101,बचपन
Meri kavita amar ujala kavy par 4/7/18
https://www.amarujala.com/kavya/mere-alfaz/versha-varshney-bachpan
वो कागज की नाव ,
वो बारिश में खेलना।
आता है क्यों याद ,
वो बड़ों का डांटना।।
न बीमारी का डर,
न रुसबाई का कहर।
आता है क्यों याद,
वो बस्ते का भीगना।।
इन्जार के वो पल,
कब जाएंगे स्कूल।
आता है क्यों याद,
वो टीचर से भागना।।
आठ जुलाई आते ही,
मानसून जब आता था।
आता है क्यों याद,
वो बचपन का याराना।
जिद करके जाना बाहर,
गजब था वो सुहाना सफर।।
आता है क्यों याद,
वो चुन्नी का लहराना।।
न रहा प्यारा बचपन,
हो गई उम्र पचपन।
आता है क्यों याद आज भी,
वो बचपन में मचल जाना।।
कितना मासूम कितना निश्छल ,
होता है बचपन सारा ।
आता है क्यों याद ,
वो वक़्त को न रोक पाना ।
चलो भूलकर स्वप्न को,
वर्तमान में आ जाएं।
क्यों न फिर से सीख लें
वो बच्चों जैसा मुस्कराना।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
वो बारिश में खेलना।
आता है क्यों याद ,
वो बड़ों का डांटना।।
न बीमारी का डर,
न रुसबाई का कहर।
आता है क्यों याद,
वो बस्ते का भीगना।।
इन्जार के वो पल,
कब जाएंगे स्कूल।
आता है क्यों याद,
वो टीचर से भागना।।
आठ जुलाई आते ही,
मानसून जब आता था।
आता है क्यों याद,
वो बचपन का याराना।
जिद करके जाना बाहर,
गजब था वो सुहाना सफर।।
आता है क्यों याद,
वो चुन्नी का लहराना।।
न रहा प्यारा बचपन,
हो गई उम्र पचपन।
आता है क्यों याद आज भी,
वो बचपन में मचल जाना।।
कितना मासूम कितना निश्छल ,
होता है बचपन सारा ।
आता है क्यों याद ,
वो वक़्त को न रोक पाना ।
चलो भूलकर स्वप्न को,
वर्तमान में आ जाएं।
क्यों न फिर से सीख लें
वो बच्चों जैसा मुस्कराना।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
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