१००,कवितायें
लखनऊ, दिल्ली और नागपुर से प्रकाशित पत्र रीडर टाइम्स में अलीगढ़ की विदुषी कवित्री वर्षा वार्षणये की दो रचनाएं।

।बहुत बहुत धन्यबाद रीडर टाइम्स और भाई जी (मेहंदी अब्बास रिजवी जी जो स्वयं एक बहुत प्रसिद्ध हस्ती हैं ),आपकी कलम ने जो इज्जत मुझे बख्शी है उसके लिए मैं आपकी तहेदिल से शुक्रगुजार हूँ ।आपके शब्दों को मैं फिर से लिख रही हूँ :
"वर्षा वार्ष्णेय हिंदी साहित्य में पहचान को मुहताज नहीं |अंग्रेजी साहित्य मनोविज्ञान औरअर्थशास्त्र में स्नातक , शिक्षण कार्य से भी जुडी रहीं |लेखन एवं कविता लिखना एक लम्बे समय से दिनचर्या रही है |"यही है जिंदगी"_ कविता संग्रह जिसका प्रमाण है | "नारी गौरव" से सम्मानित वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़ में वास करती हैं |
"शुक्रिया भाई जी "
1.सागर मंथन से निकलता है जब अमृत ,
पीने को उतावले सब हो जाते हैं ।।
पर जहर का भरा हुआ कलश ,
त्याग कर भोग को उतावले हो जाते हैं ।।
जिंदगी का सुख अगर तुमने लिया ,
तो दुःख भी तुम्हारा है ।।
क्यों भूलकर इस सत्य को ,
कुछ इंसान सन्यासी बन जाते हैं ।।
2.सत्ता के गलियारे चौखट और चमकते नज़ारे ,
हर मानव मन की उत्कंठा के वो अजीब से नारे
धोखा ,नजाकत ,रणनीति से भरे कैसे ये अंधियारे,
चाहत और मद लोलुपता ने बंद कर दिए आँखों के तारे ।।
न दिखाई देते जब राजनीति के कटु पर सत्य नज़ारे ,
फिर कैसे दिखाई देंगे दीनदुखियों के तड़फते हुए दुःख सारे ।।
छलकर झूठ से जो दिखाते हम सब को अनगिनत नज़ारे ,
डूब जाते उसी राजनीती में वो लोलुपता के मारे ।।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
— "वर्षा वार्ष्णेय हिंदी साहित्य में पहचान को मुहताज नहीं |अंग्रेजी साहित्य मनोविज्ञान औरअर्थशास्त्र में स्नातक , शिक्षण कार्य से भी जुडी रहीं |लेखन एवं कविता लिखना एक लम्बे समय से दिनचर्या रही है |"यही है जिंदगी"_ कविता संग्रह जिसका प्रमाण है | "नारी गौरव" से सम्मानित वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़ में वास करती हैं |
"शुक्रिया भाई जी "
1.सागर मंथन से निकलता है जब अमृत ,
पीने को उतावले सब हो जाते हैं ।।
पर जहर का भरा हुआ कलश ,
त्याग कर भोग को उतावले हो जाते हैं ।।
जिंदगी का सुख अगर तुमने लिया ,
तो दुःख भी तुम्हारा है ।।
क्यों भूलकर इस सत्य को ,
कुछ इंसान सन्यासी बन जाते हैं ।।
2.सत्ता के गलियारे चौखट और चमकते नज़ारे ,
हर मानव मन की उत्कंठा के वो अजीब से नारे
धोखा ,नजाकत ,रणनीति से भरे कैसे ये अंधियारे,
चाहत और मद लोलुपता ने बंद कर दिए आँखों के तारे ।।
न दिखाई देते जब राजनीति के कटु पर सत्य नज़ारे ,
फिर कैसे दिखाई देंगे दीनदुखियों के तड़फते हुए दुःख सारे ।।
छलकर झूठ से जो दिखाते हम सब को अनगिनत नज़ारे ,
डूब जाते उसी राजनीती में वो लोलुपता के मारे ।।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

No comments:
Post a Comment