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Saturday, 6 May 2017

                             ६९ ,श्रधांजलि 

शहीदों को विनम्र श्रद्धांजलि😢
देश में हर जगह क्यों मर रहे हैं नौजवान ,
गोलियां खाकर भी क्यों हंस रहे हैं नौजवान ।
देश की सेवा का है जज्वा कूट कूट कर है भरा ,
भूलकर अपना चमन क्यों हो रहे हैं वो फिदा ।
देश सेवा ही है उनमें आखिरी दम तक भरा ।
देखकर मासूम} बेटे का कफन ,रो रहा है काफिला ।

कैसा है ये दर्द जो दे गए परिवार को ,
आज बेटी रो रही है एक पिता के प्यार को ।
कब तक जलेगी ये होली देश के नाम पर
कब तलक मिटते रहेंगे वो शहीद देश की आन पर ।
बंद कर दो अब ये खेल काश्मीर के नाम पर ,
वरना रह जाएंगे अकेले नौनिहाल शांति के नाम पर ।
बहुत हुआ अब खेल ये कुछ तो हमको करना होगा ,
गर है देश सेवा का जज्बा दुश्मनों को भगाना होगा ।
क्यों बंद हैं आंखें तुम्हारी ओ देश के रखवालों,
कुछ तो सोचो उन मासूमों की जो देश पर मिट गए ,
कर सकते हो सब कुछ गर आज तुम भी ठान लो ,
छोड़ दो राजगद्दी को या कुछ नया तुम फैसला लो ।
छोड़ दो राजगद्दी को या कुछ नया तुम फैसला लो ।
जय हिंद ,जय भारत 

वर्षा वार्ष्णेय} अलीगढ़

                                 ६८.दैनिक जागरण 

जय श्री कृष्णा ,दैनिक जागरण के अचल सरोवर अभियान को कल 2 वर्ष पूरे हुए । ये अभियान दो साल पहले 22 अप्रैल पृथ्वी दिवस से शुरू हुआ था ।जन चेतना और जन आंदोलन को चलाने का बहुत अच्छा प्रयास रहा । मुझे भी विशाल रैली में जाने का मौका मिला ।

                                          ६7.अस्तित्व 

जय श्री कृष्णा , यूँ तो हमें किसी काम के होने की खबर पहले से ही मिल जातीं है तो हम उसके लिए तैयार हो जाते हैं । जब कुछ काम अचानक हों ,तो आनंद ही कुछ और होता है । घंटी बजी और पोस्टमैन ने मेरा नाम लिया ,सोचा कूरियर होगा ,लेकिन जब लिफाफा खोला तो "द ग्रामोदय विज़न "( झांसी से प्रकाशित साप्ताहिक )को पाकर अपार खुशी हुई । मेरी कविता के साथ साथ उसमें बाकी खबरें और लेख भी पढ़े । पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा । आप जो भी करते हैं ,आश्चर्यजनक होता है मेरे लिए ।पेपर भेजने और मेरी कविता लगाने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय Jyoti Prakash Khare ji .

अस्तित्व 
बांधकर खुद को ,
ख्वाईशो सी एक गठरी ,
बेताब क्यों है उड़ने को जिंदगी। 
मार लिया गर मैंने खुद को 
जिम्मेदारियों के बोझ तले ,
मुश्किल है ख्वाब का दमन करना ।
उड़ती चिरैया सी ये जिंदगी ,
पंख है नामुमकिन तोड़ना ।
मैं मैं हूँ ,
किसी का प्रारूप क्यों बनूँ ,
ये जिंदगी है सिर्फ मेरी ,
क्यों किसी और की तस्वीर बनूँ ।
मंदिर की वो बेजान मूरत ,
जिसकी कोई इच्छा नहीं 
चाहते हैं सिर्फ पूजना 
क्यों तुम्हारी याचिका बनूँ ।
हाँ मैं सिर्फ मैं हूँ ।
गर चाहते हो मुझे अपनाना 
तुम मेरे ही रूप में ,
कदम बढ़ाकर तो देखो ,

शायद मैं ही तुम्हारी तारक बनूँ ।



Thursday, 4 May 2017

                                         ६६.,माँ 

By Badaun Express - April 21, 2017 192 0

माँ ,माँ क्या होती है ?क्या कोई बता सकता है ,नही क्योंकि जिनको माँ मिल जाती है वो इसका अर्थ भी नही समझते ।माँ वो है जो बच्चे के रोने से पहले उसकी भूख समझ लेती है ।माँ वो है जो खुद भीगने पर भी बच्चे को सूखे में सुलाती है ।माँ जिसकी कल्पना भी एक सुख की अनुभूति पैदा कर देती है ।माँ जिसके न होने से भरा पूरा समृद्ध परिवार होने के बाद भी एक बच्चा अनाथ कहलाता है ।5o लोगों के होते हुए भी प्यार के लिए उम्र भर तरसता है।
वो क्या समझेंगे एक माँ की ममता को , माँ के न होने के अहसास को जिन्होंने अपने बच्चों को अपने जीते जी बेसहारा छोड़ दिया हो । क्या एक पिता का फर्ज नहीं} बनता कि माँ की गैर मौजूदगी में वो बच्चे को माँ बाप दोनों का प्यार दे ?
क्या पत्नी के देहांत के बाद बच्चों के प्रति उनकी जवाबदेही खत्म हो जाती है?क्या एक माँ अपने पति के देहांत के बाद बच्चे का त्याग कर सकती है ? नहीं} ,क्योंकि प्रकृति ने ये ममता शायद एक नारी को ही प्रदान की है । मैं ये नही कहती कि दुनिया के सभी पिता एक से होते हैं और पत्नी के देहांत के बाद बच्चों को छोड़कर दूसरी शादी करके मौज करते हैं लेकिन समाज के बहकावे या अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए बच्चों की बलि देना कहाँ तक उचित है । कितनी स्त्रियां हैं समाज मे जो पहली पत्नी के बच्चे को स्वीकार करती हैं । क्या एक पिता का फर्ज नही बनता कि वो अपने कर्तव्य का पालन करे । शायद ये जिम्मेदारी भी सिर्फ एक माँ की ही होती है कि पति के देहांत के बाद वो बच्चों की देखभाल के लिए अपना सारा जीवन समर्पित कर दे और समाज मे एक मानक बनकर रहे , क्योंकि वो एक औरत है ,एक माँ है । एक माँ अपने बच्चों के लिए अपना जीवन कुर्बान करने के बाद भी अबला क्यों मानी जाती है ?क्यों क्या आप बता सकते हैं ?

                              ६४.कवितायेँ 

जय श्री कृष्णा ,मेरी दो कविताएं भोपाल के "अग्रज्ञान "साप्ताहिक में ,आभार संपादक मंडल ।


                                ६३.बेटियां 

Meri kavita बेटियां,Badaun express par .
बेटियां
जिद है बदलने की सोच समाज की ,
भाषण नहीं हक़ीक़त में करके दिखाएंगे :
सोते हुए समाज को जगाकर दिखायेंगे।
औरत हैं तो क्या हुआ सौम्यता कमजोरी नहीं ।
खुद के दृढ़विश्वाश से कुछ पहल कर दिखाएंगे

न हो कहीं रोक टोक ,न हो कहीं कोई विरोध ,
फौलाद हैं हम ………………कमजोर नहीं ;
तोड़कर चट्टानों को दिखायेंगे ।।
चुनौतियाँ हों पग पग पर कोई गम नहीं ,
करोगे गर खुद पर विश्वास ,तो रास्ते भी खुद बनते जाएंगे ।
आधी आबादी आज हमारी है ,
दुनिया भी जिस पर वारी है ;
तोड़कर पुराने मिथक समाज में एक अलख जगायेंगे ।
बेटियां कम नहीं बेटों से आज किसी भी मायने में ,
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ ,यही चेतना जगायेंगे।
क्या नहीं कर सकती समाज में आज लड़कियां ,
मिसाल है आज सिंधु ,साक्षी इसकी ।
गर बेटियों को पढ़ाओगे तभी तो जीवन बचाओगे ।
“बेटियां ही हैं सृष्टि का आधार ,
जीवन का सबसे बड़ा उपहार ।
मत मारो कोख में बेटियों को,
वरना आने वाले कल में आंसू बहाओगे ।”
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
प्रस्तुत कविता स्वरचित है ,इसका किसी और से कोई संबध नहीं है !

वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

                             ६२.कविता 

जय श्री कृष्णा मित्रो आपका दिन शुभ हो । मेरी कविता कल 17 /4/17 के राष्ट्रीय दैनिक हमारा मेट्रो में

अनपढ़ सी तन्हाई कब पढ़कर समझ आई ,
पढ़े लिखे लोगों के दरमियान है कैसी बड़ी खाई ।

भूलकर हंसना गाना ,करते हैं बातें धन दौलत की ,
क्यों इंसान को नफरत और दुश्मनी ही रास आई ।

बंजारों जैसा जीवन ,साथ चले न बिस्तर न मक्खन मलाई ,
पाप और पुण्य के बीच की रात दिन करते जो सफाई ।

जाम का नशा है या खून पसीने की कमाई ,
गंवाकर सारी उम्र भी कुछ दौलत न काम आई ।

बैठ संतों के संग ,कभी दो पल की शांति भी कमाई ?
अंतिम यात्रा के दो शब्दों से क्या जन्नत मिल पाई ?

मिला जो अनमोल जीवन उस परम सत्य से ,
चलो मिलकर दो घड़ी तो प्रभु कीर्तन में बिताएं ।

यही है स्वर्ग यही है नर्क ,न मिलेंगे कहीं और कृष्ण कन्हाई ,
जीवन का क्या भरोसा ,आज की मानव सेवा ही है कल की कमाई ।
वर्षा
APRIL 16