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Thursday 4 May 2017

                                ६३.बेटियां 

Meri kavita बेटियां,Badaun express par .
बेटियां
जिद है बदलने की सोच समाज की ,
भाषण नहीं हक़ीक़त में करके दिखाएंगे :
सोते हुए समाज को जगाकर दिखायेंगे।
औरत हैं तो क्या हुआ सौम्यता कमजोरी नहीं ।
खुद के दृढ़विश्वाश से कुछ पहल कर दिखाएंगे

न हो कहीं रोक टोक ,न हो कहीं कोई विरोध ,
फौलाद हैं हम ………………कमजोर नहीं ;
तोड़कर चट्टानों को दिखायेंगे ।।
चुनौतियाँ हों पग पग पर कोई गम नहीं ,
करोगे गर खुद पर विश्वास ,तो रास्ते भी खुद बनते जाएंगे ।
आधी आबादी आज हमारी है ,
दुनिया भी जिस पर वारी है ;
तोड़कर पुराने मिथक समाज में एक अलख जगायेंगे ।
बेटियां कम नहीं बेटों से आज किसी भी मायने में ,
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ ,यही चेतना जगायेंगे।
क्या नहीं कर सकती समाज में आज लड़कियां ,
मिसाल है आज सिंधु ,साक्षी इसकी ।
गर बेटियों को पढ़ाओगे तभी तो जीवन बचाओगे ।
“बेटियां ही हैं सृष्टि का आधार ,
जीवन का सबसे बड़ा उपहार ।
मत मारो कोख में बेटियों को,
वरना आने वाले कल में आंसू बहाओगे ।”
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
प्रस्तुत कविता स्वरचित है ,इसका किसी और से कोई संबध नहीं है !

वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

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