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Saturday 4 March 2017

हंसती हुई आँखों ने देखे थे कभीं सपने प्यार के ।महकी सी अदाओं ने सजाये थे कुछ लम्हे याद के । तरन्नुम में गाये थे कभी गीत प्यार के ।बिखर गयी जाने क्यों सौगात प्यार की ,बिखरे अरमानों ने सजाये थे गुलिस्तां अजाब के ।कहकशां है या गर्दिश के वो नज़ारे ,आते है आज भी क्यों याद वो अपने सारे ।

                                        ३३.आँखें 

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