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Sunday, 2 October 2016

                                           ९९. माँ 

मुद्दे की बात .........

एक माँ की ममता और दर्द को समझने के लिए पुरुषों को महिलाओं के साथ लेबर रूम में जाने पर पाबंदी नहीं होनी चाहिए ।एक पुरुष एक स्त्री की मनोव्यथा को तभी ठीक से समझ पायेगा ।शायद मेरी बात आप सबको मजाक लगे ,लेकिन यही सत्य है ।जब किसी पुरुष ने उस पीड़ा और दर्द को महसूस ही नहीं किया तो फिर वो किसी स्त्री और माँ के साथ कैसे न्याय कर पायेगा । माँ हो या भारत माँ ,उसका दर्द जानने के लिए दिल से एहसास जरूरी है ।

                                 ९८.महक 

महक फूलों की हो या फिर इंसान की ,
खिलने तक ही सुहानी लगाती है ।

कौन पूछता है मुरझाये हुए चेहरों को ,
जिंदगी सबको हंसती हुई अच्छी लगती है ।।

                          ९७.प्यार  या  पैसा 

मेरी रचना sahitypedia में http://sahityapedia.com/

http://sahityapedia.com/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%AA%E0%A5%88%E0%A4%B8%E0%A4%BE-64720/

प्यार या पैसा

गगन चुम्भी इमारतों के नीचे जो बने होते हैं छोटे छोटे आशियाने ,
एक पल में ढह जाते हैं बनकर रेत् की तरह |
दिलों में खिले हुए प्यार भी एक वक्त गुम हो जाते हैं ,
जब ईमान डगमगाने लगते है नाव की तरह ।
कश्तियों में सवार मुसाफिर कब जानते हैं एक दूसरे को ,
बन जाते हैं हसीं रिश्ते बुनियाद की तरह ।।
जरूरी तो नहीं हमसफ़र की सोच एक जैसी हो राहों में ,
ले जाते थे फिर भी पार नैया कुशल सवारों की तरह ।
क्यों टूट रहे हैं आज रिश्ते सिर्फ पैसों की वजह से ,
क्यों है ये सवाल खड़ा महंगाई की तरह ?


                                        ९६.कविता 

आज की कविता देशप्रेमियों के लिए" जग प्रेरणा" रायपुर में ,
जय हिंद ,जयभारत

मुन्नी और शीला के दौर में कौन रिश्ते निभायेगा ,
मर गयी जिनकी आत्मा वो कैसे प्यार निभायेगा ।
जन जागरण का समय है आया देखो मत सोओ तुम, 
बातों को खेल में टाल जाना तुम्हें बहुत रुलायेगा ।
बातें करने से नहीं किसी का नसीब जागा है,
कर्म पथ पर चलकर ही देश तुष्टि पायेगा ।
बीहड़ों में कब तक दहाड़ते रहोगे तुम ,
ओ मेरे देश प्रेमियों निडरता से ही देश का गौरब बच पायेगा ।
स्वार्थ में अपने लिप्त है जब समूची दुनिया ,
त्यागकर सुख भोग सारे कौन जंगल जाएगा।
बिल्ली आई चूहा भाग खेल पुराना है ,
ऐ मेरे देशबासियो अब नया ज़माना आएगा।
बिल्ली बैठी बिलों के अंदर सर्प चूहा खायेगा,
ढोल बजाता बंदर आज ,गीत भेड़िया गायेगा ।
मत फैलाओ बैर भाव आपस में ,बैर तुम्हें ही सतायेगा ,
वीरों की जन्मभूमि से दुश्मन कैसे ज़िंदा बच पायेगा ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

                                 ९५.जिंदगी की हकीक़त 

आज  के हालात पर मेरी रचना" जग प्रेरणा"रायपुर में ,


जिंदगी की हकीकत को इस तरह भुलाया न करो ,
झूठ को सच मानकर यूँ मजाक उड़ाया न करो।
खेल है ताश के पत्तों जैसा ये दुनिया ,
कभी किसी को बेगम ,तो किसी को बादशाह बनाया न करो ।
तारीफ़ में क्यों करते हो किसी की कंजूसी ,
मखमल में टाट के पैबंद तो न लगाया करो ।
सुराही दार गर्दन के पीछे कब तक भागोगे ,
कभी तो घड़े के पानी को भी मुँह लगाया करो।
ख़बरों के मौहल्ले बहुत हो गए हैं आजकल ,
अजी कभी तो सच्चाई को भी नजरों में भर लिया करो ।
दूसरों की क्यों धज्जियाँ उड़ाते हो भरी महफ़िलों में ,
कभी तो अपने गिरेबान में भी झाँक लिया करो। 
गुम हो जाते हैं कुछ शब्द मजलूमों की तरह ,
कभी तो वर्षा की बूंदों से भी सीख लिया करो। 
बना लेता है अपने लिए जगह वो भरी दुनिया में ,
कभी तो सूरज की तरह रौशनी फैलाया करो ।