30. लेख
क्षमा चाहती हूँ आप सभी आदरणीय से लेकिन एक छोटा सा सवाल
पूछना चाहती हूँ कि आप सभी देश की बातें करते हैं पर देश और समाज
परिवार से बनता है ।जब एक परिवार का भाई दूसरे परिवार को तक़लीफ़
देता है या एक परिवार के बड़े बुजुर्गों को बाहर निकाल कर बेटा ही
उनको प्रताड़ित करता है तब वो समाज चुप क्यों रहता है ?
क्षमा चाहती हूँ आप सभी आदरणीय से लेकिन एक छोटा सा सवाल
पूछना चाहती हूँ कि आप सभी देश की बातें करते हैं पर देश और समाज
परिवार से बनता है ।जब एक परिवार का भाई दूसरे परिवार को तक़लीफ़
देता है या एक परिवार के बड़े बुजुर्गों को बाहर निकाल कर बेटा ही
उनको प्रताड़ित करता है तब वो समाज चुप क्यों रहता है ?
क्या वो परिवार समाज का अंग नहीं है ? "कोई व्यक्ति किसी के
पारिवारिक मामलों में नहीं बोल सकता।"ब्लड इज थिकर दैन वाटर"।
आज लड़ने वाले भाई कल निश्चित रूप से एक होंगे। हर परिवार में झगड़े
होते हैं।" ये कहना है हमारे समाज का । यही तो सोच है सबकी ।इसीलिए
भाई भाई को और बेटा माँ बाप को परेशान करते हैं । जबकि ऐसा कुछ
नहीं होता।जब समस्या बड़ी हो जाती है तो हर जगह समाज की जरूरत
होती है ।जब ऐसे केस में समाज ही साथ नहीं देता ,तो समस्या गंभीर हो
जाती हैं और अंत में लोग परिवार की बात कहकर अलग हो जाते हैं ।जब
हमारे समाज में ही एकता नहीं तो देश में एकता कैसे हो सकती है । आप
सबकी क्या राय है इस बारे में.
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