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Monday 19 February 2018

                                             २७,माँ 

  • कब तक चुप रहेगा ये समाज ,
    एक समय ऐसा भी था जब उस बेटे की शादी नहीं हुई थी ।बड़े भाई की शादी हुई थी और परिवार भी बड़ा था ,उस समय उस बेटे को अपनी माँ का भाभी के साथ काम कराना बुरा लगता था ।वो भाभी जो अभी सिर्फ 19 साल की ही थी उससे पूरे घर को यही उम्मीद थी कि वो इतने बड़े परिवार की जिम्मेदारी अकेली ही निभाये ।आंगन में कुर्सी डालकर भाभी को सुनाकर देवर मां से बोला ,चिंता मत कर माँ जब मेरी बीबी आएगी तो आराम से चेयर डालकर बैठना और आर्डर चलाना ।हर समय भाभी को नीचा दिखाना जैसे उसकी दिनचर्या में शामिल था ।क्या हुआ जब खुद की बीबी आयी और उसने उसी प्यारी माँ को रुला दिया ।खाने पीने को भी मोहताज कर दिया ।जिस घर को उस माँ ने अपनी सारी जमा पूंजी लगाकर खड़ा किया ,उसी घर में उसका रहना मुहाल कर दिया ।क्या सीख देंगे ऐसे सामाजिक लोग जिन्होंने समाज में अपनी झूठी प्रतिष्ठा बना रखी हो और उन्हीं के बच्चे दादी पर हाथ उठाते हों ।उस मां को दिन रात सुनाते हों । हम अपने आस पास ऐसी घटनाएं रोज देखते हैं फिर भी चुप रहते हैं ।अरे बुढ़ापा तो आप सब का भी आएगा ।क्या आप कभी बुजुर्ग नहीं होंगे ?क्या आपकी पत्नी के साथ होते हुए अन्याय को आप सहन कर पाएंगे ?ये कैसा समाज है जहां भागवत ,कथा ,पूजा ,चढ़ाबे के नाम पर हम हजारों रुपये गर्व के साथ खर्च कर देते हैं लेकिन अपने बूढ़े माँ बाप को खाना खिलाने में भी दर्द होता है ।धिक्कार है ऐसे बेटों पर ।ऐसे बेटे समाज के लिए एक कलंक हैं।दुनिया के सामने शराफत का चोगा पहने ,समाज में अपना रुतबा दिखाने वाले ही अपनी मां को पानी तक के लिए मजबूर कर देते हैं ।क्या अपनी माँ का दर्द उन्हें दिखाई नहीं देता ? कोई बेटा ऐसा कैसे कर सकता है ।दिल करता है........ ऐसे नालायक बेटे को।
    वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

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