१५१,प्रेम
प्रेम सिर्फ एक समर्पण का भाव है ,फिर चाहे वो ईश्वर के प्रति हो या प्राणिमात्र के ।
प्रेम के बिना पूजा पाठ भी उसी तरह व्यर्थ है जैसे सांस के बिना शरीर ।
हमारे विचार ही हमें कमजोर बनाते हैं वरना दुनिया की कोई ताकत हमें हरा नही सकती ।
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