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Saturday 24 September 2016

                        ९४. जिंदगी  की कलम से 


दोस्तों ,
,  जिंदगी की कलम से जितना भी  लिखा  जाए कम ही  लगता है |न जाने क्यूँ  जिंदगी कभी  कभी उस मोड़ पर ले आती है ,जब हम संज्ञा शून्य हो  जाते  हैं  | दिमाग  जैसे काम करना बंद  कर देता है | अतीत की घटनाएं हमारी  आँखों के सामने किसी चलचित्र की तरह  चलने  लगती  हैं  | प्रत्येक माता पिता यही  सोचते हैं कि हमारी  जिंदगी  में जो भी कठिनाइयाँ  आई , वो हमारे  बच्चों के जीवन में ना आयें | यही सोच उन्हें बच्चों को बहुत अच्छा जीवन देने के लिए प्रेरित करती है | बच्चों के लिए जैसे वो अपने लिए सब कुछ भूल जाते हैं |वही उनका सर्वप्रथम कार्य बन जाता है ,लेकिन  किस्मत के आगे शायद माँ बाप भी हार  जाते हैं  | यही  तो प्रारव्ध है जो सब कुछ बदल कर रख देता है | जिन बातों को हम सोचकर भी डरते हैं जब वही हमारे सामने आने लगती हैं तब एक बहुत बड़ी चिंता का विषय बन जाती है | ऐसा क्यूँ हुआ ,कैसे हुआ ,क्या इसमें हमारी गलती थी या समय की ?दूसरों को उपदेश देना बहुत आसान है लेकिन जब वही परिस्तिथि  खुद के सामने आती है तो व्यक्ति असहाय होने लगता है | लेकिन किसी भी चीज के आगे घुटने टेकने  से वो और भी भयानक हो जाती है  | ३ साल पहले मेरे भी साथ एक घटना ने सारा जीवन ही बदल कर रख दिया | खुशियों की उम्मीद में शायद काँटों से अपना दामन भर लिया  | सारा परिवेश ही जैसे बदल गया | क्या कोई इतना भी बदल सकता है | सही तो कहा है किसी ने हमें जब तक कोई चीज नहीं मिलती ,तभी तक उसकी कीमत होती है | मेरा सोचना था कि इस सबके बाद मेरे जीवन में बहुत अन्तर  आ जाएगा | लेकिन दूसरों के कंधे पर बन्दूक रखकर आप अपनी खुशियाँ कैसे तलाश सकते हैं ?जिंदगी में अपनी खुशियों के लिए खुद को आगे बढना होता है | शायद विपरीत परिस्तिथियाँ हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं | कहते हैं न कि भगवान् भी हमारी परीक्षा लेते हैं | शायद वो भी इंसान को उतना ही दुःख देते हैं, जितना उसमें सहन करने की पॉवर होती है | दोस्तों जीवन में कभी भी हिम्मत न हारना ही पौरुसता  की निशानी है |  शायद यही जीवन है, जब हम खुद को फिर से चलना सिखा देते हैं  >

                                     पतझड़ के बाद भी सावन आता तो है ,
                                     हारने के बाद भी जीवन जीते तो हैं  |
                                     मुश्किलों से जीतना आसान तो नहीं ,
                                     ऐ मुसाफिर तू  फिर घबराता क्यूँ है |
                                     गर है हिम्मत फिर से उठकर चलने की ,
                                     खुशियों का मौसम फिर से आता तो है |
                                    गहन अँधेरे  को चीरकर जो मुस्कराता है 
                                    जीवन मेंवही फिर से पंख फड़फडाता भी है | 


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