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Thursday 1 June 2017

                                                  ८४.शादी या बोझ 

जय श्री कृष्णा मित्रो ,मेरा लेख भोपाल के साप्ताहिक अखबार "अग्रज्ञान" में ,आभार संपादक मंडल ।
पिता ,जिसके बिना जीवन की यात्रा अधूरी ही है । जब बच्चा रोता है तो माँ कहती है आने दे आज तेरे पापा को तेरी शिकायत करूँगी । जब बच्चा खुद को असहाय पाता है तो पहले पिता के पास अपनी शिकायत लेकर जाता है । जिंदगी का वो मंजर जो बच्चे के लिए अधूरा होता है पिता की ख्वाईश बन जाता है । खुद की इच्छाओं को त्यागकर बच्चों की इच्छाओं को पूरा करता है एक पिता । जब भी बाजार में कोई नई फ्रॉक देखी तो सबसे पहले बेटी का ख्याल आता है । अधूरी तमन्नाओं को पूरा करना ही जैसे उसका उद्देश्य बन जाता है । पिता कभी नहीं रोते लेकिन जब अपनी बेटी विदा होती है तो वही एक बच्चे की तरह रोने लगते हैं । एक बेटी की पहली पहचान पिता से ही होती है ,फिर अचानक ऐसा क्या होता है कि वो बेटी को भूल जाता है ? आंखों में प्यार की तमन्ना लिए ,बरसों यूँ ही गुजर जाते हैं । जीवन में फिर भी एक उम्मीद रहती है पिता से मिलने की ,उनसे बहुत सारी बातें करने की । जिंदगी का सही अर्थ जानने की । एक छोटी सी बच्ची बनकर जिद करने की ,और अचानक एक दिन पता लगता है कि पिता तो इस दुनिया मे ही नहीं ।एक बज्रपात होता है और लगता है जैसे दुनिया ही रुक गयी । क्यों होता है ऐसा ?क्यों माँ बाप अपनी झूठी जिद और ख्वाइशों के लिए एक बच्चे की जिंदगी से खिलवाड़ कर जाते हैं ? क्यों छोड़ देते हैं उसको तमाम उम्र सिसकने के लिए ?क्या खुद की इच्छाएं बच्चों से भी ज्यादा सर्वोपरि होती हैं ,यदि हाँ तो फिर ऐसे लोगों को शादी ही नहीं करनी चाहिए ।किसने अधिकार दिया है उन्हें किसी की जिंदगी बर्बाद करने का ? क्या ऐसा बच्चा अपनी जिंदगी ठीक से बसर कर सकता है जो माता पिता दोनों के प्यार से वंचित रहा हो । अपने सुख की खातिर एक दूसरी जिंदगी को भी नर्क में डालकर क्या ऐसे माता पिता माँ बाप कहलाने योग्य हैं ? ये दुनिया कहाँ जा रही है ,सोचो और शादी जैसे पवित्र बंधन को गाली मत दो। अपने साथ एक और जीवन को अंधेरा मत दो । बच्चों को पैसों से ज्यादा माँ बाप के उचित प्यार और मार्गदर्शन की जरूरत होती है । क्या आज का पढ़ा लिखा समाज अपने बच्चों को सही परवरिश दे पा रहा है ? सोचने की बहुत जरूरत है ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़

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