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Thursday 1 September 2016

८१.रीति रिवाज

मेरी लघु कथा चंद्रहार टाइम्स नॉएडा में ,

रीति रिवाज

घर में दो वक्त की रोटी का जुगाड़ भी न था !दूकान भी पिताजी के सामने ही छीन चुकी थी !पत्नी और बेटा भी किसी फैक्ट्री में सारे दिन काम करते थे !ऐसे में पिताजी का जाना जैसे “ऊंट का पहाड़” के नीचे आ जाना जैसा प्रतीत हो रहा था !घर में सभी रिश्तेदारों के बीचमें फंसा हुआ जगत इसी उधेड़बुन में था कि सभी के लिए चाय पानी का इंतजाम कैसे कराया जाए ?अंत में उसने पत्नी से विचार विमर्श किया और अपनी आखिरी संपत्ति मकान ,को गिरवी रखने का फैसला कर लिया |फैसला लेते ही तुरंत साहूकार के पास गया और औने पौने दाम में मकान गिरवी रखकर ५० हजार रूपए का इंतजाम किया |बाजार से सबके लिए खाने-पीने का इंतजाम करते हुए उसकी आँखों से बेबसी के आंसू छलक रहे थे |जैसे तैसे खुद को संभालकर घर आया तो देखा वो सभी रिश्तेदार जो थोड़ी देर पहले रो रहे थे ,आपस में एक दूसरे से हंस हंसकर बातें कर रहे थे |पिता के हाथों में खाने पीने का सामान देखकर जैसे ही छोटी बेटी आगे बढ़ने को हुई ,जगत ने उसे वहीँ रोक दिया और पत्नी के हाथों में सामान देकर कहने लगा ,जाओ सबके लिए चाय नाश्ते का इंतजाम करो |जिस घर में दो वक्त की रोटी का जुगाड़ मुश्किल से हो पाता था ,रिश्तेदारों के लिए चाय पानी और खाने-पीने का इंतजाम होने लगा |बच्चे ये सब देखकर हतप्रभ थे कि आज हमारे यहाँ इतना सामान कैसे ?मैं भी उन्हीं रिश्तेदारों के बीच में बैठकर ये सब देख रही थी और सोच रही थी की क्या यही मानवता है ?क्या आज उनके पिता ये सब देखकर खुश हो रहे होंगे ?क्या समाज के रीती रिवाज इंसान से बढ़कर हैं ?उनके पास रहने का जो एकमात्र साधन था ,यदि वो उसको भी न छुडा पाए तो इन बच्चों का क्या होगा ?दिमाग जैसे सुन्न हो गया था और मैं उठकर अनायास चल दी दुनिया के रीति रिवाजों को सोचते हुए !!

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