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Wednesday 28 March 2018

                              ५०,पाबंद  नारी 

जय श्री कृष्णा मित्रो आपका दिन शुभ हो ।कनाडा से प्रकाशित अंतरराष्ट्रीय पत्रिका प्रयास के मार्च अंक से साभार ।
आजादी के बाद भी नारी अस्मिता एक बहुत बड़ा सवाल है ।पुरुष प्रधान समाज में नारी होना आज भी एक गुनाह है ।

जीवन है ये जीवन है ये कैसा कारवाँ ,
जीते रहे हम हमेशा खुद का दिल दुखा ।
कैसी हैं ये मजबूरियां कैसी हैं ये रूढ़ियाँ, 
हर तरफ सजी हैं जैसे मौत की खामोशियाँ ।

माँ भी रोती यहाँ, बेटी से भी दूरियां ,
बेटे की चाह में बेटी को करते कत्ल यहां।
 क्यों है हर मोड़ पर नारी को पाबंदियां ,
घूरती नजरों से बढ़ती जीने की दुश्वारियां

नारी बिन पुरुष है अधूरा पुरुष के बिन नारी जहां ,
किसने सिखाया समाज को दोगलापन यहां ।
सच को हमेशा नकारता रहा झूठ के
बहकाबे में ,
जिंदगी की गाड़ी नहीं चलती दोनों पहियों के बिना ।

शिव और शक्ति भी हैं एक दूसरे के पूरक जहां ,
किसने सिखाई समाज को विद्रूपता यहां।
एक बार हटाकर तो देखो शिव से इ की मात्रा ,
नजर आएगा आंखों को सिर्फ शव ही यहां,
नजर आएगा ये संसार सिर्फ एक घोर श्मशान यहां ।




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