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Monday 18 December 2017

                                   १९३, कविता 

मिलते हैं बिछुड़ते हैं 
जाने कितने अनजाने ,
जीने का अंदाज ,
सिखाने आते हैं बेगाने ।
दर्द की स्याही में ,
लिख जाते हैं अफ़साने ।
अल्फाजों का क्या कसूर ,
बहक जाते हैं परवाने ।




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