९०.इश्क
जय श्री कृष्णा
भूल जाऊ खुद को या जहाँ में आग लगा दूँ ,
ए खुदा,तू ही बता अब किसको गवाह बना दूँ !!
नादाँ से जिंदगी समझती क्यूँ नहीं ,
आग है इश्क या नफरतों का सिला दूँ !!
फना हो गए क्यूँ वो दर ओ दीवार ,
सुलगती थी जहाँ दिलों कि मस्ती ,
कहो तो ए जिंदगी ,खुद को मिटा दूँ !!
रहमो करम था इस नाचीज पर ,
या जुल्म तुमने किया ,ए खुदा
कहो तो सही एक बार इश्क का नाम ही जला दूँ !
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