७० ,जिंदगी का हर दिन
मेरी रचना hopesmagzine पर ,वो भी क्या दिन थे !!
जिंदगी का हर दिन एक त्यौहार था ,
जिंदगी का हर दिन एक त्यौहार था ,
बिना मोबाइल के ही एक दूजे के दिल का दारोमदार था ।
चिड़ियों की आवाज से दिन का निकलना तै था ,
वो कितने अच्छे दिन थे जब आँखों में सच्चे पर सपनों का संसार था ।
वो नानी का आँगन , वो अपनों की डांट ।
वो बारिश में भीगना , अनजानी पर सच्ची खुशियों के साथ था ।
खो गयी वो सखियों के संग झूलों की यादें ,
खो गयी वो प्यार भरी बारिश की यादें ।
आज सिर्फ तन्हाई का साथ है ,
मोबाइल का प्यार है ।
खो गया अपनों का प्यार ,
शायद् अब यही हमारा सुनहरा संसार है ।
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