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Sunday 2 October 2016

                          ९७.प्यार  या  पैसा 

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प्यार या पैसा

गगन चुम्भी इमारतों के नीचे जो बने होते हैं छोटे छोटे आशियाने ,
एक पल में ढह जाते हैं बनकर रेत् की तरह |
दिलों में खिले हुए प्यार भी एक वक्त गुम हो जाते हैं ,
जब ईमान डगमगाने लगते है नाव की तरह ।
कश्तियों में सवार मुसाफिर कब जानते हैं एक दूसरे को ,
बन जाते हैं हसीं रिश्ते बुनियाद की तरह ।।
जरूरी तो नहीं हमसफ़र की सोच एक जैसी हो राहों में ,
ले जाते थे फिर भी पार नैया कुशल सवारों की तरह ।
क्यों टूट रहे हैं आज रिश्ते सिर्फ पैसों की वजह से ,
क्यों है ये सवाल खड़ा महंगाई की तरह ?


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