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Wednesday 28 March 2018

                                ५३ ,भूख 

भूख गरीबी और बेगारी 
कहाँ गयी मानवता भारी ।
आंखें खोलो बांट भी दो अब 
गरीबों की वो छोटी सी थाली।
खुद को कहते दानी भारी ,
कहाँ गए वो देश के पुजारी ।
महलों के वो वासी अनाड़ी ,
अनजान है क्यों दुखों से इनके ,
राशन खाता और बीमारी ,
कहाँ गयी वो मदद हमारी

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