छू गयी दिल को मेरे तेरी
यही दिल लुभाने की अदाएं ,
कितना नेह है भरा दिल में तेरे ,
क्या सच में मैं इतनी ही मीठी हूँ या
फिर ये सिर्फ एक वहम है मीठा सा ।
गर ये सच है तो क्यों दुखाते हो दिल मेरा ।
क्या मेरे दुःख से तुम्हें
तनिक भी पीर नहीं होती ।
हाँ छूना चाहती थी मैं भी
आस्मां जैसे दिल को तेरे ,
भागना चाहती थी मैं भी
कभी तेरी हंसी के साथ
शायद कुछ तो कमी थी
मेरी आराधना में ,
जो अधूरी ही रही मेरी पूजा
पत्थर थे तुम ,
पाषाण ही तो थे जो कभी
समझ ही न पाए मेरी व्यथा को ।
कोई गम नहीं ,ये तो प्रकृति है तुम्हारी ,
कभी तो नम हो ही जाएंगी आँखें तुम्हारी ,
जब अंधेरों में कोई दीप झिलमिलायेगा ।
झलक मेरी पाकर एक बूंद पानी की आँखों से निकल कर जब पूछेगी ,
बताओ न क्या गलती थी मेरी ,
जो फेंक दिया तुमने मुझे
बारिश की एक बूंद समझकर|
मैं मात्र एक बूंद ही तो नहीं थी,
'वर्षा 'हूँ आज भी सिर्फ तुम्हारी ।।