१३९,लेख
बहुत मुश्किल है किसी के दर्द को समझना । वो बच्चे जो बचपन में ही अनाथ हो जाते हैं समय से पहले ही बड़े और समझदार भी हो जाते हैं । क्या कोई उनकी मनोदशा को समझ सकता है ? बचपन मे प्यार का अभाव मानो उनकी पूरी जिंदगी को ही बदल कर रख देता है ।माँ बाप की कमी को दुनिया की कोई भी शै कभी पूरा नहीं कर सकती ।ऐसे बच्चे हर समय प्यार पाने को लालायित रहते हैं । सामने वाले हर शख्स का झूठा प्यार भी मानो उन्हें अमृत लगता है ।ये दुनिया जो हमेशा से सिर्फ अपना मतलब पूरा करके अलग हो जाती है ,इस प्यार की कमी का अहसास कैसे कर सकती है ?माँ बाप के न होने से अनगिनत माँ पिता तैयार हो जाते हैं लेकिन सिर्फ अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए । कोई उनकी भावनाओं का मोल नही समझ पाता । ऐसे बच्चे हमेशा प्यार की कमी का दंश उम्र भर झेलते हैं ।कहीं कहीं देखा भी गया है कि यदि कोई उन्हें गोद ले लेता है या कुछ मदद करता है तो उसका बदला जरूर चाहता है ।वो बच्चा कभी खुलकर सांस भी नहीं ले पाता ।एक गुलामी का डर ताउम्र साथ रहता है । क्या अनाथ बच्चों की मदद करने से कोई गरीब भी हो सकता है ?अरे लोग तो कितना दान करते हैं फिर भी घाटा नहीं होता ,फिर किसी की मदद करने से किसी के यहां कमी कैसे आ सकती है ?प्यार सभी की एक जन्मजात जरूरत है ,यदि हम किसी की पैसों से मदद न कर पाएं तो अन्य और भी तरीके हैं । ऐसे बच्चों को समझना आसान काम नहीं ।ये जिसके साथ भी दोस्ती और प्यार का रिश्ता बनाते हैं आजीवन निभाने की कोशिश करते हैं फिर भी एक कमी जीवन भर पीछा नहीं छोड़ती ,और शायद आंसूं ही इनकी तकदीर बन जाते हैं ।
कैसे समझ पायेगा कोई दर्द को ,
लकीरों से कब जख्म भर पाते हैं ।
अश्क़ देने वालों में शामिल है नाम उनका भी ,
दे जाते हैं जिल्लत जो माँ बाप का फर्ज भूलकर ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
कैसे समझ पायेगा कोई दर्द को ,
लकीरों से कब जख्म भर पाते हैं ।
अश्क़ देने वालों में शामिल है नाम उनका भी ,
दे जाते हैं जिल्लत जो माँ बाप का फर्ज भूलकर ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
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