७६,कृष्ण और जीवन
जब जब समाज में क्षय हुआ प्रेम त्याग परोपकार का ,
रखकर अनौखा रूप दुनिया को राह दिखाने आये हो !
तुम ही कान्हा तुम ही राम मुरलीधर तुम ही कहलाये हो!!
कैद कर लिया शक्ति के मद में जब कंस ने अग्रसेन को ,
कांपने लगी थी जब सृष्टि भी तुम ही उद्धार कराये हो !!
भाद्रपद की अष्टमी तिथि को मथुरा में तुम आये हो ,
नाश कर असत्य का,सबको सत्य का पाठ पढाये हो !!
बिता दिया सम्पूर्ण जीवन अन्याय के प्रतिकार में ,
अपने जीवन से इंसानों को न्याय का पाठ पढाये हो !!
अन्याय का विरोध ,प्यार का सही अर्थ समझाए हो ,
गोपियों संग रास रचाना ,मधुबन में गाय चराए हो !!
तुम ही राधा ,तुम ही कृष्णा अद्भुत लीला दिखलाए हो ,
मनोहारी लीला में प्रकृति का सम्मान करना सिखाये हो !!
जब छोड़ दिया अपनों ने साथ देकर सहारा हिम्मत बढाए हो ,
द्रौपदी हो या हो भक्त मीराबाई हर संकट में दौड़े आये हो !!
तुम ही हो सबके पालनहारे ,घर घर में प्रीत जगाये हो ,
आ भी जाओ “ओ मुरलीधर” क्यूँ हमको बिसराए हो !!
जय श्री कृष्णा
ReplyDeleteकविता भी अच्छी दीदी आप भी अच्छे लग रहे हो
ReplyDeletethanks
Deleteबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना
ReplyDeleteवाह
बधाई
aap ka bahut bahut shukriya
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