८६.रिश्ते
Jai shree krishna mitro ,
हर नया रिश्ता
आजमाता है ,
परखता है ।
दीवानगी की हद
तक अश्क़ दे जाता है ।
वो क्या जाने
उन बहते हुए अश्क़ों
की कीमत ,
जिन्हें सिर्फ दिल से
खेलना आता है ।
इम्तहान के दौर से
जब भी गुजरती है
बंदगी ,
दिल मे एक तूफान
समा जाता है ।
वो क्या जाने
आंसुओं की कीमत जिन्हें
सिर्फ रुलाने में मजा आता है ।
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