![versha varshney {यही है जिंदगी }](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhaHH9c2DUn77ljN47jKe5wMJTbXZ5hUEB5JGV-K2K1_fS6jI8mplFVk4oomCVEGVHJtH22yij5EQQ42ul8HrMjyQU5msHA1CaXRuuzQfdI9i4zRppXslIti0YV4Dqcai9_QRzqcvdDlAff/s960/IMG_20170630_122227.jpg)
versha varshney {यही है जिंदगी } जय श्री कृष्णा मित्रो, यही है जिंदगी में मैंने मेरे और आपके कुछ मनोभावों का चित्रण करने की छोटी सी कोशिश की है ! हमारी जिंदगी में दिन प्रतिदिन कुछ ऐसा घटित होता है जिससे हम विचलित हो जाते हैं और उस अद्रश्य शक्ति को पुकारने लगते हैं ! हमारे और आपके दिल की आवाज ही परमात्मा की आवाज है ,जो हमें सबसे प्रेम करना सिखाती है ! Bec Love iS life and Life is God .
Followers
Wednesday, 28 December 2016
१३२.शब्द
जय श्री कृष्णा मित्रो,
मेरी एक और रचना "सौरभ दर्शन "पाक्षिक पेपर में , ।
शब्द जब प्रत्याशा बन जाते हैं,
टूटे हुए दिलों पर मरहम रखकर ,
जीने की राह दिखा जाते हैं ।
अभिलाषाओं से भरे जीवन में
जब भी पतझड़ आता है ,
राह दिखाने सूनी राहों में ,
प्यार का मधुर अहसास जगा जाते हैं ।
अछूता कौन है जिंदगी की सच्चाई से ,
हर पल जलते हुए शोलों में ,
जैसे ठंढी हवा चला जाते हैं ।
आओ समेट कर सारी इच्छाओं को फिर से कहीं
इनके आँचल तले सो जाते हैं ।।
।।2।।
अल्फाजों को स्वर्ण समझो ,
तारीफ़ को आभूषण ।।
साहित्य है विधा उसकी ,
लेखन जिसका धन ।।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
मेरी एक और रचना "सौरभ दर्शन "पाक्षिक पेपर में , ।
शब्द जब प्रत्याशा बन जाते हैं,
टूटे हुए दिलों पर मरहम रखकर ,
जीने की राह दिखा जाते हैं ।
अभिलाषाओं से भरे जीवन में
जब भी पतझड़ आता है ,
राह दिखाने सूनी राहों में ,
प्यार का मधुर अहसास जगा जाते हैं ।
अछूता कौन है जिंदगी की सच्चाई से ,
हर पल जलते हुए शोलों में ,
जैसे ठंढी हवा चला जाते हैं ।
आओ समेट कर सारी इच्छाओं को फिर से कहीं
इनके आँचल तले सो जाते हैं ।।
।।2।।
अल्फाजों को स्वर्ण समझो ,
तारीफ़ को आभूषण ।।
साहित्य है विधा उसकी ,
लेखन जिसका धन ।।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
१३१,कशमकश
कशमकश से भरी जिंदगी कब सुकून देती है ।
चलते तो हैं लोग सभी मंजिलो की तरफ ,
होते हैं कितने खुशनसीब ,मंजिल पनाह देती है ।
गुजर गए वो बीते पल भी खुशियों की चाहत में ,
आज का पल भी गुजर ही जाएगा जिंदगी में ।
चलते रहना ही जिंदगी है ...............दोस्तों ,
जाने क्यों जिंदगी हर कदम इम्तहान लेती है ।।
चलते तो हैं लोग सभी मंजिलो की तरफ ,
होते हैं कितने खुशनसीब ,मंजिल पनाह देती है ।
गुजर गए वो बीते पल भी खुशियों की चाहत में ,
आज का पल भी गुजर ही जाएगा जिंदगी में ।
चलते रहना ही जिंदगी है ...............दोस्तों ,
जाने क्यों जिंदगी हर कदम इम्तहान लेती है ।।
(17/12/16)mera golden chance miss ho gaya .I am very upset .shayad jo hota hai usmen kuch acchai hi hoti hai .
१२९.नसीब
जय श्री कृष्णा मित्रो ,
जन्म मृत्यु यश अपयश सब बिधि के हाथ ही तो है ।जो बातें हम अपने लिए सोचते हैं ,वो शायद ही कभी पूरी हो पाती हैं ।इसका मतलब ये तो नहीं कि हम कर्म करना छोड़ दें ।जीवन कब खुद के अनुरूप चलता है ।कभी कभी हालात हमसे वो करा देते हैं ,जिनका ताउम्र अफ़सोस रहता है ।कुछ लोग ऐसे भी होते है जो योग्य होते हुए भी सफलता प्राप्त नहीं कर पाते ।जीवन की विषम परिस्तिथि उनको आगे बढ़ने से रोक देती हैं और इंसान खुद को सिर्फ यही कहकर समझा लेता है कि जो हुआ अच्छा ही हुआ ।इंसान के हाथों में कुछ भी तो नहीं ,सिवाय कर्म करने के ।लेकिन जो विपरीत परिस्थितियों में भी समायोजन करके निरंतर प्रयासरत रहते हैं ,वही जीवन में आगे बढ़ पाते हैं ।
"ख्वाइशों की भट्टी में जो उबलता है रात दिन ,
इंसान वही पा लेता है अपनी सुनहरी मंजिल एक दिन ।।"
जन्म मृत्यु यश अपयश सब बिधि के हाथ ही तो है ।जो बातें हम अपने लिए सोचते हैं ,वो शायद ही कभी पूरी हो पाती हैं ।इसका मतलब ये तो नहीं कि हम कर्म करना छोड़ दें ।जीवन कब खुद के अनुरूप चलता है ।कभी कभी हालात हमसे वो करा देते हैं ,जिनका ताउम्र अफ़सोस रहता है ।कुछ लोग ऐसे भी होते है जो योग्य होते हुए भी सफलता प्राप्त नहीं कर पाते ।जीवन की विषम परिस्तिथि उनको आगे बढ़ने से रोक देती हैं और इंसान खुद को सिर्फ यही कहकर समझा लेता है कि जो हुआ अच्छा ही हुआ ।इंसान के हाथों में कुछ भी तो नहीं ,सिवाय कर्म करने के ।लेकिन जो विपरीत परिस्थितियों में भी समायोजन करके निरंतर प्रयासरत रहते हैं ,वही जीवन में आगे बढ़ पाते हैं ।
"ख्वाइशों की भट्टी में जो उबलता है रात दिन ,
इंसान वही पा लेता है अपनी सुनहरी मंजिल एक दिन ।।"
Wednesday, 14 December 2016
versha varshney {यही है जिंदगी }: १२८.मिठास
versha varshney {यही है जिंदगी }: १२८.मिठास: छू गयी दिल को मेरे तेरी यही दिल लुभाने की अदाएं , कितना नेह है भरा दिल में तेरे , क्या सच में मैं इतनी ही मीठी हूँ , या फिर ये सिर्फ...
१२८.मिठास
छू गयी दिल को मेरे तेरी यही दिल लुभाने की अदाएं ,
कितना नेह है भरा दिल में तेरे ,
क्या सच में मैं इतनी ही मीठी हूँ ,
या फिर ये सिर्फ एक बहम है मीठा सा ।
गर ये सच है तो क्यों दुखाते हो दिल मेरा ।
क्या मेरे दुःख से तुम्हें तनिक भी पीर नहीं होती । हाँ छूना चाहती थी मैं भी आस्मां जैसे दिल को तेरे ,
भागना चाहती थी मैं भी कभी तेरी हंसी के साथ
शायद कुछ तो कमी थी मेरी आराधना में ,
जो अधूरी ही रही मेरी पूजा ।
पत्थर थे तुम ,
पाषाण ही तो थे जो कभी समझ ही न पाए मेरी व्यथाको|
कोई गम नहीं ,ये तो प्रकृति है तुम्हारी ,
कभी तो नम हो ही जाएंगी आँखें तुम्हारी ,
जब अंधेरों में कोई दीप झिलमिलायेगा ।
झलक मेरी पाकर एक बूंद पानी की आँखों से निकल कर जब पूछेगी ,
बताओ न क्या गलती थी मेरी ,
जो फेंक दिया तुमने मुझे बारिश की एक बूंद समझकर|
मैं मात्र एक बूंद ही तो नहीं थी,
'वर्षा 'हूँ आज भी सिर्फ तुम्हारी ।।
कितना नेह है भरा दिल में तेरे ,
क्या सच में मैं इतनी ही मीठी हूँ ,
या फिर ये सिर्फ एक बहम है मीठा सा ।
गर ये सच है तो क्यों दुखाते हो दिल मेरा ।
क्या मेरे दुःख से तुम्हें तनिक भी पीर नहीं होती । हाँ छूना चाहती थी मैं भी आस्मां जैसे दिल को तेरे ,
भागना चाहती थी मैं भी कभी तेरी हंसी के साथ
शायद कुछ तो कमी थी मेरी आराधना में ,
जो अधूरी ही रही मेरी पूजा ।
पत्थर थे तुम ,
पाषाण ही तो थे जो कभी समझ ही न पाए मेरी व्यथाको|
कोई गम नहीं ,ये तो प्रकृति है तुम्हारी ,
कभी तो नम हो ही जाएंगी आँखें तुम्हारी ,
जब अंधेरों में कोई दीप झिलमिलायेगा ।
झलक मेरी पाकर एक बूंद पानी की आँखों से निकल कर जब पूछेगी ,
बताओ न क्या गलती थी मेरी ,
जो फेंक दिया तुमने मुझे बारिश की एक बूंद समझकर|
मैं मात्र एक बूंद ही तो नहीं थी,
'वर्षा 'हूँ आज भी सिर्फ तुम्हारी ।।
१२६.मेरी कुछ अनुभूतियां साहित्यपिडिया पर ,
http://sahityapedia.com/%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE-68419/
हाँ तुमने सच कहा मैं खो गयी हूँ ,
झील की नीरवता में ,जो देखी थी कभी तुम्हारी आँखों में ।
तुम्हारी गुनगुनाहट में ,जो सुनी थी कभी उदासियों में ।
तुम्हें याद हो या न हो मुझे आज भी वो स्वप्न याद है ।
हाँ शायद वो स्वप्न ही तो था ,जो मैंने सच साँझ लिया था ।
खुद को ढूंढने की व्यर्थ एक नाकाम सी कोशिश कर रही हूँ आज भी ।
शायद वो पथरीले रास्ते आज भी मुझे लुभाते हैं ,जिन पर तुम्हारे साथ चलने लगी थी कभी ।
जिंदगी कितनी बेबस हो जाती है कभी कभी ।
हम जानते हैं प्यार मात्र एक छलावा ही तो है ,
फंस जाते हैं फिर भी पार होने की आशा में ।
हाँ सच है खुद को ढो रही हूँ मैं आज भी तुम्हारी ख्वाइशों को तलाशने में ।
क्या कभी तुम मुझे किनारा दे पाओगे ,
क्या कभी जिंदगी को राह मिल पाएगी ?
सुलग रही है एक आशा न जाने क्यों ,
एक कटु सत्य के साथ आज भी ।
हाँ शायद खुद को बहला रही हूँ मैं ,
किसी मीठे भ्रम के साथ ,झूठी आशाओं की गठरी लिए अपने नाजुक कन्धों पर ।
सही कहा तुमने आज भी खुद को सिर्फ छल रही हूँ मैं ,आज भी खुद को छल रही हूँ मैं
किसी स्वप्न के साकार होने की अद्भुत ,अनहोनी पराकाष्ठा की सुखद अनुभूति में ।।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़
१२४.नफरत
नफरतों में ही जीना चाहता है हर इंसान
क्यूकी प्यार से है वो परेशान
जीना सिखा है जिसने बस नफरतों में ही
क्या सिखाएगा किसी को वो हैवान
जलता है घर किसी का क्यूँ खुश होता है
आज वो हर इंसान ,
जिसने न सीखा मदद करना कभी किसी की
वो क्या देगा अपने बच्चों को पैगाम
कर रहे हो आज जो वही तो सीखेगा
कल जो आने वाला है मेहमान
फिर मत देना दोष कल को
क्यूकि वही तो है तुम्हारा फरमान ||
क्यूकी प्यार से है वो परेशान
जीना सिखा है जिसने बस नफरतों में ही
क्या सिखाएगा किसी को वो हैवान
जलता है घर किसी का क्यूँ खुश होता है
आज वो हर इंसान ,
जिसने न सीखा मदद करना कभी किसी की
वो क्या देगा अपने बच्चों को पैगाम
कर रहे हो आज जो वही तो सीखेगा
कल जो आने वाला है मेहमान
फिर मत देना दोष कल को
क्यूकि वही तो है तुम्हारा फरमान ||
१२३.आशिकी
क्यों मजबूर होते हैं हम दिल के आगे
क्यों नहीं समझते अपनी सीमाओं को
क्यों चाहता है दिल उड़ना आसमान में पछियों की तरह
क्यों भागता है मन संसार से
होते हैं मन में सवाल कई
फिर भी बस चलते ही रहते हैं
जिंदगी भर कुछ पाने की तलाश में
जानते हुए भी रहते हैं अनजान इस
तरह जैसे न जानते हों अपनी हक़ीक़त को
यही तो सच है फिर भी चाहता है
दिल शायद कुछ मिल जाए आशिकी में
क्यों नहीं समझते अपनी सीमाओं को
क्यों चाहता है दिल उड़ना आसमान में पछियों की तरह
क्यों भागता है मन संसार से
होते हैं मन में सवाल कई
फिर भी बस चलते ही रहते हैं
जिंदगी भर कुछ पाने की तलाश में
जानते हुए भी रहते हैं अनजान इस
तरह जैसे न जानते हों अपनी हक़ीक़त को
यही तो सच है फिर भी चाहता है
दिल शायद कुछ मिल जाए आशिकी में
११७.बेटी
विदा हुई जब बेटी अपनी आँखों में आंसूं आ गए ,लाये थे बनाकर जिसे बहू आँखों में आंसूं भर दिए ।
क्यों बदल गयी वो रीत पुरानी बेटी की शादी पर ,
बहू के अरमानों के जिसने टुकड़े टुकड़े कर दिए ।
बेटी के माँ बाप होना ही गुनाह अनौखा हो गया ,
टुकड़ा दिल का ही चंद मिनटों में पराया हो गया ।
किसने बनायी ये रीत पुरानी ,जहाँ बेटी परायी होती है ,
देखकर समाज के खोखले रिवाज दिल अपना टूट गया ।
कब बदलेगा समाज हमारा कब ???????????????
Subscribe to:
Posts (Atom)