१२३.आशिकी
क्यों मजबूर होते हैं हम दिल के आगे
क्यों नहीं समझते अपनी सीमाओं को
क्यों चाहता है दिल उड़ना आसमान में पछियों की तरह
क्यों भागता है मन संसार से
होते हैं मन में सवाल कई
फिर भी बस चलते ही रहते हैं
जिंदगी भर कुछ पाने की तलाश में
जानते हुए भी रहते हैं अनजान इस
तरह जैसे न जानते हों अपनी हक़ीक़त को
यही तो सच है फिर भी चाहता है
दिल शायद कुछ मिल जाए आशिकी में
क्यों नहीं समझते अपनी सीमाओं को
क्यों चाहता है दिल उड़ना आसमान में पछियों की तरह
क्यों भागता है मन संसार से
होते हैं मन में सवाल कई
फिर भी बस चलते ही रहते हैं
जिंदगी भर कुछ पाने की तलाश में
जानते हुए भी रहते हैं अनजान इस
तरह जैसे न जानते हों अपनी हक़ीक़त को
यही तो सच है फिर भी चाहता है
दिल शायद कुछ मिल जाए आशिकी में
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