जय गणेश ,जय माँ लक्ष्मी ।
शुभ दीपावली ,आप सभी को दिवाली की अनगिनत शुभकामनाएं ।माँ लक्ष्मी आप सभी को अपार खुशियां दें ।
![versha varshney {यही है जिंदगी }](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhaHH9c2DUn77ljN47jKe5wMJTbXZ5hUEB5JGV-K2K1_fS6jI8mplFVk4oomCVEGVHJtH22yij5EQQ42ul8HrMjyQU5msHA1CaXRuuzQfdI9i4zRppXslIti0YV4Dqcai9_QRzqcvdDlAff/s960/IMG_20170630_122227.jpg)
versha varshney {यही है जिंदगी } जय श्री कृष्णा मित्रो, यही है जिंदगी में मैंने मेरे और आपके कुछ मनोभावों का चित्रण करने की छोटी सी कोशिश की है ! हमारी जिंदगी में दिन प्रतिदिन कुछ ऐसा घटित होता है जिससे हम विचलित हो जाते हैं और उस अद्रश्य शक्ति को पुकारने लगते हैं ! हमारे और आपके दिल की आवाज ही परमात्मा की आवाज है ,जो हमें सबसे प्रेम करना सिखाती है ! Bec Love iS life and Life is God .
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Sunday, 30 October 2016
Happy Diwali
Thursday, 20 October 2016
१०९ .करवा चौथ
आप सभी को करवा चौथ की ढेर सारी शुभकामनाएँ ।कृपया करवा चौथ पर पत्नी का मजाक न बनाएं।
आप सभी के लिए मेरी ओर से कुछ पंक्तियां :
सौंप दिया तुमको जीवन ,
भुलाकर जिसने अपना बजूद ।
गुजार दिया जिसने जीवन ,
खोकर अपनी अभिलाषा ।
कैसे हो सकती है वो नारी
सिर्फ प्रताड़ना की अधिकारी ।
निभाती हर कदम पर साथ तुम्हारा ,
चाहे सुख हो या फिर हो ग़मों की छांव ।
क्या देते उस नारी को तुम बदले में ,
सिर्फ और सिर्फ झूठा और फूहड़ मजाक ।।
नारी ही वो शक्ति है सहकर दुनिया के सारे दुःख,
दुनिया से लड़ जाती है सिर्फ तुम्हारे बजूद के लिए ।
गर पत्नी दुःख का जरिया है ,
तो क्यों वो लड्डू खाते हो ,
रहकर तो देखो तनहा सारी उम्र
क्यों खुद का ही मजाक बनाते हो ।
पति पत्नी हैं गाडी के दो पहिये ,
बिन एक दूसरे के दोनों अधूरे हैं ।
यही है वो अटूट रिश्ता ,
जिसने सृष्टि को जोड़ा है ।
भुलाकर जिसने अपना बजूद ।
गुजार दिया जिसने जीवन ,
खोकर अपनी अभिलाषा ।
कैसे हो सकती है वो नारी
सिर्फ प्रताड़ना की अधिकारी ।
निभाती हर कदम पर साथ तुम्हारा ,
चाहे सुख हो या फिर हो ग़मों की छांव ।
क्या देते उस नारी को तुम बदले में ,
सिर्फ और सिर्फ झूठा और फूहड़ मजाक ।।
नारी ही वो शक्ति है सहकर दुनिया के सारे दुःख,
दुनिया से लड़ जाती है सिर्फ तुम्हारे बजूद के लिए ।
गर पत्नी दुःख का जरिया है ,
तो क्यों वो लड्डू खाते हो ,
रहकर तो देखो तनहा सारी उम्र
क्यों खुद का ही मजाक बनाते हो ।
पति पत्नी हैं गाडी के दो पहिये ,
बिन एक दूसरे के दोनों अधूरे हैं ।
यही है वो अटूट रिश्ता ,
जिसने सृष्टि को जोड़ा है ।
१०८,एक पत्नी का पत्र फौजी पति के नाम
एक पत्नि का अपने फौजी पति के नाम पत्र- ;
छलक जाती हैं मेरी आँखें तुम्हें जाते हुए देखकर ,अब कब आओगे सहम जाती हूँ सिर्फ यही सोचकर |
अगले ही पल खुद को संभाल लेती हूँ मैं ,क्या हुआ गर तुम पास नहीं हो मेरे ,तुम्हारा प्यार तो मेरे पास है|
जरूरी नहीं मेरे पास रहना तुम्हारा ,”भारत माँ”_ को तुम्हारी मुझसे ज्यादा जरूरत है |
क्या हुआ गर बेटा पूछता है मुझसे , माँ पापा कब आयेंगे ?क्या हुआ गर बेटी को तुम्हारी याद सताती है |
सुला देती हूँ अक्सर दोनों को प्यार से लोरी सुनाकर|
माँ भी तुम्हें बहुत याद करती हैं, बाबूजी भी उदास है तुम्हें पास न पाकर |
आ रही है फिर से करवा चौथ और दिवाली ,सहम जाती हूँ फिर से यही सोचकर ,
कैसे सजाऊँगी बिन तुम्हारे जिंदगी के वो पल ,फीके हैं बिन तुम्हारे मेरे श्रृंगार ,
समझा लेती हूँ दिल को फिर यही सोचकर ,क्या हुआ गर तुम इस बार नहीं आओगे ?
कितनी ही माँओं की आस तुम बचाओगे |सिन्दूर बचाओगे कितनी ही बहनों का दुश्मनों से टक्कर लेकर |
“मैं कितनी खुशनसीब हूँ जो पाया तुम्हें जीवन साथी के रूप में |मत होना कभी उदास “ऐ प्यार मेरे “सलाम करती हूँ आज मैं फिर से तुम्हारे जज्बों को ,खुश हूँ मैं बहुत तुम्हें अपनी जिंदगी में पाकर |”
यूँ तो आसान नहीं होता बिन तुम्हारे अकेले रहना ,अगले ही पल तन जाता है गर्व से सर मेरा ,
जब देखती हूँ तुम्हें “भारत माँ_” के लिए अपनी खुशियों की कुर्बानी और सर्वस्व न्यौछावर करते हुए |
हाँ मुझे पूर्ण विश्वास है तुम आओगे जरूर एक दिन हम सबके लिए ढेर सारी खुशियाँ लेकर बहुत सारा प्यार लेकर |
तुम्हारी अर्धांगिनी
जय हिन्द जय भारत
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
संगम बिहार कॉलोनी गली न.३ नगला तिकोना रोड सुरेंद्रनगर अलीगढ़
१०७ बेटियां
मेरी रचना"सौरभ दर्शन "राजस्थान में आपके समक्ष समीक्षा के लिए ।
नाजों से पाली बेटियां क्यों हो जाती हैं परायी ,
कहने को लक्ष्मी ,पर लक्ष्मी के लिए हर पल सताई जाती हैं क्यों बेटियां ।
वो गौरी है गर बचपन में ,कब पत्थर बन कर घरों में सज गयी ।
यूँ तो घर की मालकिन ,फिर हर पल क्यों रुलाई जाती हैं बेटियां ।
बाबुल के घर में महकती थी जो गुलाबों की तरह हर पल ,
ससुराल में हर दूसरे पल क्यों जलाई जाती हैं बेटियां ।
रखकर कलेजे पर अपने पत्थर ,बाबुल ने विदा कर दिया ,
न सोचा एक पल भी किसी ने माँ बाप के ह्रदय की विशालता ,
जख्मों को बनाकर एक नासूर ,क्यों हर पल रुलाई जाती हैं बेटियां ।
१०६ सम्मान समारोह
जय श्री कृष्णा मित्रो शुभ संध्या ,अक्रूर धाम गोपीनाथ फाउंडेशन मथुरा वृंदावन के तत्वाधान में बहुप्रतिक्षित श्रीअक्रुरग्रन्थ का विमोचन १६ अक्टूबर को आगरा रोड स्थित कैलाश फार्म अलीगढ़ में आयोजित किया गया |ग्रन्थ का विमोचन अखिल भारतीय श्री वैश्य बारह्सैनी महासभा के संरक्षक श्यामाचरण वार्ष्णेय की पत्नी ,डीजीपी आसाम प्रदीप कुमार ,राष्ट्रीय अध्यक्ष इंद्रकुमार गुप्ता आदि सम्मानित सदस्यों द्वारा किया गया | इस अवसर पर पूर्व महापौरआशुतोष वार्ष्णेय ,पूर्व महापौर सावित्री वार्ष्णेय आदि समाज के काफी वरिष्ठ सम्मानित सदस्य भी उपस्थित थे | इस कार्यक्रम में मेरा भी काव्य पाठ, अक्रूर धाम फाउंडेशन और अखिल भारतीय श्री वैश्य बारह्सैनी महासभा की महामंत्री सुनीता वार्ष्णेय द्वारा सम्मान किया गया | ये मेरे लिए बहुत हीअद्भुत अनुभूति रही | अक्रूर धाम गोपीनाथ फाउंडेशन और सुनीता वार्ष्णेय दीदी का मैं तहेदिल से आभार व्यक्त करती हूँ | धन्यवाद ;
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
Wednesday, 12 October 2016
Pls vote my dhevti
Gd evng jai shree krishna
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Sunday, 2 October 2016
१०१. यादें
यादें
http://sahityapedia.com/%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%82-3-8183/
जैसे कोई बुझता हुआ दीपक ,
तेज रोशनी से अँधेरे को रोशन कर जाए ।
यादों से आज भी कुछ गुलशन महके हुए लगते है ।
तेज रोशनी से अँधेरे को रोशन कर जाए ।
यादों से आज भी कुछ गुलशन महके हुए लगते है ।
मस्ती कहाँ थी जाम को पीने की ,
वो तो मजबूरी थी यादों को भुलाने की
पीने दे ऐ साकी फिर से तेरी नजरों से
आज भी कशिश है बाकी उनकी यादों की ।।
वो तो मजबूरी थी यादों को भुलाने की
पीने दे ऐ साकी फिर से तेरी नजरों से
आज भी कशिश है बाकी उनकी यादों की ।।
कभी सोचा था वीराने भी किसी सजा से कम नहीं ,
आज जाने क्यों वो खंडहर भी अपने जैसे लगते हैं ।
१००,कवितायें
लखनऊ, दिल्ली और नागपुर से प्रकाशित पत्र रीडर टाइम्स में अलीगढ़ की विदुषी कवित्री वर्षा वार्षणये की दो रचनाएं।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg-bLidf8eZ8P7gdekCsGzatvGOhqT4vYKOpNtZbHceGLWyo9-3INdW5f_Uu-PiolpRi6JkBQgPXh4df3WOBAv6oOyhM8q_Pr8c6UYHBM-a4_MH3PWQLlSjFPj87KkLQPlOU1dAseN_p_0-/s400/14492421_1866339353610394_2003391426160021212_n.jpg)
।बहुत बहुत धन्यबाद रीडर टाइम्स और भाई जी (मेहंदी अब्बास रिजवी जी जो स्वयं एक बहुत प्रसिद्ध हस्ती हैं ),आपकी कलम ने जो इज्जत मुझे बख्शी है उसके लिए मैं आपकी तहेदिल से शुक्रगुजार हूँ ।आपके शब्दों को मैं फिर से लिख रही हूँ :
"वर्षा वार्ष्णेय हिंदी साहित्य में पहचान को मुहताज नहीं |अंग्रेजी साहित्य मनोविज्ञान औरअर्थशास्त्र में स्नातक , शिक्षण कार्य से भी जुडी रहीं |लेखन एवं कविता लिखना एक लम्बे समय से दिनचर्या रही है |"यही है जिंदगी"_ कविता संग्रह जिसका प्रमाण है | "नारी गौरव" से सम्मानित वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़ में वास करती हैं |
"शुक्रिया भाई जी "
1.सागर मंथन से निकलता है जब अमृत ,
पीने को उतावले सब हो जाते हैं ।।
पर जहर का भरा हुआ कलश ,
त्याग कर भोग को उतावले हो जाते हैं ।।
जिंदगी का सुख अगर तुमने लिया ,
तो दुःख भी तुम्हारा है ।।
क्यों भूलकर इस सत्य को ,
कुछ इंसान सन्यासी बन जाते हैं ।।
2.सत्ता के गलियारे चौखट और चमकते नज़ारे ,
हर मानव मन की उत्कंठा के वो अजीब से नारे
धोखा ,नजाकत ,रणनीति से भरे कैसे ये अंधियारे,
चाहत और मद लोलुपता ने बंद कर दिए आँखों के तारे ।।
न दिखाई देते जब राजनीति के कटु पर सत्य नज़ारे ,
फिर कैसे दिखाई देंगे दीनदुखियों के तड़फते हुए दुःख सारे ।।
छलकर झूठ से जो दिखाते हम सब को अनगिनत नज़ारे ,
डूब जाते उसी राजनीती में वो लोलुपता के मारे ।।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
— "वर्षा वार्ष्णेय हिंदी साहित्य में पहचान को मुहताज नहीं |अंग्रेजी साहित्य मनोविज्ञान औरअर्थशास्त्र में स्नातक , शिक्षण कार्य से भी जुडी रहीं |लेखन एवं कविता लिखना एक लम्बे समय से दिनचर्या रही है |"यही है जिंदगी"_ कविता संग्रह जिसका प्रमाण है | "नारी गौरव" से सम्मानित वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़ में वास करती हैं |
"शुक्रिया भाई जी "
1.सागर मंथन से निकलता है जब अमृत ,
पीने को उतावले सब हो जाते हैं ।।
पर जहर का भरा हुआ कलश ,
त्याग कर भोग को उतावले हो जाते हैं ।।
जिंदगी का सुख अगर तुमने लिया ,
तो दुःख भी तुम्हारा है ।।
क्यों भूलकर इस सत्य को ,
कुछ इंसान सन्यासी बन जाते हैं ।।
2.सत्ता के गलियारे चौखट और चमकते नज़ारे ,
हर मानव मन की उत्कंठा के वो अजीब से नारे
धोखा ,नजाकत ,रणनीति से भरे कैसे ये अंधियारे,
चाहत और मद लोलुपता ने बंद कर दिए आँखों के तारे ।।
न दिखाई देते जब राजनीति के कटु पर सत्य नज़ारे ,
फिर कैसे दिखाई देंगे दीनदुखियों के तड़फते हुए दुःख सारे ।।
छलकर झूठ से जो दिखाते हम सब को अनगिनत नज़ारे ,
डूब जाते उसी राजनीती में वो लोलुपता के मारे ।।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
![](https://www.facebook.com/rsrc.php/v3/y_/r/TuG4YchV8kb.png)
९९. माँ
मुद्दे की बात .........
एक माँ की ममता और दर्द को समझने के लिए पुरुषों को महिलाओं के साथ लेबर रूम में जाने पर पाबंदी नहीं होनी चाहिए ।एक पुरुष एक स्त्री की मनोव्यथा को तभी ठीक से समझ पायेगा ।शायद मेरी बात आप सबको मजाक लगे ,लेकिन यही सत्य है ।जब किसी पुरुष ने उस पीड़ा और दर्द को महसूस ही नहीं किया तो फिर वो किसी स्त्री और माँ के साथ कैसे न्याय कर पायेगा । माँ हो या भारत माँ ,उसका दर्द जानने के लिए दिल से एहसास जरूरी है ।
एक माँ की ममता और दर्द को समझने के लिए पुरुषों को महिलाओं के साथ लेबर रूम में जाने पर पाबंदी नहीं होनी चाहिए ।एक पुरुष एक स्त्री की मनोव्यथा को तभी ठीक से समझ पायेगा ।शायद मेरी बात आप सबको मजाक लगे ,लेकिन यही सत्य है ।जब किसी पुरुष ने उस पीड़ा और दर्द को महसूस ही नहीं किया तो फिर वो किसी स्त्री और माँ के साथ कैसे न्याय कर पायेगा । माँ हो या भारत माँ ,उसका दर्द जानने के लिए दिल से एहसास जरूरी है ।
९७.प्यार या पैसा
मेरी रचना sahitypedia में http://sahityapedia.com/
http://sahityapedia.com/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%AA%E0%A5%88%E0%A4%B8%E0%A4%BE-64720/
प्यार या पैसा
गगन चुम्भी इमारतों के नीचे जो बने होते हैं छोटे छोटे आशियाने ,
एक पल में ढह जाते हैं बनकर रेत् की तरह |
दिलों में खिले हुए प्यार भी एक वक्त गुम हो जाते हैं ,
जब ईमान डगमगाने लगते है नाव की तरह ।
कश्तियों में सवार मुसाफिर कब जानते हैं एक दूसरे को ,
बन जाते हैं हसीं रिश्ते बुनियाद की तरह ।।
जरूरी तो नहीं हमसफ़र की सोच एक जैसी हो राहों में ,
ले जाते थे फिर भी पार नैया कुशल सवारों की तरह ।
क्यों टूट रहे हैं आज रिश्ते सिर्फ पैसों की वजह से ,
क्यों है ये सवाल खड़ा महंगाई की तरह ?
एक पल में ढह जाते हैं बनकर रेत् की तरह |
दिलों में खिले हुए प्यार भी एक वक्त गुम हो जाते हैं ,
जब ईमान डगमगाने लगते है नाव की तरह ।
कश्तियों में सवार मुसाफिर कब जानते हैं एक दूसरे को ,
बन जाते हैं हसीं रिश्ते बुनियाद की तरह ।।
जरूरी तो नहीं हमसफ़र की सोच एक जैसी हो राहों में ,
ले जाते थे फिर भी पार नैया कुशल सवारों की तरह ।
क्यों टूट रहे हैं आज रिश्ते सिर्फ पैसों की वजह से ,
क्यों है ये सवाल खड़ा महंगाई की तरह ?
९६.कविता
आज की कविता देशप्रेमियों के लिए" जग प्रेरणा" रायपुर में ,
जय हिंद ,जयभारत
मुन्नी और शीला के दौर में कौन रिश्ते निभायेगा ,
मर गयी जिनकी आत्मा वो कैसे प्यार निभायेगा ।
जन जागरण का समय है आया देखो मत सोओ तुम,
बातों को खेल में टाल जाना तुम्हें बहुत रुलायेगा ।
बातें करने से नहीं किसी का नसीब जागा है,
कर्म पथ पर चलकर ही देश तुष्टि पायेगा ।
बीहड़ों में कब तक दहाड़ते रहोगे तुम ,
ओ मेरे देश प्रेमियों निडरता से ही देश का गौरब बच पायेगा ।
स्वार्थ में अपने लिप्त है जब समूची दुनिया ,
त्यागकर सुख भोग सारे कौन जंगल जाएगा।
बिल्ली आई चूहा भाग खेल पुराना है ,
ऐ मेरे देशबासियो अब नया ज़माना आएगा।
बिल्ली बैठी बिलों के अंदर सर्प चूहा खायेगा,
ढोल बजाता बंदर आज ,गीत भेड़िया गायेगा ।
मत फैलाओ बैर भाव आपस में ,बैर तुम्हें ही सतायेगा ,
वीरों की जन्मभूमि से दुश्मन कैसे ज़िंदा बच पायेगा ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
जय हिंद ,जयभारत
मुन्नी और शीला के दौर में कौन रिश्ते निभायेगा ,
मर गयी जिनकी आत्मा वो कैसे प्यार निभायेगा ।
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhg4ZIClNCA0WCcOggHmASahfLk0hMUW6Y46uBt3P2_tBOtmx4UjLFQ4jKn69fR7Fs5QsNs9XA0Bv_Lm-LRcd0IXz7wOjST4zeCkr9I4qHM8Re2ABs1e5SghW5RZ9IglJ0zD3e3llBvEXzK/s640/14433218_1864370637140599_2817105712554742565_n+%25281%2529.jpg)
बातों को खेल में टाल जाना तुम्हें बहुत रुलायेगा ।
बातें करने से नहीं किसी का नसीब जागा है,
कर्म पथ पर चलकर ही देश तुष्टि पायेगा ।
बीहड़ों में कब तक दहाड़ते रहोगे तुम ,
ओ मेरे देश प्रेमियों निडरता से ही देश का गौरब बच पायेगा ।
स्वार्थ में अपने लिप्त है जब समूची दुनिया ,
त्यागकर सुख भोग सारे कौन जंगल जाएगा।
बिल्ली आई चूहा भाग खेल पुराना है ,
ऐ मेरे देशबासियो अब नया ज़माना आएगा।
बिल्ली बैठी बिलों के अंदर सर्प चूहा खायेगा,
ढोल बजाता बंदर आज ,गीत भेड़िया गायेगा ।
मत फैलाओ बैर भाव आपस में ,बैर तुम्हें ही सतायेगा ,
वीरों की जन्मभूमि से दुश्मन कैसे ज़िंदा बच पायेगा ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
९५.जिंदगी की हकीक़त
आज के हालात पर मेरी रचना" जग प्रेरणा"रायपुर में ,
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjb-K6z0hCIzWPN5yj1ka8HC0dxiA_uONgwAOutb52fuw6VP4DLcSKglULZmAtq-vbXAxB4I4LxCWkSBb0fNBaz4s-5LX5pvIJk6W4DRA9g6a9GEH3uZwN0nnGDLdOhq0eazVrDcHXCqQEx/s400/14492330_1863840107193652_6379410657738518581_n.jpg)
जिंदगी की हकीकत को इस तरह भुलाया न करो ,
झूठ को सच मानकर यूँ मजाक उड़ाया न करो।
खेल है ताश के पत्तों जैसा ये दुनिया ,
कभी किसी को बेगम ,तो किसी को बादशाह बनाया न करो ।
तारीफ़ में क्यों करते हो किसी की कंजूसी ,
मखमल में टाट के पैबंद तो न लगाया करो ।
सुराही दार गर्दन के पीछे कब तक भागोगे ,
कभी तो घड़े के पानी को भी मुँह लगाया करो।
ख़बरों के मौहल्ले बहुत हो गए हैं आजकल ,
अजी कभी तो सच्चाई को भी नजरों में भर लिया करो ।
दूसरों की क्यों धज्जियाँ उड़ाते हो भरी महफ़िलों में ,
कभी तो अपने गिरेबान में भी झाँक लिया करो।
गुम हो जाते हैं कुछ शब्द मजलूमों की तरह ,
कभी तो वर्षा की बूंदों से भी सीख लिया करो।
बना लेता है अपने लिए जगह वो भरी दुनिया में ,
कभी तो सूरज की तरह रौशनी फैलाया करो ।
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