26.थकान
जय श्री कृष्णा ,कल 4feb नॉएडा के पेपर "दैनिक हमारा मेट्रो "में मेरी रचना ,
थकान है या आक्रांत कर रही हैं उलझनें ,
कायर नहीं पर भाग रहा है चहुँ ओर प्राणी ।।
खुद से भागना है गर कायरता ,
फिर जिंदगी से क्यों भय मान रहा ग्यानी ।
सर्प जैसा फन ,गिरगिट जैसा रंग ,
क्यों बदल रहा हर पल वो विज्ञानी ।।
रस्सी बांधकर पेड़ में खुद ही उलझ गया ,
कट रही क्यों रोते हुए जिंदगानी ।।
हयात ऐ इश्क़ सिमट रही अब खुली हुई चिलमनो में ,
प्यार के झूठे फेर में सिमट रही क्यों जवानी ।।
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