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Wednesday 28 March 2018

                                ५२ ,इन्तजार 

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कहाँ हो तुम आओ न
मैं रो रही हूँ मुझे चुप कराओ न
क्यों बसे हो मेरी धड़कन में
आकर राज बताओ न
मैं हो गयी हूँ खुद से ही फना
मुझे आकर खुद से मिलाओ न
रिसते हो क्यों इन आंसुओं की तरह
दिल में कुछ इसका अहसास दिलाओ न
बहुत याद आते हो तुम
आँखों को बहुत रुलाते हो तुम
तुम्हे हम याद हो न हो
पर इस दिल को क्यों इतना सताते हो तुम
जान कर भी क्यों अनजान हो
बस एक बार तो आकर बताओ न

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