४७.ढोंग
बहुत दिनों से एक विचार रखने की कोशिश में हूँ ।क्या हमारे धर्म में अपने भगवान् की तस्वीर हर खाने पीने की चीज या पूजा से सम्बंधित वस्तुओं पर लगाने का जन्मसिद्ध अधिकार है या सामान को बेचने की प्रतिस्पर्धा ?क्या भगवान् की तस्वीर से सिद्ध होता है कि वस्तु की क्वालिटी बढ़िया है ?ये अधिकार किसने दिया है बाजार को ?क्या इन वस्तुओं का उत्पादन करने वाली कंपनी ने कभी गौर से सोचा भी है कि सामान को प्रयोग करने के बाद इन खाली पैकेट्स का क्या होता है ?जब मेरे यहाँ ऐसा कोई सामान आता है तो सोच में पड़ जाती हूँ कि इनका क्या करूँ ,क्योंकि इन खाली थैलों पर भगवान् के फ़ोटो लगे हैं ।जरा सोचिए क्या आपने ये काम किसी और धर्म में देखा है ? क्या ये हमारे भगवान् का अपमान नहीं है ? क्या आप इन खाली रैपर को कूड़े के ढेर में पैरों से ठोकर मारकर नहीं चलते ? मेरा अनुरोध है सभी कंपनी से कृपया अपने भगवान् को प्रचार का माध्यम न बनाएं । एक बार ध्यान से जरूर सोचें । हमारी आस्था मजाक का आधार कैसे बन गयी और कब ? आदरणीय योगी जी से अनुरोध है कृपया भगवान् के फोटो पूजा और खाने पीने की वस्तुओं पर वैन लगाने की कृपा करें ।यदि आप सभी इस बात से सहमत हैं तो इस msg को आगे बढ़ाने में मेरी मदद करें ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
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