७१.आंसू
बिखर गए मेरी पलकों पर जब भी मेरे आंसूं ,
न जाने क्यों तुम बहुत याद आये !
कब मिला है किसी को खोया हुआ साहिल ,
न जाने क्यों ये आंसूं निकल आये !
बेबफा क्यों नहीं हो जाती ये यादें ऐ तन्हाई ,
दबे हुए जख्म फिर से क्यों उभर आये !
जब भी घिर आती हैं ये काली घटाएं बनकर
यादों के मंजर तुम बहुत याद आये ।।
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