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Thursday 25 August 2016

                            ७० ,जिंदगी का हर दिन 


मेरी रचना hopesmagzine पर ,वो भी क्या दिन थे !!

जिंदगी का हर दिन एक त्यौहार था ,

बिना मोबाइल के ही एक दूजे के दिल का दारोमदार था । 

चिड़ियों की आवाज से दिन का निकलना तै था ,

वो कितने अच्छे दिन थे जब आँखों में सच्चे पर सपनों का संसार था ।

वो नानी का आँगन , वो अपनों की डांट ।

 वो बारिश में भीगना , अनजानी पर सच्ची खुशियों के साथ था ।

खो गयी वो सखियों के संग झूलों की यादें ,

 खो गयी वो प्यार भरी बारिश की यादें ।

आज सिर्फ तन्हाई का साथ है ,

मोबाइल का प्यार है । 

खो गया अपनों का प्यार ,

शायद् अब यही हमारा सुनहरा संसार है ।

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