
versha varshney {यही है जिंदगी } जय श्री कृष्णा मित्रो, यही है जिंदगी में मैंने मेरे और आपके कुछ मनोभावों का चित्रण करने की छोटी सी कोशिश की है ! हमारी जिंदगी में दिन प्रतिदिन कुछ ऐसा घटित होता है जिससे हम विचलित हो जाते हैं और उस अद्रश्य शक्ति को पुकारने लगते हैं ! हमारे और आपके दिल की आवाज ही परमात्मा की आवाज है ,जो हमें सबसे प्रेम करना सिखाती है ! Bec Love iS life and Life is God .
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Sunday, 25 September 2016
versha varshney {यही है जिंदगी }: My video ...
Saturday, 24 September 2016
९४. जिंदगी की कलम से
Friday, 23 September 2016
९३ , एक अनुरोध
कृपया हिन्दू धर्म का मजाक बनाना बंद करें | श्रीकृष्णा और राधा कोई मॉडल नहीं जो उनको गलत ढंग से पेश किया जाता है | शिवपार्वती जगत के माता पिता हैं | क्या उनकी तस्वीर को गलत ढंग से दिखाना अच्छा लगता है | क्या दूसरे धर्मोंको अपने आराध्य को इस तरह पेश करते हुए देखा है कभी ? मुझे तो कभी भी इस तरह की कोई तस्वीर टैग न करें | जो जगत के आधार का मजाक बनाते हैं वो उनकी पूजा क्या करेंगे | फेसबुक पर इस तरह की तस्वीरें लगाकर आप समाज को और अपने बच्चोंको क्या सन्देश देना चाहते हैं |कृपया अपने देवी देवताओं का सम्मान करें | धन्यबाद :
Monday, 19 September 2016
९१.व्यंग्य
क्या उसके उजड़े हुए चमन से आँख किसी की भर आती है ?
क्या कभी किसी ने सोचा है उस माँ के बारे में ,
जिस की आँखें खून के आँसूं रोती है ।
चाहे वो दुर्घटना हो या माँ की झोली उजड़ी थी ।
वाह वाह मेरे देश की मिट्टी कैसे कैसे सपूत बनाती है ।
क्या सपूतों की शहादत उनको नजर नहीं आती है ।
मिलकर देश में रोज रोज नयी रणनीति बनाती हैं ।।
पर सच्चाई किसी को कभी भी क्यों नजर नहीं आती है ।।
बड़े बड़े भाषण देना ,क्या सिर्फ यही राजनीती सिखाती है ?
जिनके सपूतों की कुर्बानी ................. उन्हीं को,
जिंदगी भर के लिए आँखों में आँसूं और लाचारी दे जाती हैं ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
Saturday, 17 September 2016
कटुता और जीवन
न जाने क्यों कभी आशा के पंख लगाकर ,
दे जाती हैं संदेसा कुछ दूर जाती हवाएं ।।
संवार देती हैं खामोश पलों को कुछ इस तरह ,
दहकती हुई आग में जैसे शीतल फुहारें ।।
मस्ती का हो मौसम या हो सुस्त समां जीवन का
यादें ही तो हैं प्यार की वो अनूठी सी सदायें ।।
ढलती शाम का असर दिखने लगता है जब कभी मन को भिगो जाती अतीत की महकती कथाएं।
जीवन के अनजाने पल भी सीख दे जाते हैं
आओ फिर से लौट चलें लेकर उनसे कुछ विस्मृत सी लेकिन सन्देश देती पावन परंपराएं ।।
Friday, 16 September 2016
८९.रचना
अलंकारों से सजाकर देखो कितना सुसंस्कृत कर दिया
देकर सुन्दर उपमाएं भद्दे को भी अलंकृत कर दिया ।।
बेजोड़ हैं इंसान की अनगिनत पर महत्वहीन परंपराएं,मतलब के सामान को भी जरूरी कर दिया ।।
नहीं दिखाई देती किसी गरीब की वेदना प्रत्यक्ष में ,पर वेदना को शब्दों में ढालकर कमाल कर दिया ।।
रोती है गरीब की बेटी कपड़ों को इज्जत बचाने के लिए
रईसी ने (कपडों )😢इज्जत को तार तार कर दिया ।।
बजाते है सैकड़ों शंख नगाड़े रोज मंदिरों में ,
दबाकर घर में माँ की आवाज को दर्द से भर दिया ।।
घर में खाने को दो वक्त की रोटी भी नहीं ,
समाज में दिखाने को झूठी शान कर्ज लेकर घर भर दिया ।।
शराब की लगी ऐसी लत जबर्दस्त इंसान को ,
खातिर नशे के पत्नी को बाजार में नीलाम कर दिया ।।
दिन में लगाते हैं हजारों पहरे अपनी बहू बेटियों पर ,
रात में इज्जतदारों ने क्यों "बाजारों" को रोशन कर दिया ।।
नहीं आती शर्म क्यों इज्जत के ठेकेदारों को ,
क्यों दूसरों की इज्जत को सरेआम बे आबरू कर दिया ।।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
Wednesday, 14 September 2016
Tuesday, 13 September 2016
८८.सम्मान समारोह
Wednesday, 7 September 2016
८७.पुकार
सुनो क्यूँ करते हो तुम ऐसा जब भी कुछ कहना चाहती हूँ दिल से ,
Saturday, 3 September 2016
versha varshney {यही है जिंदगी }: ८४.आजादी
८४.आजादी
देश को आजादी दिलाने में कितने ही देशभक्त शहीद हो गए ,लेकिन हमारी बदकिस्मती देखिये देश आज भी गुलाम है ।अपने ही देश में कितने लोग गुलामों जैसी जिंदगी जी रहे हैं ।शायद इसी का नाम आजादी है ।
आजादी ,वो शब्द जो सुनने में अच्छा लगता है,लेकिन क्या आजादी का सही मतलब किसी ने समझा है ?
स्कूलों में झंडा फहराने का नाम है आजादी ,
किसी जमाने में दो लड्डू मिलने का नाम था आजादी ।
आजादी,छोटी छोटी दुकानों पर एक नजर तो घुमाओ
मिल जाएंगे बहुत सारे छोटू और पप्पू ,धोते हुए हमारी और तुम्हारी झूठी प्लेटें।
मालिक की न सुनने पर पड़ जाते हैं कान पर खींच कर जब दो चांटे ,रो भी नहीं पाता वो मासूम क्योंकि उसे अभी और प्लेट धोनी हैं ।
क्या यही है आजादी जिसका हम ढिंढोरा पीटते हैं , आजाद देश में रोटी की खातिर गुलामी सहन करते वो मासूम बच्चे , जो कभी स्कूल का मुहँ भी नहीं देख पाते ,शायद यही है आजादी ।
आजादी ,एक बेटी अपनी माँ को देखना तो दूर रहा ,फ़ोन पर बात भी नहीं कर सकती ,
क्योंकि अब वो परायी हो चुकी है ,अब माँ माँ नहीं रही , अब वो किसी और की गुलाम है ।यही तो है आजाद देश की एक औरत की आजादी ।
आजादी , एक पढ़ा लिखा नौजवान लाचार है ,
पेट भरने के लिए , मजदूर जैसी हैसियत है आज उसकी लाखों खर्च करके भी ,क्योंकि
वो sc या bc ग्रेड में नहीं आता ,इसलिए वो बेरोज गार है।
वो आजाद देश जहाँ पग पग पर भ्रष्टाचार है ।
एक बच्चा अपनी जान से हाथ धो बैठता है क्योंकि उसके माँ बाप की हैसियत नहीं थी रिश्वत देने की ।
हाँ शायद आजादी इसी का नाम है जहाँ हम अपनी अभिव्यक्ति करने में भी डरते हैं,क्योंकि आजाद देश में आज भी बहुत सारे अंधे कानून हमें बेड़ियों में जकड़ते हैं ।
जय हिंद जय भारत ।
८३.जीवन और कान्हा
जीवन और कान्हा
Thursday, 1 September 2016
८१.रीति रिवाज
मेरी लघु कथा चंद्रहार टाइम्स नॉएडा में ,
रीति रिवाज
घर में दो वक्त की रोटी का जुगाड़ भी न था !दूकान भी पिताजी के सामने ही छीन चुकी थी !पत्नी और बेटा भी किसी फैक्ट्री में सारे दिन काम करते थे !ऐसे में पिताजी का जाना जैसे “ऊंट का पहाड़” के नीचे आ जाना जैसा प्रतीत हो रहा था !घर में सभी रिश्तेदारों के बीचमें फंसा हुआ जगत इसी उधेड़बुन में था कि सभी के लिए चाय पानी का इंतजाम कैसे कराया जाए ?अंत में उसने पत्नी से विचार विमर्श किया और अपनी आखिरी संपत्ति मकान ,को गिरवी रखने का फैसला कर लिया |फैसला लेते ही तुरंत साहूकार के पास गया और औने पौने दाम में मकान गिरवी रखकर ५० हजार रूपए का इंतजाम किया |बाजार से सबके लिए खाने-पीने का इंतजाम करते हुए उसकी आँखों से बेबसी के आंसू छलक रहे थे |जैसे तैसे खुद को संभालकर घर आया तो देखा वो सभी रिश्तेदार जो थोड़ी देर पहले रो रहे थे ,आपस में एक दूसरे से हंस हंसकर बातें कर रहे थे |पिता के हाथों में खाने पीने का सामान देखकर जैसे ही छोटी बेटी आगे बढ़ने को हुई ,जगत ने उसे वहीँ रोक दिया और पत्नी के हाथों में सामान देकर कहने लगा ,जाओ सबके लिए चाय नाश्ते का इंतजाम करो |जिस घर में दो वक्त की रोटी का जुगाड़ मुश्किल से हो पाता था ,रिश्तेदारों के लिए चाय पानी और खाने-पीने का इंतजाम होने लगा |बच्चे ये सब देखकर हतप्रभ थे कि आज हमारे यहाँ इतना सामान कैसे ?मैं भी उन्हीं रिश्तेदारों के बीच में बैठकर ये सब देख रही थी और सोच रही थी की क्या यही मानवता है ?क्या आज उनके पिता ये सब देखकर खुश हो रहे होंगे ?क्या समाज के रीती रिवाज इंसान से बढ़कर हैं ?उनके पास रहने का जो एकमात्र साधन था ,यदि वो उसको भी न छुडा पाए तो इन बच्चों का क्या होगा ?दिमाग जैसे सुन्न हो गया था और मैं उठकर अनायास चल दी दुनिया के रीति रिवाजों को सोचते हुए !!