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Monday 18 March 2019

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"#बलात्कार या मानसिक विक्षिप्तता#
एक चार महीने की बच्ची के साथ बलात्कार की खबर पढ़कर ऐसा लगता है जैसे हम घोर राक्षसी युग में जी रहे हैं ।एक 80 साल की वृद्धा को उसी के घर में शोषण करके मार देना ।आखिर इसका मुख्य कारण क्या है ,क्या कभी इस पर किसी का ध्यान गया है ?कुछ तो वजह होती होंगी इन घिनौनी घटनाओं के पीछे ।
 घरों का माहौल ,हमारे दिए हुए संस्कार इनकी मुख्य वजह होती हैं ।जिन घरों में बच्चों को उचित माहौल नहीं मिलता ,उन घरों के बच्चे अक्सर बिगड़ जाते हैं और ऐसी घटनाओं को अंजाम देते हैं ।जिस तरह बेटियों पर पाबंदी लगाई जाती हैं बेटों पर क्यों नहीं ? अपने बेटों की बातों को सुनकर जब एक पिता हँस जाता है तो बेटे को कुछ भी करने की सहर्ष अनुमति लगती है । आजकल का पहनावा भी बच्चों को गलत राह पर ले जाने के लिए काफ़ी है ।कुछ लोगों का कहना है कि पहनावा गलत नहीं होता मानसिकता गलत होती है । जब बेटियां कुछ भी पहन कर निकलती हैं तो क्या माँ बाप का फर्ज नहीं होता कि वो इन बातों पर ध्यान दें कि उनकी पोशाक कहीं भद्दी तो नहीं लग रही ।क्या फटी हुई जींस हमारी सभ्यता का सबूत है या अंग्रजों की नकल ?जब कोई लड़का सिर्फ बनियान और अंडरबियर पहनकर असभ्य माना जा सकता है तो क्या लड़कियाँ शार्ट टॉप और फैशन के नाम पर कुछ भी पहनकर सभ्यता के दायरे में मानी जा सकती हैं ?आजकल माँ बाप भी इस झूठी फ़ैशन को हंसकर स्वीकार कर लेते हैं और समाज में गलत बात को बढ़ावा मिलता है ।अब जब लड़कियाँ और औरतें होशियार हो रही हैं तब इस समाज के बच्चे भी दूसरे रास्ते अपना रहे हैं और मासूम बच्चियों को अपना आसान सा लगने वाला शिकार बना लेते हैं बिना अंजाम की परवाह किये और नतीजा आज समाज के सामने है ।हमारी so called freeness आज हमारे ही बच्चों को अपना शिकार बना रही है ।दूसरों पर इल्जाम लगाने से पहले सोचिए क्या हम भी तो इन सब बातों के जिम्मेदार नहीं ?
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़"
#बलात्कार या मानसिक विक्षिप्तता#
एक चार महीने की बच्ची के साथ बलात्कार की खबर पढ़कर ऐसा लगता है जैसे हम घोर राक्षसी युग में जी रहे हैं ।एक 80 साल की वृद्धा को उसी के घर में शोषण करके मार देना ।आखिर इसका मुख्य कारण क्या है ,क्या कभी इस पर किसी का ध्यान गया है ?कुछ तो वजह होती होंगी इन घिनौनी घटनाओं के पीछे ।
घरों का माहौल ,हमारे दिए हुए संस्कार इनकी मुख्य वजह होती हैं ।जिन घरों में बच्चों को उचित माहौल नहीं मिलता ,उन घरों के बच्चे अक्सर बिगड़ जाते हैं और ऐसी घटनाओं को अंजाम देते हैं ।जिस तरह बेटियों पर पाबंदी लगाई जाती हैं बेटों पर क्यों नहीं ? अपने बेटों की बातों को सुनकर जब एक पिता हँस जाता है तो बेटे को कुछ भी करने की सहर्ष अनुमति लगती है । आजकल का पहनावा भी बच्चों को गलत राह पर ले जाने के लिए काफ़ी है ।कुछ लोगों का कहना है कि पहनावा गलत नहीं होता मानसिकता गलत होती है । जब बेटियां कुछ भी पहन कर निकलती हैं तो क्या माँ बाप का फर्ज नहीं होता कि वो इन बातों पर ध्यान दें कि उनकी पोशाक कहीं भद्दी तो नहीं लग रही ।क्या फटी हुई जींस हमारी सभ्यता का सबूत है या अंग्रजों की नकल ?जब कोई लड़का सिर्फ बनियान और अंडरबियर पहनकर असभ्य माना जा सकता है तो क्या लड़कियाँ शार्ट टॉप और फैशन के नाम पर कुछ भी पहनकर सभ्यता के दायरे में मानी जा सकती हैं ?आजकल माँ बाप भी इस झूठी फ़ैशन को हंसकर स्वीकार कर लेते हैं और समाज में गलत बात को बढ़ावा मिलता है ।अब जब लड़कियाँ और औरतें होशियार हो रही हैं तब इस समाज के बच्चे भी दूसरे रास्ते अपना रहे हैं और मासूम बच्चियों को अपना आसान सा लगने वाला शिकार बना लेते हैं बिना अंजाम की परवाह किये और नतीजा आज समाज के सामने है ।हमारी so called freeness आज हमारे ही बच्चों को अपना शिकार बना रही है ।दूसरों पर इल्जाम लगाने से पहले सोचिए क्या हम भी तो इन सब बातों के जिम्मेदार नहीं ?
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

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