बिसात ,
हम भी तो तूफान हैं ।
न टूटने की शाख से खाई है
हमने भी कसम,
वो दौर भी अजीब था ,
ये दौर भी अजब सा है

वो शोखियाँ गुलाब की ,
वो लरजती सी शाम थी
हुस्न आफताब था
चाँद के आगाज से ।
वो दौर भी गुजर गया ,
ये दौर भी गुजर जाएगा
घोल कर तो देखना
फिजाओं में रंग बहार के ,
तोल कर तो देखना
प्यार को गुलाब से ।

चुभन भूल जाओगे ,
खुशबूओं के सामने ,
आएगी जो याद
फिर से आफताब की ।
वो दौर भी गुजर गया ,
ये दौर भी गुजर जाएगा ,
रह जायेगा फिजा में
नाम बस शबाब का ।

जिंदगी की चाल को
कौन समझ पाया है ,
दिल के किसी राज को
दफन करके ही सुकून पाया है ।
वो लोग कुछ और थे ,
ये लोग भी अजीब हैं ।

प्यार के नाम पर बिक जाते हैं
हजारों फूल भी ,
दामन में बस इश्क़ के
काँटों का हसीन साया है ।
वो दौर भी गुजर गया ,
ये दौर भी गुजर जाएगा
वक़्त ने इश्क़ पर बस जुल्म ढाया है ।

वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

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