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Monday 25 June 2018

                             95,sansmaran 

संस्मरण ::####::
कुछ भूली बातें अक्सर याद आ ही जाती हैं या कहिए कुछ बातों को भूलना हमारे बस में नहीं होता ।जिंदगी एक संघर्ष ही तो है जो बिना रुके ,अनवरत चलता ही रहता है ।कुछ विचित्र हादसे हमारी जिंदगी को एक नया आयाम देते हैं और हम उन्हीं में उलझकर रह जाते हैं ।हमारी आत्मा की आवाज हम अनसुनी करके कुछ ऐसा कर जाते हैं जो 
असहज होता है।हां #कल ही की तो बात है जब जिंदगी सहज लगने लगी थी ।कभी सोचा भी नहीं था कि फिर से नए रास्ते उन्हीं पुरानी पगडंडियों की ओर ले जाएंगे । कोई कितना भी @ साधक हो ,विचलित हो ही जाता है । ☺️तुमने कभी उन रास्तों को दिल से अपना माना ही नहीं जो मंजिलों की ओर ले जाते हैं ।%#मैं चलती रही उस अनजानी दौड़ में जिसका मैं कभी हिस्सा थी ही नहीं ।अनबूझे रास्ते ,अनजानी मंजिलें जो चुनी थी मैंने खुद को सुकून देने के लिए ,नहीं जानती थी वो मंजिलें मेरी कभी थी ही नहीं । मैं हमेशा से सोचती थी कि जब असहनीय दर्द अकेलापन आपको रुलाता है तब उन अंधेरे रास्तों में किसी अपने का साथ हमें संबल देता है । ☺️कितनी अनजान थी मैं इस दुनिया के अजीब तौर तरीकों से ?अचानक सब कुछ कैसे बदल जाता है । एक अव्यक्त अवधारणा ने मेरे पुराने उसूल पर जैसे वज्राघात कर दिया और मैं सिवाय तिलमिलाने के कुछ भी नहीं कर पाई ।##एक अवसाद ,इस उम्र को और भो बोझिल कर गया ।क्या सोचने लगे ?????न न ,कुछ और समझने की ताकत जैसे खत्म हो गयी । पेड़ों की छाया में हम सिर्फ थोड़ी देर ही बैठ सकते हैं आजीवन तो नहीं न %?हमारे बड़े हमारा मार्गदर्शन ही कर सकते हैं बाकी हम किस रास्ते जाते हैं ये हमारी फितरत ही हमको ले जाती है । बचपन में मिले हुए संस्कार ,अनुभव आखिर कैसे बदल जाते हैं ।जिस दर्द से मैं गुजरी हूँ ईश्वर वो दर्द कभी किसी दुश्मन को भी न दे ।##माता पिता का प्यार हमें सुधार देता है और उनसे दूरी हमें कभी कभी अंधेरों की ओर ले जाती है ,लेकिन जब तक बहुत देर हो जाती है ।सपनों का संसार आज भी लड़कियों के लिए सिर्फ एक सपना ही तो है ,जहां वो एक सुंदर राजकुमार की कल्पना करके खुशी से झूमने लगती है ।क्या जीवन ऐसा होता है ,नहीं ? सच्चाई के धरातल पर जब वो उतरती है तब तक उसके सारे सपने बिखर चुके होते हैं ।
सिर्फ भटकन ,बिखराव ,आंसू के अलावा उसकी झोली खाली ही होती है ।यकीन नहीं होता ,लड़कियों को इतना पराधीन भी किसने बनाया ?हमारे समाज ने या समाज की रूढ़िवादिता ने ।अतिशय प्यार और अतिशय रोक टोक से कब किसका भला हुआ है ।### दूरियां सिर्फ दूरियां ही पैदा करती हैं । किसी को अपना बनाना और किसी के लिए समर्पित होना ही पूर्णता है वरना जिंदगी सिवाय एक रंगमंच के कुछ भी तो नहीं ।हम और आप जैसे न जाने कितने कलाकार आये और विदा हो गए । चाहे देश हो या प्रेमी प्रेमिका : बेटी बेटा हो या पति पत्नी पूर्ण समर्पण ही जिंदगी है बाकी सब एक दिखावा सिर्फ एक छलावा,एक सुंदर नाटक सिर्फ ................
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

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