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Wednesday 7 September 2016

                                          ८७.पुकार

सुनो क्यूँ करते हो तुम ऐसा जब भी कुछ कहना चाहती हूँ दिल से ,

समझते ही नहीं मुझे ,जानते हो न मुझे आदत है यूँ ही आँसू बहाने की !

क्यूँ करते हो तुम ऐसा ,क्यूँ नहीं समझते मेरे जज्बात ,मेरी दिल्लगी ,

कल जब हम न होंगे तो , किसको सुनाओगे कहानी अपने दिल की !

आज वक़्त है तुम्हारा तो जलजले दिखाते हो ,कहती हूँ फिर दिल से ,

दूर नहीं वो दिन बगाबत पर उतर आएगी  ,जब ये मेरे  दिल की लगी !

क्यूँ अच्छा लगता है तुम्हें मेरा हर पल आंसुओं में डूबा हुआ चेहरा ,

क्यूँ  नहीं आई होठों पर  कभी हंसी और मुस्कराहट सुहानी सी !

चलो देखते हैं कब दौर  खत्म  होगा मेरी जिंदगानी के पल पल ढलते ,

खून और जलती हुई चिंगारियों का !
सहनशीलता की पराकाष्ठा बहुत है , शायद टूटना मुश्किल है मेरा ,

यही तो जिंदगी  है  और यही जिंदगी की समरसता है आज भी ,

चलो छोड़ो रहने दो तुम नहीं समझोगे कभी  मुझे अपना दिल से  !!


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