५६,बेटियां
जय श्री कृष्णा मित्रो ,मेरी कविता बेटियां "सौरभ दर्शन" राजस्थान में
बेटियां
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मैं हूँ कामिनी ,मैं हूँ दामिनी
हैं चंचल कटाक्ष नेत्र भी ,
साहस की मैं हूँ स्वामिनी ।
मैं हूँ रागिनी ,मैं हूँ यामिनी
है मुझमें सरगम भरी हुई
त्याग और धैर्य की हूँ प्रतिभागिनी ।
मैं हूँ दुर्गा ,मैं हूँ काली
तेज है मुझमें समाया हुआ ,
वीरता की हूँ सौदामिनी ।
मैं हूँ माँ ,मैं हूँ अनुगामिनी
प्यार की करती हूं बरसातें
हूँ बेटी भी बड़भागिनी ।
मैं हूँ धरिणी ,मैं हूँ जननी
मारकर मुझे कैसे खुश रह पाओगे
मैं ही तो हूँ जन्मदायिनी ।
मैं हूँ मिश्री ,मैं हूँ तीखी
मत छेड़ना रौद्र रूप को ,
आ जाऊँ जिद पर तो हूँ गजगामिनी ।
मैं हूँ शील ,मैं हूँ वेद वाणी भी
सीखते हो चलना ऊँगली पकड़कर
मैं ही हूँ वो जीवन दायिनी ।
माना कि संसार तुम्हारा है ,
खून देकर लेकिन मैंने संभाला है ,
कोसते हो फिर क्यों आज भी ,
संसार है मुझसे ,मैं ही तो हूँ
ईश्वर की जीती जागती कामायनी ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
बेटियां
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मैं हूँ कामिनी ,मैं हूँ दामिनी
हैं चंचल कटाक्ष नेत्र भी ,
साहस की मैं हूँ स्वामिनी ।
मैं हूँ रागिनी ,मैं हूँ यामिनी
है मुझमें सरगम भरी हुई
त्याग और धैर्य की हूँ प्रतिभागिनी ।
मैं हूँ दुर्गा ,मैं हूँ काली
तेज है मुझमें समाया हुआ ,
वीरता की हूँ सौदामिनी ।
मैं हूँ माँ ,मैं हूँ अनुगामिनी
प्यार की करती हूं बरसातें
हूँ बेटी भी बड़भागिनी ।
मैं हूँ धरिणी ,मैं हूँ जननी
मारकर मुझे कैसे खुश रह पाओगे
मैं ही तो हूँ जन्मदायिनी ।
मैं हूँ मिश्री ,मैं हूँ तीखी
मत छेड़ना रौद्र रूप को ,
आ जाऊँ जिद पर तो हूँ गजगामिनी ।
मैं हूँ शील ,मैं हूँ वेद वाणी भी
सीखते हो चलना ऊँगली पकड़कर
मैं ही हूँ वो जीवन दायिनी ।
माना कि संसार तुम्हारा है ,
खून देकर लेकिन मैंने संभाला है ,
कोसते हो फिर क्यों आज भी ,
संसार है मुझसे ,मैं ही तो हूँ
ईश्वर की जीती जागती कामायनी ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
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