
versha varshney {यही है जिंदगी } जय श्री कृष्णा मित्रो, यही है जिंदगी में मैंने मेरे और आपके कुछ मनोभावों का चित्रण करने की छोटी सी कोशिश की है ! हमारी जिंदगी में दिन प्रतिदिन कुछ ऐसा घटित होता है जिससे हम विचलित हो जाते हैं और उस अद्रश्य शक्ति को पुकारने लगते हैं ! हमारे और आपके दिल की आवाज ही परमात्मा की आवाज है ,जो हमें सबसे प्रेम करना सिखाती है ! Bec Love iS life and Life is God .
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Wednesday, 28 March 2018
५२ ,इन्तजार
https://hindi.sahityapedia.com/?p=95815
कहाँ हो तुम आओ न
मैं रो रही हूँ मुझे चुप कराओ न
क्यों बसे हो मेरी धड़कन में
आकर राज बताओ न
मैं हो गयी हूँ खुद से ही फना
मुझे आकर खुद से मिलाओ न
रिसते हो क्यों इन आंसुओं की तरह
दिल में कुछ इसका अहसास दिलाओ न
बहुत याद आते हो तुम
आँखों को बहुत रुलाते हो तुम
तुम्हे हम याद हो न हो
पर इस दिल को क्यों इतना सताते हो तुम
जान कर भी क्यों अनजान हो
बस एक बार तो आकर बताओ न
मैं रो रही हूँ मुझे चुप कराओ न
क्यों बसे हो मेरी धड़कन में
आकर राज बताओ न
मैं हो गयी हूँ खुद से ही फना
मुझे आकर खुद से मिलाओ न
रिसते हो क्यों इन आंसुओं की तरह
दिल में कुछ इसका अहसास दिलाओ न
बहुत याद आते हो तुम
आँखों को बहुत रुलाते हो तुम
तुम्हे हम याद हो न हो
पर इस दिल को क्यों इतना सताते हो तुम
जान कर भी क्यों अनजान हो
बस एक बार तो आकर बताओ न
५०,पाबंद नारी
जय श्री कृष्णा मित्रो आपका दिन शुभ हो ।कनाडा से प्रकाशित अंतरराष्ट्रीय पत्रिका प्रयास के मार्च अंक से साभार ।
आजादी के बाद भी नारी अस्मिता एक बहुत बड़ा सवाल है ।पुरुष प्रधान समाज में नारी होना आज भी एक गुनाह है ।
जीवन है ये जीवन है ये कैसा कारवाँ ,
जीते रहे हम हमेशा खुद का दिल दुखा ।
कैसी हैं ये मजबूरियां कैसी हैं ये रूढ़ियाँ,
हर तरफ सजी हैं जैसे मौत की खामोशियाँ ।
माँ भी रोती यहाँ, बेटी से भी दूरियां ,
बेटे की चाह में बेटी को करते कत्ल यहां।
आजादी के बाद भी नारी अस्मिता एक बहुत बड़ा सवाल है ।पुरुष प्रधान समाज में नारी होना आज भी एक गुनाह है ।
जीवन है ये जीवन है ये कैसा कारवाँ ,
जीते रहे हम हमेशा खुद का दिल दुखा ।
कैसी हैं ये मजबूरियां कैसी हैं ये रूढ़ियाँ,
हर तरफ सजी हैं जैसे मौत की खामोशियाँ ।
माँ भी रोती यहाँ, बेटी से भी दूरियां ,
बेटे की चाह में बेटी को करते कत्ल यहां।
क्यों है हर मोड़ पर नारी को पाबंदियां ,
घूरती नजरों से बढ़ती जीने की दुश्वारियां
नारी बिन पुरुष है अधूरा पुरुष के बिन नारी जहां ,
किसने सिखाया समाज को दोगलापन यहां ।
सच को हमेशा नकारता रहा झूठ केबहकाबे में ,
घूरती नजरों से बढ़ती जीने की दुश्वारियां
नारी बिन पुरुष है अधूरा पुरुष के बिन नारी जहां ,
किसने सिखाया समाज को दोगलापन यहां ।
सच को हमेशा नकारता रहा झूठ केबहकाबे में ,
जिंदगी की गाड़ी नहीं चलती दोनों पहियों के बिना ।
शिव और शक्ति भी हैं एक दूसरे के पूरक जहां ,
किसने सिखाई समाज को विद्रूपता यहां।
एक बार हटाकर तो देखो शिव से इ की मात्रा ,
नजर आएगा आंखों को सिर्फ शव ही यहां,
नजर आएगा ये संसार सिर्फ एक घोर श्मशान यहां ।
शिव और शक्ति भी हैं एक दूसरे के पूरक जहां ,
किसने सिखाई समाज को विद्रूपता यहां।
एक बार हटाकर तो देखो शिव से इ की मात्रा ,
नजर आएगा आंखों को सिर्फ शव ही यहां,
नजर आएगा ये संसार सिर्फ एक घोर श्मशान यहां ।
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