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Thursday, 1 June 2017

                                          ८३ .माँ 


माँ एक छोटा सा शब्द ,पर सारा जहान है ।
माँ एक तेरे बिना दुनिया मेरी सुनसान है।


                                      ८२.इन्तजार 

जय श्री कृष्णा ,मेरी रचना सौरभ दर्शन (पाक्षिक ) राजस्थान भीलवाड़ा में,आभार संपादक मंडल ।



                                           ८१.धुंध 

जय श्री कृष्णा मित्रो ,मेरी कविता मुंबई की मासिक पत्रिका जयविजय के मई के अंक में ।


Monday, 8 May 2017

                                   ८० स्पर्श 

तुम्हारे कठोर हाथों का स्पर्श ,
धरा को मजबूत बनाता है ।।
रत्ती भर खाद प्यार की ,
बीजों को पनपने का 
मजबूत सहारा बन जाता है।
हवा पानी मूल हैं जड़ों की ,
नमी जीने का सबब सिखलाता है ।
यकीन ना हो तो जरा
प्यार से मिट्टी को सहला लेना ,
पतझड़ में भी फूल पनप जाता है ।

Saturday, 6 May 2017

                                 ७९ .आरक्षण 

मित्रो gud evng जय श्री कृष्णा ,
हमारे देश में शिक्षित बेरोजगारों की कमी नहीं ।क्यों ?बजह साफ़ है हर क्षेत्र में आरक्षण का होना ।यदि किसी विभाग में 100 सीट हैं तो उन सबमें भी आरक्षण पहले से तय है ।क्या ये युवाओं के साथ अन्याय नहीं है ।आरक्षण की बजह से एक अच्छी %वाला रह जाता है जबकि कम %वाला उस सर्विस को प्राप्त कर लेता है ।क्या आरक्षण जातिगत होना सही है या आर्थिक आधार पर क्योंकि यदि जाति के आधार पर होता है तो एक पैसे वाला और पैसे वाला होता जाता है और आर्थिक आधार पर तो एक सही व्यक्ति उस नौकरी का हक़दार होगा ।तो आपकी नजरों में जातिगत आरक्षण एक कुरीति है या आर्थिक आधार अच्छा है ।कृपया अपनी राय अवश्य दें ।

                                     ७८ ,आरक्षण 

मित्रो ,आज आरक्षण हमारे देश में एक अभिशाप बन गया है !आरक्षण जैसे बेटा सबको चाहिए ,पर मेहनत जैसे बेटी किसी को नहीं ,लेकिन क्यों ? 
आरक्षण = बेटा
मेहनत= बेटी 


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mitro 
aaj aarakshan hamare desh me aik abhishap ban gaya h .aarakshan jaise beta sabko chaiye par mehnat jaise beti kisi ko nahi .
Aarakshan = beta 
mehanat =beti 
??????/?????

                            ७७ .बेरोजगारी 

गजब की नौकरी है अपने हिन्दुस्तान में ,
शिक्षा की लौ जलती नहीं सपनो के गांव में 
बिजली के खम्बे है पर बिजली नहीं है गांव में 
गर्दन पर है धार लगी अफसरों के राज में 
शिक्षा मित्र दे रहे न जाने क्यों अपनी जान यूँ 
जैसे मिलती हो जान राशन की दूकान पर सस्ते में इनाम में 
औरतों की इज्जत नहीं आज भी उसके so called घरों में 
गरम चिमटा दाग रहे आज भी बेटी होने के पाप में
लोक अदालत सफल नहीं क्यों आज भी हमारे शहरों में 

हुआ प्रशासन भी लाचार आज नेताओं के राज में
कहने को तो हीरो बन गया हमारा हिन्दुतान विश्व में
फिर भी क्यों लाचार है जनता अपने ही दरबार में
मंजूरी मिले न मिले पर धरना होता हर राह में
सड़कें हो जाती हैं जाम झूठी इज्जत की शान में
स्कूलों में बंट रहा नाश्ता सिर्फ किताबी बातों में
पेट भर रहे है खुद ही अपना "वर्षा"
 सारे हुक्मरान सरकार की ठंडी छाँव में