७३. १५ अगस्त
जय हिंद जय भारत ,मेरी कविता आज के रायपुर के पेपर जग प्रेरणा में ,थैंक्स सुधीर शर्मा जी.
ऊँचे मकानों में पत्थर के दिल बसते हैं ,देते हैं दूसरों को उपदेश पर प्रीत न किसी से करते हैं ।
बेआबरू करते हैं सरेबाजार औरों की बहनों को दहेज़ का लेकर सहारा ,
नाम पर अपनी बहनों के जिस्म जिनके जलते हैं ।
करते हैं दिखावा दिन रात पूजा पाठ का ,मानव सेवा के नाम पर जिनके हाथ न उठते हैं।
चौपाल पर बैठकर इधर की उधर लगाते हैं ,सुनकर गैरों के मुंह से अपनी बुराई क्यों दिल तुम्हारे जलते हैं ।
शर्म करो ऐ धर्म के ठेकेदारों, क्यों हाथ खुद के सेकते हो ,
लगाकर मजहब के नाम पर आग ,क्यों घर दूसरों का जलाते हो ।
चूड़ियां पहन कर घर पर बैठ जाओ या एक बुरका भी बनबा लो ,बेच दो खुद को सरेआम दुश्मनों को ,या देश की आन पर मिट जाओ ।
याद करके उन शूरवीरों को कुछ तो देश पर रहम खाओ ,
मिटा दो देश पर खुद को या दुश्मनों को मिटा डालो ।
क्या यही है आजादी की सच्चाई जहाँ पर खून खराबा होता है ,रोते हैं बच्चे दूध के लिए,मंदिरों में खजाना होता है
कहाँ थीं जब मजहब की ख़ूनी दीवारें ,जब वतन पर कुर्बान हर इंसान था ।
आजादी पाने की खातिर हर उस दिल में ,हर घर में जोशीला इंसान था ।
आओ मिल कर लें शपथ, आजादी को न खोने देंगे ,हम एक थे सालों पहले ,आज भी एक ही रहेंगे ।
नहीं मिटा सकते हमको आतंक से भरे गलियारे , जब तक ज़िंदा है दिलों में भारत माँ के जयकारे ।
जय हिन्द जय भारत
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